प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से मध्यप्रदेश के किसानों को संबोधित कर रहे हैं। PM मोदी : मुझे लगता है कि उनको पीड़ा इस बात से नहीं है कि कृषि कानूनों में सुधार क्यों हुआ। उनको तकलीफ इस बात से है कि जो काम हम कहते थे लेकिन कर नहीं पाते थे, वो मोदी ने कैसे किया, मोदी ने क्यों किया।

हर चुनाव से पहले ये लोग कर्जमाफी की बात करते हैं। और कर्जमाफी कितनी होती है? सारे किसान इससे कवर हो जाते है क्या? जो छोटा किसान बैंक नहीं गया, जिसने कर्ज नहीं लिया, उसके बारे में क्या कभी एक बार भी सोचा है इन लोगों ने।
बीते दिनों से देश में किसानों के लिए जो नए कानून बने, उनकी बहुत चर्चा है। ये कृषि सुधार कानून रातों-रात नहीं आए। पिछले 20-22 साल से हर सरकार ने इस पर व्यापक चर्चा की है। कम-अधिक सभी संगठनों ने इन पर विमर्श किया है।
जबकि किसानों के लिए समर्पित हमारी सरकार किसानों को अन्नदाता मानती है। हमने फाइलों के ढेर में फेंक दी गई स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट बाहर निकाला और उसकी सिफारिशें लागू कीं, किसानों को लागत का डेढ़ गुना एमएसपी दिया।
किसान आंदोलन करते थे, प्रदर्शन करते थे लेकिन इन लोगों के पेट का पानी नहीं हिला। इन लोगों ने ये सुनिश्चित किया कि इनकी सरकार को किसान पर ज्यादा खर्च न करना पड़े। इनके लिए किसान देश की शान नहीं, इन्होंने अपनी राजनीति बढ़ाने के लिए किसान का इस्तेमाल किया है।
किसानों की बातें करने वाले लोग कितने निर्दयी हैं इसका बहुत बड़ा सबूत है स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट। रिपोर्ट आई, लेकिन ये लोग स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों को आठ साल तक दबाकर बैठे रहे।
अगर आज देश के सभी राजनीतिक दलों के पुराने घोषणापत्र देखे जाएं, उनके पुराने बयान सुने जाएं, पहले जो देश की कृषि व्यवस्था संभाल रहे थे उनकी चिट्ठियां देखीं जाएं, तो आज जो कृषि सुधार हुए हैं, वो उनसे अलग नहीं हैं।
सचमुच में तो देश के किसानों को उन लोगों से जवाब मांगना चाहिए जो पहले अपने घोषणापत्रों में इन सुधारों की बात लिखते रहे, किसानों के वोट बटोरते रहे, लेकिन किया कुछ नहीं। सिर्फ इन मांगों को टालते रहे। और देश का किसान, इंतजार ही करता रहा।
देश के किसान, किसानों के संगठन, कृषि एक्सपर्ट, कृषि अर्थशास्त्री, कृषि वैज्ञानिक, हमारे यहां के प्रोग्रेसिव किसान भी लगातार कृषि क्षेत्र में सुधार की मांग करते आए हैं।
तेजी से बदलते हुए वैश्विक परिदृष्य में भारत का किसान, सुविधाओं के अभाव में, आधुनिक तौर तरीकों के अभाव में असहाय होता जाए, ये स्थिति स्वीकार नहीं की जा सकती। पहले ही बहुत देर हो चुकी है। जो काम 25-30 साल पहले हो जाने चाहिए थे, वो अब हो रहे हैं।
दुनिया के बड़े-बड़े देशों के किसानों को जो आधुनिक सुविधा उपलब्ध है, वो सुविधा भारत के भी किसानों को मिले, इसमें अब और देर नहीं की जा सकती। भारत की कृषि, भारत का किसान, अब और पिछड़ेपन में नहीं रह सकता।
मैं देश के व्यापारी जगत, उद्योग जगत से आग्रह करूंगा कि भंडारण की आधुनिक व्यवस्थाएं बनाने में, कोल्ड स्टोरेज बनाने में, फूड प्रोसेसिंग के नए उपक्रम लगाने में अपना योगदान, अपना निवेश और बढ़ाएं। ये सच्चे अर्थ में किसान की सेवा करना होगा, देश की सेवा करना होगा।
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