ये बात तो सभी जानते हैं कि हिन्दू धर्म में किसी भी इंसान की मृत्यु हो जाने के बाद उसे रीति-रिवाज़ से शमशान घाट पर ले जाकर उनकी अंतिम क्रिया की जाती है जिससे इस दुनिया का सुख भोग चुके उस इन्सान की आत्मा को उसकी मौत के बाद शांति प्राप्त हो और वो चैन से दूसरे लोक में रह सके.अभी अभी: हर महीने 5 हजार रुपए देगी मोदी सरकार, सिर्फ जमा…
लेकिन आप में से कितने लोग इस बात को जानते हैं कि इसी शमशान घाट से भगवान शिव का एक अटूट रिश्ता है? आखिर वो क्या वजह है जिसके चलते माना जाता है कि भगवान शिव शमशान घाट पर रहते हैं? तो चलिए आज हम आपको बताते हैं कि हिन्दुओं के देवता भगवान शिव का शमशान घाट की भूमि से क्या रिश्ता है?
भगवान शिव श्मशान में रहते हैं, इस बात के पीछे ये वजह बताई जाती है कि शिव भगवान यूं तो संसार के हर कण में वास करते हैं लेकिन इन स्थानों में एक स्थान हैं जो उनका प्रिय है और वो है शमशान घाट. भोलेनाथ शमशान में भी रहते है और इसका कारण ये है कि अपनी प्रिय जगह शमशान बनाने के पीछे भगवान शिव का ये मकसद है कि वो हमे सिखा सकें की जीवन में कुछ भी स्थाई नहीं है. भगवान शिव हमें जीवन में संतुलन बनाए रखना सिखाते हैं.
देखा, माना और समझा जाये तो आज आपके इर्द-गिर्द मौजूद हर इंसान का जीवन भौतिक सुख में डूबा हुआ है और शायद यही एक बड़ा कारण है जिसके चलते मनुष्य इस सच को देख नहीं पाता कि यह दुनिया महज़ एक झूठ भर है. जीवन का उद्देश्य ही मृत्यु माना गया है. मृत्यु और पुनर्जन्म.
अब यहाँ एक बड़ा सवाल ये भी है कि जीवन एक मोह है ये बात सिद्ध करने के लिए भगवन शंकर ने शमशान घाट ही क्यों चुना? तो हम आपको बता दें कि शिव ने मनुष्य की इस सामान्य मोह माया की दुनिया से दूर रहने के लिए श्मशान घाट को चुना. जिससे भगवान शिव वहां पर ध्यान कर सकें. श्मशान घाट एकमात्र ऐसी जगह है जहां सही मायने में शरीर से आत्मा मुक्त हो जाती है.
इंसान को ये बात सिद्ध करने के लिए कि इस दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है बस मोह-माया है शिव ने शमशान में रहना शुरू किया. गौर करिए तो भगवान शिव इसी वजह के चलते खोपड़ी की माला और अपने शरीर पर राख़ लगाकर घुमते हैं. इन सब बातों के पीछे भगवान शिव का मकसद सिर्फ इतना है कि वो इंसानों में ये बात दाल सकें कि हमें जीवन को संतुलन बनाये रखना चाहिए. इसे बिगड़ने नहीं देना चाहिए. जिस तरह भगवान शिव अपने गले में जहरीले सांप की माला धारण किये रहते हैं , ठीक उसी तरह अमृत और विष को एक साथ पी कर उन्होंने समानता के बारे में सीख दी है.
बताया गया है कि शिव के सेवकों को गना नाम से जाना जाता है . ये विकसित और विकृत, इन दो प्रकार के होते हैं. इनके शरीर से अंग बाहर निकले हुए दिखाई देते हैं. शिव के सच्चे भक्तों को उनसे मिलाने में डरने की आवश्यकता नहीं होती. क्योंकि शिव के साथ गना का होना इस बात को दिखाता है कि जो मनुष्य शिव की भक्ति करना चाहता है, उसे सबसे पहले अपने डर पर काबू पाना सीखना चाहिए.