भगवान् विष्णु को संरक्षक और भगवान् शिव को विनाशक कहा जाता है. ऐसे में कई लोग यह सोचते है की त्रिदेव की उत्त्पत्ति कैसे हुई अर्थात कैसे उन्होंने जन्म लिया इस संसार में. अगर आप भी इस बारे में सोचते हैं तो आज हम आपको एक प्रसंग बताने जा रहे हैं जिसे सुनकर पढ़कर आप समझ जाएंगे कि कैसे हुई थी त्रिदेव की उत्पति..?
प्रसंग – भगवान शिव ने एक बार सोचा – “अगर मै विनाशक हूँ तो क्या मै हर चीज का विनाश कर सकता हूँ ? क्या मै ब्रह्मा और विष्णु का विनाश भी कर सकता हूँ ? क्या उन पर मेरी शक्तियां कारगर होंगी?” जब भगवान् शिव के मन में यह विचार आया तो भगवान् ब्रह्मा और विष्णु समझ गए कि उनके मन में क्या चल रहा है. वे दोनों मुस्कुराने लगे. ब्रह्मा जी बोले – “महादेव. आप अपनी शक्तियां मुझ पर क्यों नहीं आजमाते ? मै भी यह जानने के लिए उत्सुक हूँ कि आपकी शक्तियां मुझ पर कारगर हैं या नहीं.
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”जब विष्णु भगवान् ने भी हठ किया तो भगवान् शिव ने सकुचाते हुए ब्रह्मा जी के ऊपर अपनी शक्तियों का प्रयोग कर दिया. देखते ही देखते ब्रह्मा जी जलकर भष्म हो गए. जैसे ही शिव जी ने अपनी शक्तियों का प्रयोग किया ब्रह्मा जी जलकर गायब हो गए और उनकी जगह एक राख का छोटा सा ढेर लग गया. शिव जी चिंतित हो गए – “ये मैंने क्या किया ? अब इस विश्व का क्या होगा ?” भगवान् विष्णु मुस्कुरा रहे थे. उनकी मुस्कान और भी चौड़ी हो गई जब उन्होंने शिव जी को पछताते हुए घुटनों के बल बैठते देखा.शिव जी पछताते हुए उस राख को मुठ्टी में लेने ही वाले थे कि उस राख में से ब्रह्मा जी पुनः प्रकट हो गए.
वे बोले –“महादेव, मै कहीं नहीं गया हूँ. मै यही पर हूँ. देखो , आपके विनाश के कारण इस राख की रचना हुई. और जहाँ भी रचना होती है वहां मैं होता हूँ. इसलिए मै आपकी शक्तियों से भी समाप्त नहीं हुआ.” भगवान् विष्णु मुस्कुराये और बोले –“महादेव , मै संसार का रक्षक हूँ. मै भी देखना चाहता हूँ कि क्या मै आपकी शक्तियों से स्वयं कि रक्षा कर सकता हूँ ? कृपा मुझ पर अपनी शक्तियों का प्रयोग करें.” जब ब्रह्मा जी ने भी हठ किया तो शिव जी ने विष्णु जी को भी अपनी शक्तियों से भष्म कर दिया. विष्णु जी के स्थान पर अब वहां राख का ढेर था लेकिन उनकी आवाज़ राख के ढेर से अब भी आ रही थी. वह आवाज़ थी – “महादेव , मै अब भी यही हूँ. कृपा रुके नहीं. अपनी शक्तियों का प्रयोग इस राख पर भी कीजिये. तब तक मत रुकिए जब तक कि इस राख का आखिरी कण भी ख़त्म न हो जाये.”
भगवान् शिव ने अपनी शक्तियों को और तेज कर दिया. राख कम होनी शुरू हो गयी. अंत में उस राख का सिर्फ एक कण बचा.भगवान् शिव ने सारी शक्तियां लगा दी लेकिन उस कण को समाप्त नहीं कर पाए. भगवान् विष्णु उस कण से पुनः प्रकट हो गए और यह सिद्ध कर दिया कि उन्हें भगवान् शिव भी समाप्त नहीं कर सकते.भगवान् शिव ने मन ही मन सोचा – “मुझे विश्वास हो गया कि मै ब्रह्मा और शिव को सीधे समाप्त नहीं कर सकता. लेकिन अगर मै स्वयं का विनाश कर लूँ तो वे भी समाप्त हो जायेंगे क्योंकि अगर मै नहीं रहूँगा तो विनाश संभव नहीं होगा और बिना विनाश के रचना कैसी? अतः ब्रह्मा जी समाप्त हो जायेंगे ? और अगर रचना ही नहीं रहेगी तो उसकी रक्षा कैसी? अतः विष्णु जी भी नहीं रहेंगे. “ ब्रह्मा और विष्णु समझ रहे थे कि शिव जी के मन में क्या चल रहा है. वे दोनों मुस्कुराये.
भगवान् शिव ने स्वयं का विनाश कर लिया और जैसा वे सोच रहे थे वैसा ही हुआ. जैसे ही वे जलकर राख में तब्दील हुए , ब्रह्मा और विष्णु भी राख में बदल गए. कुछ समय के लिए सब कुछ अंधकारमय हो गया. वहां उन तीनो देवो की राख के सिवाय कुछ नहीं था. उसी राख के ढेर से एक आवाज़ आई – “मै ब्रह्मा हूँ. मै देख सकता हूँ कि यहाँ राख की रचना हुई है. जहाँ रचना होती है , वहां मै होता हूँ.” इस तरह उस राख से पहले ब्रह्मा जी उत्पन्न हुए और उसके बाद विष्णु और शिव जी क्योंकि जहाँ रचना होती है वहां पहले सुरक्षा आती है और फिर विनाश. इस तरह शिव जी को बोध हुआ कि त्रिदेव का विनाश असंभव है. इस घटना की स्मृति के रूप में भगवान् शिव ने उस राख को अपने शरीर से लेप लिया जिसे शिव भस्म कहा जाता है.