जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने की चौतरफा चर्चाओं के बीच कांग्रेस के लिए तीन राज्यों के चुनाव मुद्दों के लिहाज से बेहद चुनौतीपूर्ण बन गए हैं।
लोकसभा चुनाव में राष्ट्रवाद की पिच पर विपक्ष को मिली पटखनी से सचेत पार्टी हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में जनता से जुड़े तात्कालिक मसले पर फोकस करने की रणनीति बना रही है। इसमें रोजगार के गहराते संकट, अर्थव्यवस्था की मंदी से लेकर किसानों की लगातार जारी मुसीबतों को भाजपा के खिलाफ चुनावी अभियान की मुख्य धुरी बनाने की तैयारी है।
अनुच्छेद 370 हटाने के सरकार के फैसले को देश में व्यापक समर्थन मिला है। वहीं इस फैसले के तौर-तरीके पर विपक्ष के सवाल उठाने को भाजपा और सरकार ने इसके विरोध के रुप में प्रचारित किया है। कांग्रेस के कुछ नेताओं के बयान और इस मुद्दे पर पार्टी के भीतर सामने आए खुले मतभेद से भी गलत संदेश गया है। अनुच्छेद 370 हटाने के बड़े फैसले के साथ तीन तलाक कानून को हकीकत बनाने के केंद्र के कदमों ने राष्ट्रीय बहस की धारा बदल दी है।
कांग्रेस के चुनावी थिंक-टैंक से जुड़े एक रणनीतिकार ने स्वीकार किया कि भले इन तीनों सूबों के चुनाव का अनुच्छेद 370 से सीधे कोई सरोकार नहीं है। बावजूद इसके विधानसभा चुनाव को राष्ट्रवाद के ट्रैक से जनता के मुद्दे पर ले जाने की विपक्षी दलों की राह आसान नहीं।
खासकर तब जब महाराष्ट्र में एनसीपी और कांग्रेस दोनों पार्टियों के बीच जबरदस्त अंदरूनी खलबली मची है और दोनों पार्टियों के कई बड़े नेता भाजपा या शिवसेना को अपना नया घर बना रहे हैं।
हरियाणा में कांग्रेस बमुश्किल चुनाव से पहले अपने अंदरूनी झगड़े को थामने का फार्मूला ला पायी है। झारखंड में कांग्रेस और झामुमो के बीच गठबंधन को लेकर खींचतान का दौर चल रहा है।
इन चुनौतियों के बीच पार्टी थिंक-टैंक का आकलन है कि आर्थिक मंदी के बीच रोजगार के घटते अवसरों और कृषि क्षेत्र की समस्याओं के जस के तस बने रहने की वजह से लोगों में बेचैनी है। ऐसे में विपक्षी दलों खासकर कांग्रेस के लिए जरूरी है कि सरकार की परेशानी में इजाफा करने वाले इन मुद्दों पर ही चुनावी विमर्श को केंद्रित रखा जाए।