भाजपा से निष्कासित उन्नाव के विधायक कुलदीप सेंगर को दिल्ली की अदालत POCSO एक्ट के तहत दोषी करार दिया है। आपको बता दें कि कोर्ट ने सेंगर को आईपीसी की धारा 376 के तहत और पॉक्सो एक्ट की 5C और 6 के तहत दोषी माना है। कोर्ट में सेंगर पर भारतीय दंड संहिता की धाराओं 376 (दुष्कर्म), 363 (अपहरण), 120 बी (आपराधिक षड्यंत्र), 366 (अपहरण एवं महिला पर विवाह के लिए दबाव डालना), और बाल यौन अपराध संरक्षण कानून (पॉक्सो) की प्रासंगिक धाराओं के तहत आरोप तय किए गए थे।
इतनी हो सकती है सजा
कोर्ट से सेंगर को सजा सुनाए जाने के बाद दैनिक जागरण ने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील डीबी गोस्वामी से इस बारे में बात की। उन्होंने बताया कि 376 के तहत सेंगर को कम से कम दस वर्ष और अधिकतम उम्रकैद की सजा हो सकती है। वहीं पॉक्सो एक्ट के 5C के तहत भी इतनी ही सजा का प्रावधान है। उनके मुताबिक दोषी करार देने के बाद अब सजा पर बहस होगी। इसके बाद ही कोर्ट सजा पर अपना फैसला सुनाएगा।
जनता के प्रतिनिधि और ऐसा अपराध
यह पूछे जाने पर कि एक विधायक के तौर पर कुलदीप सेंगर को दोषी करार देने का मामले में सजा पर क्या असर पड़ेगा। उनका कहना था कि कोर्ट इस पर हमेशा से सख्त रुख इख्तियार करता आया है। कोर्ट मानता है कि वो आम आदमी न होकर पब्लिक सर्वेंट हैं। वो जनता के प्रतिनिधि हैं, ऐसे में यदि वे इस तरह के जघन्य अपराध में लिप्त होते हैं तो इससे जनता को क्या संदेश जाएगा। लिहाजा, कोर्ट इस तरह के मामलों में नरमी नहीं बरतता है।
अंतिम सांस तक जेल में
उनके मुताबिक इस मामले में यदि सेंगर को उम्रकैद की सजा मिलती है वर्तमान में इसका अर्थ मृत्यु तक जेल में रहने का है। संविधान पीठ ने इस बात बेहद स्पष्ट शब्दों में अपना फैसला सुनाया था। हालांकि इसमें भी 14 वर्ष के बाद कैदी के अच्छे आचरण को देखते हुए उन्हें रिहा करने की सिफारिश जेल से की जा सकती है, लेकिन इस पर फैसला सरकार करती है।
पॉक्सो एक्ट
इस एक्ट को Protection Of Children From Sexual Offences Act-2012 के तौर पर जाना जाता है। इस एक्ट को महिला और बाल विकास मंत्रालय ने बच्चों के प्रति यौन उत्पीड़न और यौन शोषण और पोर्नोग्राफी जैसे जघन्य अपराधों को रोकने के लिए बनाया था। इस एक्ट के तहत अलग-अलग अपराधों के लिए अलग-अलग सजा दिए जाने का प्रावधान है। बाद में इसमें बदलाव किया गया और इसमें 12 वर्ष तक की बच्ची से दुष्कर्म के दोषी को फांसी की सजा दिए जाने का प्रावधान का प्रस्ताव रखा गया जिसको वर्ष 2018 में केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी मिल गई थी।