कृषि कानून के खिलाफ दिल्ली-उत्तर प्रदेश के गाजीपुर बॉर्डर पर दो महीने से चल रहे किसान आंदोलन को गुरुवार को यूपी प्रशासन ने बोरिया बिस्तर समेटना का अल्टीमेटम दे रखा था. आंदोलन स्थल पर पुलिस व फोर्स की मौजूदगी और योगी सरकार के आंख दिखाते ही पश्चिम यूपी की सियासी तपिश बढ़ गई. गाजीपुर बॉर्डर पर किसान आंदोलन की अगुवाई कर रहे राकेश टिकैत ने कहा कि जान दे देंगे लेकिन आंदोलन खत्म नहीं करेंगे. इतना कहते ही पूरा माहौल कुछ देर पलट गया.
गाजीपुर बॉर्डर पर राकेश टिकैट की आंखों से छलके आंसुओं के बाद 115 किलोमीटर दूर मुजफ्फरनगर में बैठे भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष और उनके बड़े भाई नरेश टिकैत ने उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ आर-पार की लड़ाई का ऐलान कर दिया है. टिकैत के पैतृक गांव मुजफ्फरनगर के सिसौली में राकेश टिकैत के घर बाहर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा है. गाजीपुर बॉर्डर से जो किसान लौट आए थे, वे वापस दिल्ली आंदोलन में जाने की बातें करने लगे. माना जा रहा है कि पश्चिमी यूपी की बढ़ती राजनीतिक तपिश और सिर पर पंचायत चुनाव को देखते हुए योगी सरकार बैकफुट पर आ गई और किसान आंदोलन के खिलाफ एक्शन से अपने कदम को पीछे खींचना पड़ गया.
गाजीपुर बॉर्डर पर गुरुवार को यूपी पुलिस और फोर्स की घेराबंदी के बाद राकेश टिकैत ने कहा कि वह आत्महत्या कर लेंगे, लेकिन आंदोलन समाप्त नहीं करेंगे और फूट-फूटकर रोने लगे. उन्होंने कहा कि प्रशासन हमसे बात कर रहा है और दूसरी तरफ बीजेपी के विधायक के लोग हमारे बुजुर्गों पर लाठियां चला रहे हैं. इसका इंसाफ इसी दिल्ली से मिलेगा. पूरे देश का किसान आएगा और आंदोलन करेगा. यह बात देखते ही देखते पश्चिम यूपी में आग की तरह फैल गई.
राकेश टिकैत के बयान के बाद मुजफ्फरनगर के सिसौली गांव में किसान पंचायत बुलाई गई. इसमें यूपी सरकार के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पास किया गया. गुरुवार को दोपहर तक आंदोलन को खत्म करने की बात करने वाले नरेश टिकैत ने यू-टर्न ले लिया. उन्होंने कहा कि राकेश टिकैत की गिरफ्तारी होती है तो फिर एक लाख किसान भी अपनी गिरफ्तारी देंगे. इसके साथ ही शुक्रवार को मुजफ्फरनगर के राजकीय इंटर कॉलेज के मैदान में महापंचायत होगी, जिसमें आंदोलन के आगे की रणनीति का ऐलान किया जाएगा.
मुजफ्फरनगर में होने वाली महापंचायत में पश्चिम यूपी के साथ-साथ हरियाणा, उत्तराखंड और राजस्थान के लोग भी शामिल हो सकते हैं. इसके पीछे एक बड़ी वजह यह भी है कि नरेश टिकैत भारतीय किसान यूनियन के साथ-साथ बलियान खाप के भी प्रमुख हैं. बलियान खाप पश्चिम यूपी में जाटों की सबसे बड़ी खाप पंचायत है. 2013 में मुजफ्फरनगर दंगे के बाद से जाट समुदाय बीजेपी का कोर वोटबैंक माना जाता है, जिसके चलते चौधरी अजित सिंह की सियासत हाशिए पर चली गई है.
