कृषि कानूनों को वापस लेने पर अड़े किसान, सुप्रीम कोर्ट लेगी बड़ा फैसला

केंद्र सरकर के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसान हटने को तैयार नहीं हैं। ये संगठन कृषि कानूनों को वापस लेने पर अड़े हैं। इन्हें रास्ते से हटाने वाली याचिकाओं पर कोर्ट बृहस्पतिवार को (आज) फिर सुनवाई करेगा। आज किसानों के धरना-प्रदर्शन का 22वां दिन है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को नोटिस देकर रास्ता रोकने वाले किसान संगठनों के नाम मांगे हैं। सरकार अदालत में इनके नाम देगी। वहीं, आठ किसान संगठनों को भी सुप्रीम कोर्ट में नोटिस भेजा है।  

बुधवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा, सरकार और किसानों की अब तक हुई बातचीत से समाधान निकलता नहीं दिख रहा है। इसे नाकाम ही होना था। हम दोनों पक्षों की एक कमेटी बना देते हैं, जो आपस में बातचीत कर गतिरोध को समाप्त करेगी। शीर्ष कोर्ट ने दाखिल याचिकाओं पर केंद्र व अन्य को नोटिस जारी कर जवाब भी मांगा है।

सीजेआई एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन की पीठ ने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, आपकी (सरकार) बातचीत बेनतीजा रही है, आगे भी इसके विफल रहने के ही आसार हैं। आप कह रहे हैं कि बातचीत को तैयार हैं। जवाब में मेहता ने कहा, हां हम बात करेंगे।

इस पर पीठ ने कहा, आप किसान संगठनों के नाम बताइए जिन्होंने सड़क जाम कर रखी है। हम एक संयुक्त कमेटी बना देते हैं, जिसमें सरकार और किसान संगठनों के प्रतिनिधि होंगे, यह कमेटी आपस में बातचीत कर इस गतिरोध को समाप्त करेगी।

पीठ ने कहा, क्योंकि यह मामला अब राष्ट्रीय स्तर का होता दिख रहा है, आप इसमें देशभर के किसान संगठनों के प्रतिनिधियों को भी शामिल करें।

इस पर मेहता ने कहा, हम उन संगठनों के नाम दे सकते हैं, जिनसे सरकार की बात हो रही है। इसमें भारतीय किसान यूनियन और कुछ अन्य संगठनों के सदस्य हैं। मेहता ने आगे कहा, लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि कुछ अन्य लोगों ने किसानों के प्रदर्शन पर कब्जा कर लिया है। इसमें दिक्कत ये है कि आंदोलन कर रहे किसान चाहते हैं कि कानून वापस लिया जाए।

सरकार के मंत्री किसानों से कानून पर उनकी आपत्तियों को लेकर चर्चा करना चाहते थे, लेकिन उन्होंने (किसान नेताओं) ने इससे इनकार कर दिया। उनके पास कानून वापस लेने की मांग पर सिर्फ  दो जवाबों का विकल्प हैं- हां या नहीं। जबकि सरकार हर बिंदु पर ठोस और सकारात्मक बात करना चाहती है।

मेहता की दलील के जवाब में सीजेआई ने कहा, किसान समझते हैं कि कानून उनके खिलाफ है। इसलिए आपकी बातचीत विफल रही और ऐसा होना ही था। अगर सरकार मसले का हल निकालना चाहती है तो किसानों को हमारे समक्ष लेकर आएं, जो बातचीत के जरिये समाधान चाहते हों। कोर्ट ने सभी पक्षों के वकीलों के समक्ष संयुक्त कमेटी बनाने का प्रस्ताव दिया और कमेटी के लिए सदस्यों के नाम की सूची मांगी.

पीठ ने दिल्ली सीमाओं पर किसानों के डटे रहने से आवाजाही में मुश्किलों का हवाला देते हुए किसानों को हटाने की मांग पर याचिकाकर्ता को आंदोलन में शामिल संगठनों को मामले में वादी बनाने को कहा। कोर्ट अब बृहस्पतिवार को इस मामले में सुनवाई करेगा.

