कोरोना वायरस के चलते कश्मीर घाटी में मधुमक्खी पालन से जुड़े चार लाख लोगों की रोजी रोटी पर संकट खड़ा हो गया है। न तो तैयार पड़ा शहद बिक रहा है और न ही नए शहद को बनाने के लिए फूलों वाले इलाकों में जाना मुमकिन हो पा रहा है।
मधुमक्खी पालन से जुड़े लोग मधुमक्खियों की कॉलोनियों के साथ पंजाब और राजस्थान जैसे राज्यों के अलावा कश्मीर के अन्य क्षेत्रों में जाते हैं जहां उन्हें फूल मिलते हैं लेकिन लॉकडाउन में यह संभव नहीं हो पा रहा है।
कई दशकों से इस व्यवसाय से जुड़े श्रीनगर के बिलाल अहमद कहते हैं कि हमें माइग्रेशन में दिक्कत आ रही है। इसका असर शहद के उत्पादन पर पड़ा है।
जो शहद बना पड़ा है उसे भी नहीं बेच पा रहे हैं। अगर ऐसे ही हालात रहेंगे तो 60 फीसदी उत्पादन प्रभावित होगा।
जम्मू-कश्मीर का वातावरण मधुमक्खी पालन के लिए अनुकूल है। घाटी में ही पिछले साल 350 टन शहद का उत्पादन किया गया था।
बिलाल अहमद का कहना है कि इस कारोबार के साथ एक लाख से ज्यादा युवा जुड़े हुए हैं। मजदूरों को मिलाकर इनकी संख्या चार लाख से भी ज्यादा है। घरेलू बाजार के साथ ये शहद फ्रांस, यूएई समेत कई मुल्कों में भेजा जाता है।