खाद्य पदार्थों की पैकेजिंग में इस्तेमाल होने वाले पॉलीकार्बोनेट प्लास्टिक, रसायन व हैवी मेटल के कारण पंजाब, हरियाणा व चंडीगढ़ में बच्चों की सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है। इससे उनमें मोटापा बढ़ रहा है। साथ ही हार्मोनल असंतुलन का खतरा भी पैदा हो गया है।
यह खुलासा पीजीआई के प्रोफेसर रविंद्र खैवाल, विवेक सिंह मलिक, सविता वर्मा और देवी दयाल की टीम की एक अध्ययन रिपोर्ट में हुआ है।
301 बच्चों पर किया गया अध्ययन
पंजाब के फतेहगढ़ साहिब, चंडीगढ़ व हरियाणा के क्षेत्रों में 301 बच्चों पर यह अध्ययन किया गया। बच्चों को मोटे, सामान्य और कम वजन वाले समूहों में बांटा गया। इनमें बिस्फेनॉल ए और भारी धातुओं के स्तर का विश्लेषण उन्नत तकनीक से किया गया। बच्चों की जांच से यह पता लगाने का प्रयास किया गया कि यह रसायन बच्चों की सेहत को नुकसान पहुंचा रहे हैं। स्टडी में सामने आया कि बच्चों में बीपीए व अन्य हैवी मेटल का मिश्रण सेहत पर बुरा प्रभाव डाल रहा है। इससे उनका वजन बढ़ रहा है।
शरीर में बढ़ रही माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा
केमिकल का मिश्रण बच्चों में कम वजन की समस्या भी बढ़ा रहा है। खासकर पंजाब में यह समस्या अधिक है। गर्भवती महिलाओं के साथ ही शिशुओं में लगातार ऐसे मामलों में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ लगातार प्लास्टिक के डब्बे में खाना खाने और प्लास्टिक के बोतलों से पानी पीने से बचने की चेतावनी देते रहे हैं। प्लास्टिक की चीजों के बढ़ते इस्तेमाल के कारण सिर्फ शरीर में माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा बढ़ती जा रही है।
बिस्फेनॉल ए का इस तरह बढ़ रहा खतरा बिस्फेनॉल ए का उपयोग 1950 के दशक से पॉलीकार्बोनेट प्लास्टिक बनाने के लिए किया जाता रहा है। प्लास्टिक की चीजों के माध्यम से ये रिस कर हमारे शरीर में पहुंच रहा है, जो सेहत को नुकसान पहुंचा रहा है। बच्चों ही नहीं, बल्कि बड़ों के लिए भी यह खतरनाक है। स्टडी के अनुसार बीपीए और हैवी मेटल शरीर के हार्मोनल असंतुलन को प्रभावित करते हैं, जिससे खाद्य पदार्थों की पैकेजिंग में रसायनों के उपयोग को सीमित करने की सिफारिश की गई है, क्योंकि बाल्यावस्था में यह अधिक प्रभाव डालते हैं।
पहले 50 वर्ष की आयु से ऊपर के लोगों को मोटापा प्रभावित करता था, लेकिन अब यह बच्चों को भी अपनी चपेट में ले रहा है। हमारी अध्ययन रिपोर्ट में जो तथ्य सामने आए हैं, वो अलर्ट करने वाले हैं। -रविंद्र खैवाल, प्रोफेसर, सामुदायिक चिकित्सा विभाग, पीजीआई।