भारत सरकार इस समय कैच-22 की स्थिति में फंसी हुई है। एक तरफ तो वह मानवता के आधार पर कोविड-19 (कोरोना वायरस) से निपटने में अहम माने जाने वाली मलेरिया की दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन दुनिया के दूसरे देशों को भी उपलब्ध कराना चाहती है, लेकिन घरेलू हालात जिस तरह से बदल रहे हैं उसे देखते हुए वह इसका निर्यात खोल कर जोखिम भी नहीं उठाना चाहती है। दूसरी तरफ अमेरिका, ब्राजील समेत कम से कम 30 देश भारत से इस दवा की आपूर्ति करने की मांग कर चुके हैं। सरकार फिलहाल दवा निर्माताओं से बात कर रही है ताकि इस दवा का उत्पादन तेजी से बढ़ाया जा सके, हालांकि अधिकारी स्वीकार कर रहे हैं कि आनन फानन में उत्पादन भी बढ़ाना संभव नहीं है।
अमेरिका व ब्राजील समेत कई देशों ने पीएम से मांगी मदद
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की दो दिन पहले पीएम नरेंद्र मोदी के साथ हुई टेलीफोन बातचीत में क्लोरोक्विन दवा का निर्यात करने का आग्रह किया गया था। बाद में ट्रंप ने बताया भी कि, ‘हमने मोदी से मलेरिया के इलाज में काम आने वाली दवा हाइड्राक्लीक्लोरोक्विन दवा का निर्यात खोल दे। भारत में यह दवा बड़े पैमाने पर बनती है। यह दवा कोरोना के इलाज में भी कारगर है। मोदी ने कहा है कि वह गंभीरता से विचार करेंगे।’ ट्रंप के इस बयान के कुछ ही घंटे बाद ब्राजाली के राष्ट्रपति जे एम बोलसोनारो ने भी ट्विट कर कहा कि, ‘उनकी भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी से बात हुई है और भारत से हाइड्राक्लीक्लोरोक्विन की आपूर्ति जारी रखने का आग्रह किया गया है। हम लोगों की जान बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते।’
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अमेरिकी डॉक्टरों ने भारतीय दवा को बताया उपयोगी
भारतीय अधिकारियों का कहना है कि अमेरिका, ब्राजील के अलावा 30 यूरोपीय व एशियाई देशों ने भारत से यह दवा की मांग की है। इसमें पड़ोसी देश भी शामिल है। दरअसल, जब से अमेरिकी डाक्टरों ने यह कहा है कि मलेरिया में इस्तेमाल होने वाली यह दवा कोरोना के इलाज के लिए कारगर है, तब से इसकी मांग बढ़ गई है। दूसरी तरफ, भारत पहले यह सुनिश्चित करना चाहता है कि उसकी 135 करोड़ आबादी के लिए यह उपलब्ध रहे। इसलिए शनिवार को इसके निर्यात पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया। यहां तक कि विशेष आर्थिक जोन से होने वाले निर्यात पर भी रोक लगा दिया गया है। अभी तक अग्रिम राशि जिन कंपनियों ने ले लिया था उन्हें निर्यात की इजाजत थी, लेकिन अब उस पर भी रोक है। इसके पीछे वजह यह है कि सरकार अभी सही तरीके से आकलन करने में जुटी है कि भारत में इस दवा का उत्पादन क्षमता कितना है और आपातकालीन हालात में इसे कितना बनाया जा सकता है।
आम दिनों में पूरी दुनिया की जरूरत पूरी कर सकता है भारत
दवा निर्माण से जुड़े उद्योग सूत्रों का कहना है कि भारत में मोटे तौर पर चार कंपनियां इपका, मंगलम, व्हाइटल हेल्थ केयर और जाइडर कैडिला इसे बनाती हैं। इसमें मुख्य तौर पर 47 डाइक्लोरोक्वीनोलिन नाम का कच्चा माल लगता है और इसे बनाने के लिए ईएमएमई नाम के एक अलग उत्पाद का उपयोग होता है। ईएमएमई के लिए भारत मुख्य तौर पर चीन पर निर्भर रहता है। मोटे तौर पर एक बार में भारत में संयुक्त तौर पर हाइड्राक्लीक्लोरोक्विन बनाने के लिए 60-80 टन कच्चा माल होता है, जिससे इसकी 20 करोड़ टैबलेट बनाई जा सकती है। आम दिनों में यह भारत के साथ ही दुनिया की जरुरत पूरा करने के लिए काफी है। लेकिन अभी तमाम देशों की मांग पूरी करने में भारत भी सक्षम नहीं है। साथ ही अपने देश के नागरिकों और यहां संभावित आपातकालीन स्थिति का भी ख्याल रखना है।