राकेश टिकैत के आंसुओं को जाट समुदाय के बीच अपनी अस्मिता का प्रश्न बनाने की कवायद की जा रही है. गाजीपुर बॉर्डर पर शाम तक जो भीड़ छंटती दिख रही थी, वो फिर लौटने लगी. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के तमाम जिलों के जाट नेता खुलकर राकेश टिकैत के समर्थन में खड़े होने लगे. राष्ट्रीय लोकदल के नेता चौधरी अजित सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी ने राकेश टिकैत को फोन कर कहा कि चिंता मत करो, किसान के लिए जीवन-मरण का प्रश्न है. सबको एक होना है, साथ रहना है. इसके अलावा कांग्रेस के पूर्व सांसद और जाट नेता हरेंद्र मलिक और पूर्व विधायक पंकज मलिक खुलकर राकेश टिकैत के साथ आ गए.
पंकज मलिक ने मीडिया से बातचीत करते हुए शुक्रवार को मुजफ्फरनगर में होने वाली पंचायत पश्चिम यूपी नहीं बल्कि यूपी की सियासी तकदीर का फैसला करेगी. किसान में सिर्फ जाट ही नहीं बल्कि सभी सभी जातियां आती हैं और पंचायत में सभी लोग शामिल हो रहे हैं. ऐसी ही पंचायत 2008 में भी मुजफ्फरनगर में हुई थी और मायावती सरकार को सत्ता से बेदखल होना पड़ा. यह किसानों की जिंदगी का सवाल है और राकेश टिकैत के साथ जिस तरह से सरकार ने व्यवहार किया है, इससे किसानों का गहरा झटका लगा है. पश्चिम यूपी का किसान अब खामोश नहीं बैठेगा और सरकार को उसी की भाषा में जवाब देगा.
राकेश टिकैत के समर्थन में जाट समुदाय के खुलकर आने से योगी सरकार बैकफुट पर नजर आ गई. इतना ही नहीं सरकार राकेश टिकैत के खिलाफ रात में कोई एक्शन लेती तो पश्चिम यूपी में बीजेपी के राजनीतिक समीकरण बिगड़ने का खतरा बढ़ सकता था. यही नहीं पंचायत चुनाव सिर पर हैं, जिसे जीतने के लिए बीजेपी हरसंभव कोशिश में जुटी है. गुरुवार को ही बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने पश्चिम यूपी के सहारनपुर में पंचायत चुनाव के मद्देनजर मंडल स्तर की बैठक का अभियान शुरू किया है.
उत्तर प्रदेश में जाट समुदाय की आबादी करीब 4 फीसदी है जबकि पश्चिम यूपी में 17 फीसदी के आसपास है. जाट समुदाय सहारनपुर, मेरठ और अलीगढ़ मंडल जिले की करीब चार दर्जन विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका अदा करते हैं. इसके अलावा दो दर्जन सीटों पर जिताने की कुव्वत रखते हैं. यूपी में तीन सांसद हैं, जिनमें मुजफ्फरनगर से संजीव बालियान, बागपत से सत्यपाल सिंह और फतेहपुरी सीकरी से राजकुमार चाहर शामिल हैं. इसके अलावा सूबे में फिलहाल 14 जाट विधायक हैं.
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार आनंद राणा कहते हैं कि सरकार के तरीके से लोग नाराज हैं. यह जाट समुदाय के सम्मान का सवाल बन गया है. बीजेपी के लिए राजनीतिक तौर पर नुकसान का सौदा साबित हो सकता है. पंचायत चुनाव को देखते हुए बीजेपी राजनीतिक तौर पर कोई जोखिम भरा कदम नहीं उठाना चाहती है, क्योंकि यहां अगर जाट समुदाय बीजेपी से छिटका तो पार्टी के लिए आगे की सियासी राह मुश्किल हो सकती है. इसके पीछे एक वजह यह भी है कि पश्चिम यूपी में किसान और जाट समुदाय राजनीतिक दशा और दिशा तय करते हैं. यहां अगर जाट बीजेपी से छिटकता है तो उसके लिए पंचायत चुनाव ही नहीं बल्कि 2022 के लिए परेशानी का सबब बन सकता है. इन्हीं राजनीतिक नफा नुकसान को देखते हुए योगी सरकार ने अपने कदम पीछे खींच लिए हैं.