नई दिल्ली : भूटान में होने वाले संसदीय चुनाव में भारत और चीन ने अपना दखल बढ़ा दिया है। दोनों ही देश भूटान के सभी बड़े नेताओं को प्रभावित करने का प्रयास करने लगे हैं। ये सभी नेता आने वाली सरकार के गठन में संभावित रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। भूटान एक छोटा सा देश है लेकिन भारत और चीन दोनों के लिए रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है।
चीन के उप विदेश मंत्री कॉन्ग शुआंयू सोमवार को भूटान की राजधानी थिम्फू में एक अघोषित विदेश यात्रा पर पहुंचे। उन्होंने भूटान के प्रधानमंत्री शेरिंग टोबगे से मुलाकात भी की। इससे पहले भारत में चीन के राजदूत लुओ शाओहुई भी भूटान की यात्रा कर चुके हैं। चीन के नेताओं की इन भूटान यात्राओं से भारत असहज हो गया है।
ऐसा माना जा रहा है कि चीनी राजदूत लुओ प्रधानमंत्री कॉन्ग की यात्रा की तैयारियों का जायजा लेने के लिए भूटान गए थे। भारत के प्रयासों से अभी तक चीन और भूटान के बीच कोई औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित नहीं हो सके हैं लेकिन चीन अब थिम्फू की तरफ आगे कदम बढ़ा रहा है। गौरतलब है कि अभी तक भूटान को भारत का सबसे अच्छा मित्र देश माना जाता है। इसके अलावा भूटान ही एकमात्र भारत का ऐसा पड़ोसी देश है जिसने चीन की बीआरआई परियोजना (बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव) हिस्सा बनने से इनकार कर दिया है।
शनिवार को जब लुओ भूटान पहुंचे उससे पहले दिल्ली के एक और चीनी राजनयिक ली बिजियन लगभग एक हफ्ते से भूटान की राजधानी थिम्फू में मौजूद थे। जब चीनी राजनयिकों से हमारे सहयोगी अखबार ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ ने इस यात्रा के बारे में पूछा तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। हालांकि राजनयिक सूत्रों से पता चला है कि कि लुओ भूटान के बड़े राजनीतिक नेताओं के साथ बातचीत करेंगे।
चीन और भूटान के बीच बढ़ते संबंधों को भांपते हुए भारत के एक आधिकारिक सूत्र ने बताया कि भारत ने पहले ही भूटान के अधिकारियों को बता दिया है कि नैशनल असेंबली के गठन के तुरंत बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तुरंत थिम्फू पहुंचेंगे। बता दें कि भूटान के वर्तमान प्रधानमंत्री शेरिंग टोबगे को भारत का समर्थन करने वाला नेता माना जाता है और माना जा रहा है कि वह 31 जुलाई को अपने पद से इस्तीफा दे देंगे।
भारत सरकार की कुछ अंदरूनी रिपोर्ट्स के मुताबिक भूटान में इस समय सत्ता विरोधी लहर चरम पर है। ऐसे समय पर चीनी नेताओं और राजनयिकों की भूटान में उपस्थिति चिंताजनक है। चीन पिछले काफी समय से भूटान पर जमीन की अदला-बदली वाला समझौता किए जाने का दबाव बना रहा है। अगर भूटान ऐसा कोई भी समझौता करता है तो भूटान डोकलाम का पठार चीन को सौंप सकता है। डोकलाम रणनीतिक रूप से भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण है और पिछले साल वहां पर काफी समय के तक भारत और चीन की सेनाएं आमने-सामने आ गई थीं। रणनीतिक मामलों ने विशेषज्ञ ब्रह्म चेलानी ने कहा है कि चीनी राजनयिकों की यह यात्रा काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि चीन की सेना ने पहले ही डोकलाम के काफी बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया है जिसे भूटान अपना अभिन्न अंग मानता है।