याचिकाकर्ता की ओर से शाहीन बाग को लेकर शीर्ष कोर्ट के एक आदेश का हवाला देने पर पीठ ने दो टूक कहा कि कानून व्यवस्था के मामले में कोई भी स्थायी नजीर नहीं हो सकती। दरअसल विधि छात्र ऋषभ शर्मा ने दलील दी थी कि किसानों के सड़क जाम करने से दिल्ली आने-जाने वालों को भारी असुविधा हो रही है। रास्ता बंद करना उनके मौलिक अधिकार के खिलाफ है और शाहीन बाग मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी को भी अनिश्चितकाल के लिए सड़क बंद करने की इजाजत कतई नहीं दी जा सकती। सुनवाई के दौरान किसानों की ओर से कोई न होने के कारण पीठ ने सरकार से पूछा, क्या आपने रास्ते को बंद कर रखा है? जवाब में मेहता ने कहा, हमने सड़क को ब्लॉक नहीं किया है इस पर पीठ ने कहा, तो फिर किसानों को दिल्ली आने से रोका किसने है?

तुषार मेहता ने सुनवाई के दौरान पीठ को बताया कि किसानों और सरकार के बीच सकारात्मक बातचीत चल रही है। उन्होंने भरोसा दिलाया कि सरकार ऐसा कुछ भी नहीं करेगी जो किसानों के हितों के खिलाफ हो। पीठ ने मेहता से आंदोलन में शामिल किसान संगठनों के नाम देने को कहा और याचिकाकर्ताओं को उन्हें वादी बनाने को कहा।

सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार के वकील राहुल मेहरा ने कहा, किसान देश के हित में वहां जमे हैं और ठंड भी बढ़ गई है। इस पर मेहता ने कहा, मेहरा ऐसे कह रहे हैं मानो वह किसानों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। इस पर पीठ ने दोनों वकील से बाहर जाकर इस तरह की बातें करने को कहा। साथ ही पीठ ने कहा, कृषि कानूनों को लेकर सुलह कराने में दिल्ली सरकार की कोई भूमिका नहीं है।

पीठ ने याचिकाओं पर कुछ किसान संगठनों को भी नोटिस जारी किया है। इनमें भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू-राकेश टिकैत), बीकेयू-सिद्धपुर (जगजीत एस दल्लेवाल), बीकेयू-राजेवाल (बलबीर सिंह राजेवाल), बीकेयू-लाखोवाल (हरिंदर सिंह लाखोवाल), जम्हूरी किसान सभा (कुलवंत सिंह संधू), बीकेयू दकौंदा (बूटा सिंह बुर्जगिल), बीकेयू-दोआबा (मंजीत सिंह राय) और कुल हिंद किसान फेडरेशन (प्रेम सिंह भांगू) शामिल हैं.

उधर, आंदोलन कर रहे किसान संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट के सुझाव को भी ठुकराते हुए कहा, नई कमेटी बनाना समाधान नहीं है। सरकार पहले तीनों कानून वापस ले, उसके बाद ही बातचीत होगी।

उन्होंने कहा, सरकार को संसद में कानून पास कराने से पहले किसानों की कमेटी बनानी चाहिए थी, जो इस पर चर्चा करती। तब तो कोई चर्चा नहीं की। आंदोलन में शामिल संगठनों में से एक राष्ट्रीय किसान मजदूर सभा के नेता अभिमन्यु कोहार ने कहा, हम सरकार के ऐसे ही प्रस्ताव को पहले भी नकार चुके हैं।

वैसे भी सरकार के मंत्रियों और किसान नेताओं के बीच पहले भी कई दौर की बातचीत हो चुकी है, वह भी एक कमेटी ही थी। इन सब से कोई समाधान नहीं निकलेगा। हमारी चिंताओं का समाधान सिर्फ कानून वापसी है। भारतीय किसान यूनियन (एकता उगराहां) ने भी कहा कि नई कमेटी का कोई मतलब नहीं है। हम नई कमेटी का हिस्सा तब ही बनेंगे, जब सरकार कानून वापस ले लेगी।

‘सुप्रीम कोर्ट को तीन कृषि कानूनों की संवैधानिकता पर निर्णय लेना चाहिए। इन कानूनों की व्यवहार्यता और वांछनीयता पर निर्णय लेना न्यायपालिका का काम नहीं है। यह किसानों और उनके चुने हुए नेताओं के बीच की बात है। शीर्ष कोर्ट की निगरानी में वार्ता गलत रास्ता है। – योगेंद्र यादव, नेता स्वराज इंडिया 

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