गरीब की रोटी तिजोरी में नहीं जाने देंगे संयुक्त किसान मोर्चा मजबूत है देश का किसान उसके पीछे खड़ा है : राकेश टिकैत

किसान नेता राकेश टिकैत इंद्री की किसान महापंचायत में बाबा महेंद्र टिकैत के अंदाज में नजर आए। उन्होंने मंच से युवाओं के सिर पर हाथ रखकर पुचकार व दुलार दिखाया तो युवाओं में उनके साथ सेल्फी लेने की होड़ लगी रही। स्थानीय युवा जहां टिकैत की उत्तरप्रदेश की मीठी बोली के कायल दिखे, वहीं टिकैत ने भी हरियाणा की ताकत और पंजाब की सेवा को आंदोलन से जोड़ दिया।

मंच से टिकैत ने कहा कि इस आंदोलन को फिर से खड़ा करने में पंजाब के किसानों की लंगर सेवा भावना, हरियाणा के युवाओं की ताकत और उत्तरप्रदेश के किसानों का साथ मिला है। आंदोलन पहले भी करते थे, लेकिन ज्यादा लंबा नहीं चला पाते थे। पंजाब व हरियाणा के किसानों ने आंदोलन में लंबे समय तक लंगर चलाया है। आने वाले समय में हरियाणा में युवाओं की महापंचायत होगी, जिसमें 50 साल से ऊपर के लोग शामिल नहीं होंगे। दूसरी और कुछ बुजुर्गों ने बताया कि बाबा महेंद्र टिकैत का भी यही अंदाज था।

इंद्री में महापंचायत के बाद करनाल-इंद्री स्टेट हाईवे पर युवाओं ने टिकैत को काफिले में शामिल कर लिया। उन्होंने इंद्री से जनेसरो गांव तक करीब चार किलोमीटर ट्रैक्टर चलाया। वाहनों का काफिला उनके ट्रैक्टर के पीछे चला। सड़क पर चलते हुए युवाओं ने ट्रैक्टर चला रहे टिकैत के साथ सेल्फी ली और फोन से वीडियो बनाए। जनेसरो, गढ़ी गुजरान व दरड़ के अड्डे पर किसानों ने टिकैत का स्वागत किया।

करनाल के इंद्री कस्बे की अनाज मंडी में रविवार को आयोजित हुई किसान महापंचायत में न केवल हरियाणा बल्कि पंजाब व उत्तरप्रदेश से भी किसान  पहुंचे। हजारों की भीड़ जुटने से सभास्थल खचाखच भर गया। 26 जनवरी की घटना के बाद दिल्ली में टिकैत के जो आंसू छलके थे, उससे किसान भावुक नजर आए। वहीं संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने मंच से किसानों को तीन नए कृषि कानूनों से भविष्य में होने वाले नुकसान और शंकाएं बताईं।

महापंचायत में टिकैत ने कहा कि नए कृषि कानूनों से व्यापारी को भी नुकसान होगा। उन्होंने कहा कि गरीब की रोटी तिजोरी में नहीं जाने देंगे। संयुक्त किसान मोर्चा मजबूत है और पूरे देश का किसान उसके पीछे खड़ा है। उन्होंने कहा कि आंदोलन में कई किसान शहीद हो गए हैं और जब इतिहास लिखा जाएगा तो ये भी पूछा जाएगा कि किस राजा के राज में ये किसान शहीद हुए थे। किसान अपने आप नहीं मरता, वह सरकार की पॉलिसी से मरता है।

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