अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वार अब काफी बड़ा हो गया है। दोनों देशों के बीच अब यह केवल व्यापार तक ही सीमित नहीं गया है बल्कि अब यह तीखी बयानबाजी में तब्दील हो चुका है। ट्रेड वार से गुस्साए चीन की सरकारी मीडिया ने अमेरिका को आंख दिखाते हुए कहा है कि संभल जाओ, फिर न कहना कि आगाह नहीं किया था। अमेरिकी राष्ट्रपति ने चीन की बड़ी कंपनी हुवाई पर जो प्रतिबंध लगाए हैं उसको लेकर चीन बुरी तरह से गुस्साया हुआ है। 15 मई को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस आदेश पर साइन कर इसको तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया था। इसके अलावा अमेरिका ने चीन से रेअर अर्थ एक्सपोर्ट को बैन करने का संकेत भी दे दिया है। चीन की नेशनल डेवलेपमेंट एंड रिफॉर्म कमीशन की वेबसाइट ने भी इसके संकेत दिए हैं।
यूएसजीएस के मुताबिक वर्ष 2014-2017 के बीच चीन ने अमेरिका में इस्तेमाल होने वाले रेअर अर्थ मेटेरियल का करीब 80 फीसद एक्सपोर्ट किया था। इसमें 17 ऐसे मेटल्स हैं जिनका इस्तेमाल सिविल और मिलिट्री के लिए बड़े पैमाने पर होता है। 10 मई 2019 को अमेरिका ने चीन से आने वाले 200 बिलियन डॉलर के उत्पाद पर 10—25 फीसद तक कर लगा दिया था।20 मई को चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने जिआंग्शी प्रांत में बनी रेअर अर्थ फेक्टरी का दौरा भी किया। चीन की मीडिया ने उनके इस फेक्टरी में जाने को अमेरिका के लिए सीधा संदेश करार दिया था। ट्रेडवार के जिस मोड़ पर अमेरिका और चीन खड़े हैं वहां पर रेअर अर्थ बड़ा हथियार बनता दिखाई दे रहा है। चीन का कहना है कि यदि अमेरिका इसको हथियार बनाता है तो यह अमेरिका द्वारा चीन का किया जा रहा ह अनुचित दमन होगा। रेअर अर्थ की उपयोगिता को देखते हुए ही इसको industrial catalysts भी कहा जाता है। मिलिट्री इक्यूपमेंट्स, स्मार्ट फोन, जेट, लेजर इक्यूपमेंट और इलेक्ट्रिक व्हीकल से लेकर कई दूसरी बड़ी चीजों के निर्माण के लिए अमेरिका चीन पर काफी कुछ निर्भर है। यहां पर ये भी बताना जरूरी होगा यूगेन घोल्ज ने ही अमेरिकी सरकार को रेअर अर्थ को लेकर सलाह दी थी और काउंसिल ऑन फॉरन रिलेशन को इसकी रिपोर्ट भी सौंपी थी। इसमें बताया गया था कि चीन रेअर अर्थ मार्किट में बड़ी ताकत है और 2010 में यह अपने शीर्ष पर था। इसमें इस मुद्दे पर चीन पर निर्भरता को कम करने के बारे में कहा गया है।
रॉयटर ने पेंटागन के प्रवक्ता लेफ्टिनेंट कर्नल माइक एंड्रयू के हवाले से बताया है कि सेना के वरिष्ठ अधिकारी इस मुद्दे पर राष्ट्रपति ट्रंप के करीब रहकर काम कर रहे हैं। अमेरिका की कोशिश है कि चीन से निर्भरता को कम किया जाए। अमेरिका को देखते हुए चीन भी इस पर विचार कर रहा है कि यदि अमेरिका इसको हथियार बनाता है तो वह भी इसकी सप्लाई को लिमिटेड या कम कर सकता है।