देश के प्रमुख अस्पताल ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (AIIMS) में देश के कई हिस्सों से बड़ी संख्या में लोग इलाज कराने आते हैं. इससे यहां के डॉक्टरों पर काम को बोझ बहुत ज्यादा बढ़ गया है. इससे उनकी मानसिक सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है. हालत यह है कि कई डॉक्टरों ने आत्महत्या तक की कोशिश की है और काम के बोझ से मानसिक रूप से बहुत ज्यादा परेशान पांच डॉक्टरों को साइकियाट्रिक वार्ड में भर्ती किया गया है.
इन सभी डॉक्टर्स को पिछले एक हफ्तों में साइकियाट्रिक वार्ड में भर्ती किया गया है. पिछले हफ्ते, एनेस्थेसिया डिपार्टमेंट के एक जूनियर रेजिडेंट डॉक्टर राहुल (बदला हुआ नाम) ने आत्महत्या करने की कोशिश की, हालांकि उनको साथी डॉक्टरों ने बचा लिया. डॉक्टरों में गंभीर मानसिक समस्याओं के बढ़ने की घटनाओं को देखते हुए सीनियर फैकेल्टी और रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन ने मांग की थी कि प्रशासन ऐसे काउंसलर्स की नियुक्ति करे जिनसे डॉक्टर जरूरत पड़ने पर संपर्क कर सकें और उनसे अपनी समस्याएं साझा कर सकें.
उन्होंने एक हेल्पलाइन नंबर की स्थापित करने की मांग की है. लेकिन डॉक्टर्स का कहना है कि उनकी मांग पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. पिछले कुछ वर्षों में इस प्रतिष्ठित संस्थान के कई डॉक्टरों ने आत्महत्या कर ली है.
हालांकि एम्स के सूत्रों का दावा है कि ऐसे मामले अब इसलिए ज्यादा दिख रहे हैं क्योंकि अब इनकी जानकारी दी जा रही है, जबकि पहले ऐसे मामलों को रफा-दफा कर दिया जाता था. डॉक्टरों ने एम्स में स्वस्थ वातावरण बनाने की मांग की है. एम्स में आरडीए के अध्यक्ष डॉ. हरजीत सिंह भट्टी के मुताबिक पहले भी ऐसे मामले सामने आते थे, लेकिन हाल के वर्षों में यह संख्या बढ़ी है.
साइकियाट्री डिजिवन के एक वरिष्ठ प्रोफेससर ने मेल टुडे को बताया, ‘मैंने खुद पिछले दो हफ्तों में दो डॉक्टरों को भर्ती किया है. एक को डिस्चार्ज कर दिया गया है, जबकि दूसरे का उपचार किया जा रहा है. जीवनशैली, काम के बोझ का तनाव, सांस्कृतिक मसले, यौन संबंधी, अवसाद और बेचैनी जैसी समस्याओं की वजह से डॉक्टर्स को मानसिक परेशानी हो सकती है.’
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