Adi Shankaracharya Jayanti 2022: हिंदू महीने के वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को आदि शंकराचार्य की जयंती मनाई जाती है। आज आदि शंकराचार्य की 1234वीं जयंती है। आदि शंकराचार्य, जिन्हें जगतगुरु शंकराचार्य के नाम से भी जाना जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, यह दिन हर साल अप्रैल या मई में आता है। इस साल यह जयंती आज यानी 6 मई, 2022 को मनाई जा रही है। इस दिन को हिंदुओं के बीच एक धार्मिक और पवित्र त्योहार माना जाता है क्योंकि वे आदि शंकराचार्य के जन्म का जश्न मनाते हैं, जिन्हें भगवान शिव के अवतार के रूप में जाना जाता है। आज के दिन भगवान शिव की पूजा विधान से करने के साथ सत्संग का आयोजन करते हैं। जानिए आदि शंकराचार्य से जुड़ी की खास बातें और उनके अनमोल विचार।
मान्यताओं के अनुसार, आदि शंकराचार्य ने सभी को अद्वैत वेदांत की मान्यता और दर्शन के बारे में सिखाया। उन्होंने उपनिषदों, भगवद गीता और ब्रह्मसूत्रों के मूल सिद्धांतों के बारे में शिक्षाओं को जन-जन तक पहुंचाया। इतना ही नहीं, माना जाता है कि उन्होंने हिंदू धर्म का प्रचार कई देशों का दौरा किया। भारत के चारों ओर चार मठ की स्थापना की। इनमें उत्तर में कश्मीर, दक्षिण में श्रृंगेरी, पूर्व में पुरी और पश्चिम में द्वारका शामिल हैं।
भगवान शिव का अवतार
मान्यता है कि आदि शंकराचार्य भगवान शिव के ही अवतार है। मान्यताओं के अनुसार, आज से लगभग 2500 साल पहले लोगों के बीच जब अशांति फैली हुई थी। आध्यात्मिकता कोसों दूर हो गया था। तब ऋषि और देवताओं ने भगवान शिव से सहायता मांगी थी। इसके बाद, भगवान शिव ने दुनिया को जगाने के लिए पृथ्वी पर जन्म लिया। वह केरल के छोटे से गांव कालड़ी में आदि शंकराचार्य के रूप में अवतरित हुए थे। आदि शंकराचार्य के पिता का नाम शिव गुरु नामपुद्र और माता का नाम विशिष्ठा देवी था। कहा जाता है कि भगवान शिव ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर स्वयं उन्हें यहां जन्म लिया था।
आदि शंकराचार्य के अनमोल विचार
1. बंधन से मुक्त होने के लिए बुद्धिमान व्यक्ति को अपने और अहंकार के बीच भेदभाव का अभ्यास करना चाहिए। केवल उसी से एक व्यक्ति स्वयं को शुद्ध सत्ता, चेतना और आनंद के रूप में पहचानते हुए आनंद से भरा हो जाएगा।
2. धन, लोगों, रिश्तों और दोस्तों या अपनी जवानी पर गर्व न करें। ये सब चीजें पल भर में पल भर में छीन ली जाती हैं। इस मायावी संसार को त्याग कर परमात्मा को जानो और प्राप्त करो।
3. प्रत्येक वस्तु अपने स्वभाव की ओर बढ़ने लगती है। मैं हमेशा सुख की कामना करता हूं जो कि मेरा वास्तविक स्वरूप है। मेरा स्वभाव मेरे लिए कभी बोझ नहीं है। खुशी मेरे लिए कभी बोझ नहीं है, जबकि दुख है।
4. अपनी इन्द्रियों और मन को वश में करो और अपने हृदय में प्रभु को देखो।
5. जिस तरह एक प्रज्वलित दीपक के चमकने के लिए दूसरे दीपक की जरुरत नहीं होती है। उसी तरह आत्मा जो खुद ज्ञान स्वरूप है उसे किसी और ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती है, अपने खुद के ज्ञान के लिए।
6. हमारी आत्मा एक राजा के समान होती है और हर व्यक्ति को यह ज्ञान होना चाहिए कि जो शरीर, इन्द्रियों, मन बुद्धि से बिल्कुल अलग होती है। आत्मा इन सबका साक्षी स्वरूप हैं।