सीता जयंती या जानकी जयंती रविवार 16 फरवरी को है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हर वर्ष फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को सीता जयंती या जानकी जयंती मनाई जाती है। इस दिन सीता जी का प्रकाट्य हुआ था। जानकी जयंती के दिन पूजा के समय माता सीता की वंदना और आरती करना आवश्यक माना गया है। जानकी जयंती का व्रत रखने वालों को श्रीजानकी जी की आरती करनी चाहिए। आइए जानते हैं कि जानकी जयंती पर श्रीजानकी वन्दन और श्रीजानकी जी की आरती कैसे करें।]
फाल्गुन कृष्ण अष्टमी को स्नान आदि से निवृत होकर पूजा स्थल पर माता सीता की प्रतिमा स्थापित कर लें। फिर उनको पुष्प, अक्षत्, धूप, दीप के साथ श्रृंगार के सामान अर्पित करें। फिर श्रीजानकी जी की वन्दना करें। इसके बाद पूजा के अंतिम चरण में आरती करें।
श्रीजानकी वन्दन
उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्।
सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोअहं रामवल्लभाम्।।
श्रीजानकी जी की आरती
आरती जनक-लली की कीजै।
सुबरन-थार बारि घृत-बाती,
तन निज बारि रूप-रस पीजै।।
गौर-बरन सुंदर तन सोभा
नख-सिख छबि नैननि भर लीजै।
सरस-माधुरी स्वामिनि मेरी
चरन-कमल में चित नित दीजै।।
श्रीजानकीजी
आरती श्रीजनक-दुलारी की।
सीताजी रघुबर-प्यारी की।। टेक।।
जगत-जननि जग की विस्तारिणि,
नित्य सत्य साकेत विहारिणि,
परम दयामयि दीनोद्धारिणि,
मैया भक्तन हितकारी की।। सीताजी.।।
सती शिरोमणि पति-हित-कारिणि,
पति-सेवा हित वन-वन चारिणि,
त्याग-धर्म-मूरति-धारीकी।। सीताजी.।।
विमल-कीर्ति सब लोकन छाई,
नाम लेत पावन मति आई,
सुमिरत कटत कष्ट दुखदाई,
शरणागत-जन-भय-हारी की।। सीताजी.।
श्रीजानकी जी
आरती कीजै जनक-लली की।
राममधुपमन कमल-कली की।।
रामचंद्र मुखचंद्र चकोरी।
अंतर सांवर बाहर गोरी।
सकल सुमंगल सुफल फली की।।
पिय दृगमृग जुग बंधन डोरी,
पीय प्रेम रस-राशि किशोरी।
पिय मन गति विश्राम थली की।।
रूप-रास-गुननिधि जग स्वामिनि,
प्रेम प्रबीन राम अभिरामिनि।
सरबस धन हरिचंद अली की।।
जानकी जयंती व्रत का महत्व
जानकी जयंती का व्रत सुहागन महिलाएं रखती हैं। वे सीता माता से अपने पति के लंबी आयु का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। जानकी जयंती के दिन मां सीता की आराधना करने से वैवाहिक जीवन की सभी समस्याओं का अंत हो जाता है। सीता जी मिथिला के राजा जनक की पुत्री थीं, इसलिए उनको जानकी भी कहा जाता है। इसलिए ही सीता जयंती को जानकी जयंती कहते हैं।