देश में भाल मतलब माथे पर टिका लगाने की प्रथा सदियों से चली आ रही है। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से यह व्यक्तित्व को गरिमा देती है। मन मस्तिष्क को शीतलता प्रदान करता है। तिलक शरीर की पवित्रता का भी द्योतक है। धार्मिक मन बिना नहाए ध्यान के इसे धारण नहीं करता है। सच में, हमारे शरीर में सात सूक्ष्म ऊर्जा केंद्र होते हैं, जो अपार शक्ति के भंडार हैं। इन्हें चक्र बोला जाता है। माथे के मध्य में जहां तिलक लगाते हैं, वहां आज्ञाचक्र होता है। यह चक्र बॉडी का सबसे अहम स्थान है। शरीर की मुख्य तीन नाड़ियां इड़ा, पिंगला एवं सुषुम्ना आकर मिलती हैं। इसे त्रिवेणी अथवा संगम भी बोला जाता है। यह जगह भौहों के बीच में थोड़ा ऊपर की तरफ होता है। यहां तिलक लगाने से आज्ञा चक्र की गत्यात्मकता को बल प्राप्त होता है। यह गुरु स्थान कहलाता है। यहीं से पूरी बॉडी का संचालन होता है। यह हमारी चेतना की प्रमुख जगह है। इसी को मन का घर माना जाता है। इसी वजह से यह जगह शरीर में सबसे अधिक अहम है। योग में ध्यान के वक़्त इसी पर मन एकाग्र किया जाता है।

ॐ चन्दनस्य महत्पुण्यं, पवित्रं पापनाशनम्।
आपदां हरते नित्यं, लक्ष्मीस्तिष्ठति सर्वदा ॥
आमतौर पर तिलक चंदन (लाल अथवा सफेद), कुमकुम, मिट्टी,हल्दी, भस्म,रोली, सिंदूर केसर तथा गोप चंदन आदि का लगाया जाता है। यदि दिखावे से परेशानी है तो जल का भी लगाने का शास्त्रोक्त विधान है। पुराणों में वर्णन प्राप्त होता है कि संगम तट पर गंगा स्नान के पश्चात् तिलक लगाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही वजह है की स्नान करने के पश्चात् पंडितों द्वारा खास तिलक अपने श्रद्धालुओं को लगाया जाता है।
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