कृषि कानूनों का विरोध : 1 मार्च से देश भर के किसान दूध 100 रुपये लीटर बेचेगे : मलकीत सिंह

कृषि कानूनों का विरोध बढ़ता जा रहा है। दिल्ली सीमा पर किसान लगातार आंदोलन कर रहे हैं तो किसानों की महापंचायतें भी जारी हैं। सरकार मान नहीं रही तो किसानों ने विरोध का दायरा बढ़ाना शुरू कर दिया है। इससे आमजन को परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। भारतीय किसान यूनियन ने अब कृषि कानूनों के विरोध में बड़ा एलान किया है।

सिंघु बार्डर पर बैठे संयुक्त मोर्चा के पदाधिकारियों ने दूध के दाम बढ़ाने की बात कही है। भारतीय किसान यूनियन के जिला प्रधान मलकीत सिंह ने बताया कि एक मार्च से किसान दूध के दामों में बढ़ोतरी करने जा रहे हैं, जिसके बाद 50 रुपये लीटर बिकने वाला दूध अब दोगुनी कीमत यानी 100 रुपये लीटर बेचा जाएगा। मलकीत सिंह का कहना है कि केंद्र सरकार ने डीजल के दाम बढ़ाकर किसानों पर चारों तरफ से घेरने का भरसक प्रयास किया है, लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा ने तोड़ निकलाते हुए दूध के दाम दोगुने करने का कड़ा फैसला ले लिया है। अगर सरकार अब भी न मानी तो आने वाले दिनों में आंदोलन को शांतिपूर्वक आगे बढ़ाते हुए हम सब्जियों के दामों में भी वृद्धि करेंगे।

सौ रुपये लीटर दूध बेचने से जनता पर भार पड़ने के सवाल पर मलकीत सिंह ने कहा कि अगर जनता 100 रुपये लीटर पेट्रोल ले सकती है तो फिर 100 रुपये लीटर दूध क्यों नहीं ले सकती। अब तक किसान एक लीटर दूध को नो प्राफिट नो लॉस पर बेचता आया है। यह तो अभी शुरुआत होगी अगर सरकार फिर भी कृषि कानूनों को वापस नहीं लेती है तो आने वाले दिनों में सब्जियों के दाम दोगुने किए जाएंगे।

इससे पहले किसानों की तरफ से खड़ी फसल को बर्बाद करने का सिलसिला शुरू किया गया था। भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने सरकार को चेतावनी देते हुए फसल तक को जला देने की बात कही तो किसानों ने अपनी फसलों की जुताई करनी शुरू कर दी थी। अब किसान नेताओं को फसलों को नष्ट नहीं करने की अपील करनी पड़ रही है और फसल जलाने का मतलब फसल की देखरेख नहीं करने की बात कहकर समझाना पड़ रहा है। किसानों को बैठक में बताया जा रहा है कि उनको फसलों की जुताई नहीं करनी है, क्योंकि उससे सरकार की जगह किसानों का नुकसान होगा।

कुंडली बॉर्डर पर किसानों की बैठक में भाकियू अंबावता के महासचिव शमशेर दहिया ने कहा कि राकेश टिकैत ने फसलों को नष्ट करने के लिए नहीं कहा था। बल्कि उनका कहने का मतलब था कि सरकार मांग पूरी नहीं करती है तो किसान अपनी फसलों की देखरेख करने की जगह दिल्ली के बॉर्डर पर डटे रहेंगे। इसलिए किसी किसान को अपनी फसलों की जुताई नहीं करनी है। इस तरह फसल नष्ट करने की जगह आंदोलन में सहयोग करना है। अगर आंदोलन लंबा चलता है तो उस फसल के पकने पर साथियों का सहयोग किया जा सकता है।

शमशेर दहिया ने कहा कि किसानों को खुद भी फसल नष्ट नहीं करनी है और अपने गांवों के किसानों को ऐसा नहीं करने की बात समझानी है। इसके साथ ही किसानों से बॉर्डर पर पहुंचकर आंदोलन मजबूत बनाए रखने का आह्वान करना है।

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