क्या आपने कभी किलो के भाव कपड़े खरीदे हैं, वह भी एक्सपोर्ट क्वालिटी वाले। अगर नहीं तो घुमनी बाजार स्थित कटपीस कपड़ा मार्केट में आपकी ये ख्वाहिश पूरी हो जाएगी वह भी शोरूम व होजरी मार्केट से काफी कम रेट पर। थोक व्यापारी व दुकानदार तो इस मार्केट का खूब लाभ उठाते हैं पर आम उपभोक्ताओं को बाजार की जानकारी नहीं है। यकीन मानिए एक बार यहां जाने के बाद खुले बाजार से कपड़े लेना भूल जाएंगे।
बाजार में क्या-क्या है मिलता
कटपीस मार्केट में वैरायटी इतनी कि बच्चों से लेकर बड़ों तक के लिए जो भी लेना हो वह मिल जाएगा। कतरन से लेकर थान सब मिल जाएगा। फैशन के हिसाब से रेडीमेड कपड़े भी उपलब्ध हैं। लेडीज में सूट, लेगिंग, कुर्तियां, टॉप, मैक्सी, साडिय़ां, बच्चों में बाबा सूट, बड़ों में पैंट शर्ट, जींस से लेकर कोट पैंट तक सब कुछ हैं यहां। तौलिया, चादर से लेकर कंबल तक खरीद सकते हैं।
कहां पर है बाजार
कटपीस कपड़ा मार्केट घुमनी बाजार में है। यह मेस्टन रोड से बिरहाना रोड के बीच चौक सराफा के करीब है। ये नौघड़ा, जनरलगंज कपड़े के थोक बाजार से भी बड़ी, पुरानी और किफायती मार्केट है।
यहां से आते हैं कपड़े
सूरत, इंदौर, मुंबई, अहमदाबाद, दक्षिण भारत समेत देश के कई शहरों में कपड़ों का निर्माण होता है। इसमें एक्सपोर्ट के लिए भी कपड़े होते हैं। कई बार क्वालिटी कंट्रोलर माल रिजेक्ट कर देते हैं तो कई बार आर्डर कैंसिल हो जाते हैं, जिससे पूरी लाट बच जाती है। इसे फैक्ट्री में वापस रखना ज्यादा खर्चीला पड़ता है। ऐसे में कपड़ों को किलो के भाव फैक्ट्री मालिक निकलवा देते हैं। इसके अलावा थान बनाने के दौरान किनारे के कपड़ों को काटकर निकाल दिया जाता है। ये सभी कपड़े कानपुर की कटपीस मार्केट तक पहुंचते हैं। कानपुर से प्रदेश के अन्य शहरों, बिहार कोलकाता तक माल भेजा जाता है।
बाजार का इतिहास
शहर में कटपीस मार्केट लगभग सौ साल पुराना है। उस दौर में उत्तर भारत का मैनचेस्टर कहे जाने वाले कानपुर में टेक्सटाइल उद्योग चरम पर था। ब्रिटिश इंडिया कॉरपोरेशन और नेशनल टेक्सटाइल कॉरपोरेशन की एलगिन मिल, लाल मिल, स्वदेशी कॉटन मिल, लक्ष्मी कॉटन मिल जैसी कई मिलें चलती थीं। तब इन मिलों के कपड़ों का वेस्टेज यहां पर बिकता था। तभी से इसका नाम कटपीस मार्केट पड़ गया। उस समय देशभर के व्यापारी खरीदारी करने के लिए आते थे।
व्यापारियों का ये है कहना
पिता ने इस दुकान को लगभग सौ साल पहले स्थापित किया था। तब मुश्किल से आठ-दस कटपीस की दुकानें थीं। इसके बाद बाजार तेजी से बढ़ा। इस समय 350 दुकानें व उनके गोदाम हैं। इसमें कटपीस के साथ फ्रेश कपड़े भी मिलते हैं।
-उमाशंकर जायसवाल, थोक व्यवसायी
शहर में जब मिलेंं चलती थीं, तभी कटपीस बाजार वजूद में आया। कपड़े बेहद सस्ते होने की वजह से बाजार में हमेशा व्यापारियों की भीड़ लगी रहती थी। अब बाजार में बाहर की फैक्ट्रियों से माल आता है, इसलिए लागत भी बढ़ गई है।
-अशोक कुमार गुप्ता, व्यवसायी
कटपीस बाजार से हजारों लोगों का रोजगार चल रहा है। शोरूम तक में यहां के कपड़े बिकते हैं। यहां पर विदेशी फैशन की डिजाइन व क्वालिटी मिल जाएगी। आर्डर कैसल होने पर माल किलो के भाव बिकता है।
-रजत जायसवाल, थोक व्यवसायी
यह बाजार उपभोक्ताओं के लिए बहुत सस्ता है। कपड़े तौल में बहुत सस्ते पड़ते हैं। यहां से दुकानदार खरीदते हैं। रोजगार करने के लिए ये मार्केट बहुत अच्छी है। कतरन से लेकर थान तक खरीद सकते हैं।