पराली की समस्या का समाधान करने के लिए पंजाब सरकार ने एक कदम आगे बढ़ाया है। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने धान की पराली पर आधारित ब्रिकटिंग प्लांट का वर्चुअल उद्घाटन किया। पटियाला जिले के कुलबुर्छां गांव में 5.50 करोड़ रुपये की लागत के साथ पंजाब स्टेट काउंसिल फार साइंस एंड टेक्नोलाजी द्वारा मैसर्ज पंजाब रिन्यूएबल एनर्जी सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड के साथ हिस्सेदारी में और केंद्रीय वातावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की सहायता के साथ क्लाईमेट चेंज एक्शन प्रोग्राम के अंतर्गत स्थापित किए गए इस प्लांट की सामर्थ्य 100 टन प्रति दिन है।

इस मौके पर मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा कि यह आर्थिक तौर पर काफी किफायती पड़ती है, क्योंकि कोयले की कीमत 10,000 रुपये प्रति टन और ब्रिकिट की कीमत 4500 रुपये प्रति टन है। उन्होंने कहा कि तेल के महंगे होने से यह ऊर्जा का एक ज्यादा किफायती स्रोत बन गया है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि इस नई तकनीक के साथ इस प्लांट के पास के 40 गांवों की पराली को ग्रीन फ्यूल में बदला जा सकेगा। इससे न सिर्फ वातावरण को प्रदूषित होने से बचाने में मदद मिलेगी, बल्कि इससे स्वास्थ्य को होने वाले गंभीर समस्याओं से निजात पाने में भी मदद मिलेगी। यह प्लांट 45000 टन पराली के अवशेष का इस्तेमाल करके उद्योगों में जैविक ईंधन का विकल्प बनेगा। इससे 78000 टन की हद तक कार्बन डाइआक्साइड को घटाने में मदद मिलेगी।
इस मौके पर मुख्य सचिव विनी महाजन ने कहा कि राज्य में बायोमास पर आधारित 11 पावर प्लांट पहले ही स्थापित किए जा चुके हैं और धान की पराली को खेतों से बाहर निपटाने के लिए कई यूनिट स्थापना अधीन हैं। उन्होंने बताया कि पहला बायो सीएनजी प्लांट जिसकी प्रति दिन 33 टन का समर्था है, मार्च 2021 तक चालू हो जाएगा। पीएससीएसटी के कार्यकारी डायरेक्टर डा. जतिंदर कौर अरोड़ा का कहना है कि ब्रिकिट की ज्वलनशील विशेषताओं संबंधी भी बड़े स्तर पर अनुसंधान किए गए हैं।
क्या होता है ब्रिकिट्स
कोयले या लकड़ी के स्थान पर प्रयोग होने वाला जैविक ईंधन है। यह पराली को एकत्रित करके दबाकर बनाया जाता है। दबाने से यह कम जगह घेरता है। इसका प्रयोग उद्योग जगत में ईधन के रूप में होता है। जोकि ज्यादा देर तक चलता है।