खराब होने लगी है उत्तर भारत के शहरों की आबोहवा, जानें- गुलाबी और काले रंग के लंग्‍स के मायने

हर बार सर्दियों के दौरान एक तस्वीर चर्चा का केंद्र बनती है। एक ही आयुवर्ग के दो व्यक्तियों के फेफड़े की इस तस्वीर में एक का रंग गुलाबी और दूसरे का रंग काला होता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं कि गुलाबी फेफड़े वाला व्यक्ति हिमाचल प्रदेश का निवासी है जबकि काला पड़ चुका फेफड़ा दिल्ली के किसी व्यक्ति का है। सर्दियां फिर शुरू हो रही हैं। इस दौरान वातावरण में पीएम 2.5 और 10 कणों की सघनता इतनी बढ़ जाती है कि सांस लेना दूभर हो जाता है।

यही प्रदूषण सांस के माध्यम से हमारे फेफड़ों में जाता है और हमें बीमार कर देता है। इस बार हालत एक तो करेला दूसरे नीम चढ़ा वाली है। कोविड-19 मुख्य रूप से श्वसन तंत्र से जुड़ी बीमारी है। इस रोग से बचने के लिए किसी के भी पूरी तरह स्वस्थ होने की पहली शर्त है, लेकिन अगर आपका फेफड़ा स्वस्थ नहीं है तो यह महामारी आपके लिए खतरनाक साबित हो सकती है। अध्ययन बताते हैं कि इस महामारी से उन लोगों की ज्यादा मौतें हुई हैं जिनको पहले से ही कोई गंभीर रोग रहा हो खासकर श्वसन संबंधी।

दिल्ली एनसीआर सहित पूरा उत्तर भारत सर्दियों के दौरान स्माग से घिर जाता है। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जलाई जाने वाली पराली इसकी प्रमुख वजह मानी जाती है। साथ ही सड़कों पर बढ़ता वाहनों का प्रदूषण, निर्माण संबंधी गतिविधियों से उपजा प्रदूषण आदि इसके बड़े स्नोत हैं। दीवाली तक इस इलाके का आलम यह हो जाता है कि लोगों को घरों में कैद होने पर विवश होना पड़ता है। अब इस घातक दुर्योग को सोचिए कि कमजोर फेफड़े वाले व्यक्ति को कोरोना वायरस कितनी जल्दी अपनी जकड़ में ले लेगा और उसकी पकड़ कितनी मजबूत हो सकती है।

उत्तर भारत के शहरों की वायु गुणवत्ता खराब होने लगी है। हमें इसे रोकना होगा। पराली जलाने से तौबा करनी होगी, क्योंकि कोरोना से अगर कोई आपको बचा सकता है तो वह सिर्फ आप हैं। आपका शरीर स्वस्थ है, इम्युनिटी बेहतर है और सारे एहतियात कर रहे हैं तो कोरोना सामान्य सर्दी-जुकाम है, अन्यथा दुनिया में दस लाख से ज्यादा लोगों को यह शिकार बना चुका है। तो सावधान हो जाइए और अपनी मौत को दावत मत दीजिए।

वर्ल्‍ड क्‍वालिटी रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के दस सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में से छह भारत के हैं। हर साल भारत में वायु प्रदूषण 12.5 लाख लोगों का गला घोंट देता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत के शहरों में पीएम 2.5 का स्तर मानक से 500 फीसद अधिक है। अब सोचिए और चेतिएअगर इस सर्दियों में वायु की गुणवत्ता खराब हुई तो कोरोना कितना घातक हो सकता है और जिंदगियों के ऊपर कितना कहर ढा सकता है? उत्तर भारत के विभिन्न शहरों में 10 साल में आबादी, वाहन, उद्योग आदि में वृद्धि पर पेश है एक नजर:

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