मनमोहन सिंह एक राजनेता के साथ-साथ एक अच्छे विद्वान, अर्थशास्त्री और विचारक भी हैं। एक अर्थशास्त्री के तौर पर लोगों ने हमेशा उनकी तारीफ की है। 21 जून, 1991 से 16 मई, 1996 तक नरसिंह राव के प्रधानमंत्रित्व काल में मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे। वित्त मंत्री के रूप में उन्होंने भारत में आर्थिक सुधारों की शुरुआत की। उन्हें भारत के आर्थिक सुधारों का प्रणेता माना गया है।
मनमोहन सिंह का जन्म और शिक्षा
भारत के सत्रहवें प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर, 1932 को पाकिस्तान के गाह नामक एक छोटे से गांव में हुआ था। दरअसल उनके पैदाइश का दिन खुद उनके परिवारवालों को मुकम्मल तौर पर याद नहीं रहा। हालांकि जब वो स्कूल पढ़ने गए तो 26 सितंबर को उनके जन्म की तारीख के तौर पर लिखाया गया। बहुत ही कम उम्र में मनमोहन सिंह ने अपनी मां को खो दिया। उनकी देखभाल दादी ने की. जब पहली बार स्कूल में एडमिशन की बारी आई तो दादी ने मनमोहन सिंह के जन्म की तारीख 26 सितंबर लिखवाई। पाकिस्तान के जिस गाह इलाके में उनका परिवार रहा करता था, वो पिछड़ा इलाका था। गांव में न बिजली थी और न स्कूल। वो मीलों चलकर स्कूल पढ़ने जाया करते थे। किरोसीन से जलने वाले लैंप में उन्होंने पढ़ाई की है। देश के विभाजन के बाद मनमोहन सिंह का परिवार भारत आ गया था।
प्रारंभ से ही उनका पढ़ाई की ओर विशेष रुझान था। मनमोहन सिंह ने पंजाब विश्वविद्यालय से अव्वल श्रेणी में बीए (आनर्स) की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद सन 1954 में यहीं से एमए (इकोनॉमिक्स) में भी उन्होंने पहला स्थान प्राप्त किया। पीएचडी. की डिग्री प्राप्त करने के लिए वह कैंब्रिज विश्वविद्यालय गए, जहां उन्हें उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए राइट्स पुरस्कार से सम्मानित किया गया। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के नेफिल्ड कॉलेज से मनमोहन सिंह ने डीफिल की परीक्षा उत्तीर्ण की। अक्सर कई मौकों पर उन्होंने अपनी कामयाबी के पीछे शिक्षा का हाथ बताया। मनमोहन सिंह पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ में व्याख्याता के पद पर नियुक्त होने के बाद जल्द ही प्रोफेसर के पद पर पहुंच गए। उन्होंने दो वर्ष तक दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में भी अध्यापन कार्य किया। इस समय तक वह एक कुशल अर्थशास्त्री के रूप में पहचान बना चुके थे। मनमोहन सिंह अपने व्याख्यानों के लिए कई बार विदेश भी बुलाए गए। इंदिरा गांधी के काल में वह रिजर्व बैंक के गवर्नर भी बनाए गए।
मनमोहन सिंह का राजनीतिक सफर
राजीव गांधी के कार्यकाल में मनमोहन सिंह को योजना आयोग का उपाध्यक्ष निर्वाचित किया गया। इस पद पर वह निरंतर पांच वर्षों तक कार्य करते रहे। अपनी प्रतिभा और आर्थिक मसलों की अच्छी जानकारी के कारण वह 1999 में प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार भी नियुक्त किए गए। मनमोहन सिंह को राजनीति में लाने के पीछे पीवी नरसिम्हा राव का हाथ है। नरसिम्हा राव ने उन्हें अपनी सरकार में वित्तमंत्री बनाया। 1991 में वित्तमंत्री रहते हुए मनमोहन सिंह ने देश में उदारीकरण की शुरुआत की। देश को आर्थिक संकट से उबारने में मनमोहन सिंह का बड़ा हाथ रहा।
कहा जाता है कि उन्हें राजनीति में आने का ऑफर काफी पहले मिला था। 1962 में पहली बार जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें अपनी सरकार में शामिल होने का न्योता दिया, लेकिन मनमोहन सिंह ने इसे स्वीकार नहीं किया। उस वक्त वो अमृतसर के कॉलेज में पढ़ा रहे थे। वो पढ़ाने को छोड़ने को तैयार नहीं हुए।
शासकीय अनुभव के बल पर मनमोहन सिंह बने पीएम
मनमोहन सिंह को एक्सीडेंटल पीएम कहा जाता है। इस नाम से उन पर किताब लिखी गई और फिल्म बनी। ये सच है कि 2004 में उनके पीएम बनने का मौका अचानक आया। 2004 के चुनावों के बाद कांग्रेस सबसे बड़ा संसदीय दल बन गई। उस वक्त सोनिया गांधी का विदेशी मूल का मुद्दा तूल पकड़ रहा था। कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनने से इनकार कर दिया। पीएम पद के लिए प्रणब मुखर्जी और अर्जुन सिंह की दावेदारी मजबूत थी। दोनों नेता सोनिया गांधी के करीबी थे, लेकिन दोनों में किसी एक को चुनना कांग्रेस में खेमेबंदी को बढ़ावा देता, इसलिए शासकीय अनुभव के बल पर वह अप्रैल 2004 में 72 वर्ष की आयु में वह प्रधानमंत्री नियुक्त किए गए। पुनः दूसरी बार उन्हें वर्ष 2009 में प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला। 2009 के लोकसभा चुनावों में मिली जीत के बाद वे जवाहरलाल नेहरू के बाद भारत के पहले ऐसे प्रधानमंत्री बने, जिनको पांच वर्षों का कार्यकाल सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला।
भ्रष्टाचार के कारण मनमोहन सिंह पर उठे सवाल
यूपीए सरकार के कार्यकाल में भ्रष्टाचार के मामलों के कारण मनमोहन सिंह की काफी किरकिरी हुई। 2 जी घोटाला हो या कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला, हर जगह मनमोहन सिंह सरकार पर आरोप लगाए गए। मनमोहन सिंह राजनीतिक व्यक्ति नहीं रहे, इसलिए भी उन्हें मोस्ट अंडर एस्टीमेटेड राजनीतिक शख्सियत माना जाता है। अपने कार्यकाल में उन्होंने कई मजबूत फैसले भी लिए। 2008 में अमेरिका के साथ सिविल न्यूक्लियर डील के लिए मनमोहन सिंह ने हिम्मत दिखाई। उन्होंने पार्टी के कहने पर कर्ज माफी जैसा बड़ा काम किया था। हालांकि, मनमोहन सिंह का कभी खुलकर बात ना करना भी लोगों को उन पर वार करने का मौका मिला।