ईरानी राष्ट्रपति हसन रुहानी ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई वैश्विक नेताओं को पत्र लिखा, जिसमें COVID-19 से लड़ने के प्रयासों को अमेरिकी प्रतिबंधों से प्रभावित होने की बात कही गई है. राष्ट्रपति हसन रुहानी ने अपने पत्र में जोर देकर कहा कि कोरोनो वायरस के खिलाफ लड़ाई के लिए संयुक्त अंतरराष्ट्रीय उपायों की आवश्यकता है. उन्होंने इस महामारी से निपटने के लिए ठोस रणनीति बनाने पर जोर दिया.
रुहानी ने अपने पत्र में लिखा है, ‘वायरस कोई सीमा नहीं पहचानता और राजनीतिक, धार्मिक, जातिगत और नस्लीय अवधारणाओं से ऊपर उठकर लोगों की जान लेता है.’ इसी मामले में ईरानी विदेश मंत्री जवाद जरीफ ने एक ट्वीट में लिखा, जब पूरी दुनिया में कोरोना वायरस की महामारी से हड़कंप मचा है, ऐसे नाजुक वक्त में प्रतिबंध लगाना बेहद अनैतिक है. उन्होंने लिखा है, राष्ट्रपति रुहानी ने दुनिया के अपने समकक्षों को पत्र लिखकर अमेरिकी प्रतिबंधों पर वैश्विक नेताओं का ध्यान खींचा है. उन्होंने कहा है कि बेगुनाहों की जान जाते देखना घोर अनैतिक है. वायरस न तो राजनीति देखता है न भूगोल, इसलिए हमें भी ऐसा नहीं देखना चाहिए.
ईरानी मीडिया में आई खबरों के मुताबिक, ईरानी राष्ट्रपति ने विश्व नेताओं को लिखे अपने पत्र में कहा है कि उनके देश ने दो साल के व्यापक और अवैध प्रतिबंधों से उत्पन्न गंभीर बाधाओं और प्रतिबंधों का सामना किया है. इसके बावजूद अमेरिका कोरोनो वायरस का प्रकोप शुरू होने के बाद भी ईरान पर दबाव बनाने से बाज नहीं आ रहा. अमेरिका के विदेश मंत्री ने “बेशर्मी” से देशों से आग्रह किया कि वे तेहरान को मानवीय सहायता तभी भेजें जब वॉशिंगटन की “नासमझ और अमानवीय” मांगें पूरी हों.
संयुक्त राष्ट्र में ईरान के दूत ने भी प्रतिबंधों को हटाने के लिए अमेरिका को फोन किया और कोरोनो वायरस प्रकोप से संबंधित प्रयासों को आगे बढ़ाने के लिए इस मामले को राजनीति से परे रखने का आग्रह किया. संयुक्त राष्ट्र में ईरानी दूत माजिद तख्त रवांची ने एक ट्वीट में लिखा है कि ऐसी दर्दनाक परिस्थिति में अमेरिका को राजनीति से ऊपर उठकर प्रतिबंधों में ढील देनी चाहिए और मानवीय प्रयासों को आगे बढ़ाना चाहिए.
बता दें, पश्चिम एशिया में ईरान कोरोना वायरस का केंद्रबिंदु बन गया है जहां 12,700 कोरोना वायरस के पुष्ट मामले सामने आए हैं. कई लोगों की मौत हुई है और संक्रमित लोगों में सरकार के कई वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल हैं.
गौरतलब है कि भारत ईरान का एक महत्वपूर्ण भागीदार रहा है और भले ही तेहरान ने कश्मीर, सीएए या हाल के दिल्ली दंगों के मामले में भारत के निर्णयों पर सवाल उठाया हो, दिल्ली ने हमेशा से उसके साथ अपनी भागीदारी बढ़ाई है. अमेरिका के ईरान पर दंडात्मक प्रतिबंध लगाए जाने के बाद से ईरान ने गंभीर आर्थिक संकट का सामना किया है. भारत ने ईरान से अपने तेल आयात को कम कर दिया है. जबकि चाबहार बंदरगाह को अमेरिकी प्रतिबंधों से छूट दी गई है, तब भी बंदरगाह का बहुत सीमित काम है जिससे ईरान को अपनी अर्थव्यवस्था संभालने में बहुत ज्यादा मदद नहीं मिलती है.