कोरोना वायरस के अफवाह से जिले का पोल्ट्री उद्योग संकट में है। यहां बिक्री करीब 80 फीसद तक प्रभावित है। स्थिति यह है कि इसके कारोबारी लोगों को मुफ्त में मुर्गे बांट रहे हैं। निश्शुल्क चिकेन की दावत दे रहे हैं। फिर भी इसे लेकर बाजार सामान्य नहीं हो रहा है।
जिले में करीब 20 से 25 हजार छोटे बड़े पोल्ट्री फार्म हैं। इसमें करीब 10 हजार कुक्कुट विकास नीति तैयार किए गए लेयर फार्मिंग (जहां सिर्फ अंडे तैयार होते हैं) करीब पांच हजार ब्रायलर फार्म हैं।
100 से अधिक हैचिरियां हैं, जहां अंडे से चूजे तैयार होते हैं। इसके कारोबार करीब डेढ़ से दो लाख लोग जुड़े हुए हैं, पर कोरोना वायरस के खौफ से सभी के चेहरे उतरे हुए हैं।
कोरोना के चलते जिले में यह उद्योग पूरी तरह धड़ाम हो चुका है। इससे इस व्यापार से जुड़े लोगों को भारी नुकसान हो गया है। जिले में करीब 15 फरवरी से बिक्री प्रभावित हुई है।
भारी नुकसान के चलते कारोबारियों को मुर्गे पालने में कठिनाई हो रही है। एक किग्रा का मुर्गा तैयार करने में कारोबारी पर करीब 70 रुपये खर्च आता है।
वह अब 10-15 रुपये किग्रा भी नहीं बिक पा रहा है। मुर्गा बड़े होने के साथ उसे अधिक दानों की आवश्यकता होगी। कारोबारियों के समक्ष समस्या यह है कि उन्हें अब दाने मिल नहीं पा रहे हैं। ऐसे में कई कारोबारी उन्हें मिट्टी में दबा दे रहे हैं। गीडा क्षेत्र में कुछ व्यापारियों ने मुर्गों को भूमि में दबा दिया है।
इस कारोबार से जुड़े डॉ संजय रावत का कहना है कि जिले भर में पोल्ट्री उद्योग के चलते करीब एक से डेढ़ करोड़ की आय सामान्य दिनों में लोगों को हो जाती है, कोरोना के खौफ को लेकर आय तो दूर, उद्योग से जुड़े लोगों की घर की पूंजी भी साफ हो रही है। कोरोना का मामला सामने आने के बाद करीब 30 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है।
हैचिरी व पोल्ट्री फार्म पर रा फीड मैटिरियल (कच्चा खाद्य उत्पाद) की आपूर्ति कराने वाली कंपनियों का करीब करीब 20 करोड़ से अधिक का बकाया है।
इसके चलते उनके द्वारा मुर्गियों को खाने वाले दाने व चूजें देना बंद कर दिया गया है। इधर मुर्गों के बढऩे से कारोबारियों के समक्ष समस्या यह आ गई है कि उसे पाला कैसे जाए।
70 रुपये से 100 रुपये किलो तक बिकने वाला मुर्गा फार्म से 10 से 15 रुपये किलो की दर से बिक रहा है। दुकान से यह 25 से 40 रुपये की दर से बिक रहा है। ऐसे ही अंडे की बिक्री बड़े पैमाने पर प्रभावित हुई है।