नई दिल्ली: विश्वरूप बड़े ही तेजस्वी श्रृषि थे। उन्हे त्रिसिरा कहके भी संबोधित किया जाता था। क्योकि उनके तीन मस्तक थे। वो एक मूंह से वेदे को पाठ करते थे। दूसरे मूंह से मधुपान और तीसरे मुंह से संपूर्ण दिशाओं का निरीक्षण करते थे। भोजन करते समय वो एक मुंह से वो सोमरस पीते, दूसरे मुंह से सूरा और तीसरे मुंह से अन खाते थे।
एक दिन यज्ञ के दौरान विश्वरूप बड़ी विनय के साथ देवताओं को आहुती दे रहे थे। साथ ही वो छुप छुप कर असुरों को भी आहुति दे रहे थे। वो इसलिए क्योंकि उनकी माता असुर कुल की थी। मातृ स्नेह के कारण वो यज्ञ करते समय इस प्रकार असुरों को भी लाभ पहुंचाया करते थे।
लेकिन इस बार देवराज इंद्र उन्हें ऐसा करते देख लिया। तो देवराज इंद्र ने सोचा कि ये तो देवताओं की प्रति अपराध और धर्म की आड़ कपट कर रहे है। इसे देख कर देवराज इंद्र डर गए और क्रोध से भरकर उन्होंने बड़ी फुर्ती से विश्वरूप के दोनों सिरों को काट डाला। ब्रह्म ज्ञानी विश्वरूप के तीनों सिर धड़ से अलग होकर जैसे ही धरती पर गीरे तो उनके पहले सिर जिसे वो सोमरस पीते और वीडियो के पाठ करते थे वो फौरन ही पपीहा और कबूतर बनकर उड़ गए। दूसरे सिर जिससे वो सूरा और मधुपान किया करते थे वो गौरेया में बदल गए और तीसरे सीर जिससे वो अन खाते और सभी दिशाओं पर नजर रखते थे वो तीतर में तबदील हो गए। तो इस प्रकार विश्वरूप के तीनो मस्तक पक्षियों बदल गए थे।
त्रिसिरा के मरते ही सभी देवता और श्रृषि डर गए क्योकि देवराज इंद्र ने अपने गुरु की हत्या की थी। और साथ ही साथ वो ब्रह्म हत्या भी थी। देवराज चाहते तो विश्वरुप की ह्त्या से लगे पाप को दूर कर सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा करना उचित नही समझा और हाथ जोड़कर उसे स्वीकार कर लिया।