रमजान का महीना इस्लामिक कैलेंडर में सबसे पवित्र महीना माना गया है. इसमें हर मुस्लिम अपनी मुक्ति और मोक्ष के लिए रोजे रखते हैं. जिस तरह नमाज पढ़ना हर मुसलमान के लिए फर्ज है उसी तरह रोजे रखना भी खुदा ने फर्ज करार दिया है. रमजान के इस पाक महीने में हर मुसलमान रोजा रखता है और खुदा की सच्ची इबादत के साथ 5 वक्त की नमाज अता करता है.
रमजान में रोजे रखने को लेकर कुछ नियम-कायदे होते हैं, जिनको निभाना हर मुसलामन का फर्ज है. रोजे के नियमों को लेकर कुछ सवालात हर व्यक्ति के जेहन में उठते हैं. इसी के साथ रोजे से जुड़े शिया और सुन्नी समुदाय की कुछ ऐसी ही बातें जिन्हें आपको ध्यान रखना चाहिए.
सवाल: क्या जकात की रकम से किसी जरूरतमंद, गैर मुस्लिम की मदद की जा सकती है?
जवाब: जकात गैर मुस्लिम को उस वक्त दी जा सकती है, जब वह इस्लाम कबूल करने की तरफ रागिब हो.
सवाल: कोई व्यक्ति जानबूझकर रोजा तोड़ दे तो उसकी सजा क्या होगी?
जवाब: ऐसा करने पर कफ्फारा देना होगा. या साठ रोजे रखे या फिर साठ गरीब मोमिन को खाना खिलाएगा या एक गुलाम आजाद करे.
सवाल: जुमा की नमाज के लिए शर्त क्या है?
जवाब: जुमे की नमाज में कम से कम पांच लोग हों और दो जुमों की नमाजों में पांच किलोमीटर का फासला हो.
सवाल: क्या कजा नमाजे जमाअत से पढ़ी जा सकती हैं?
जवाब: कजा नमाजे जमाअत से पढ़ी जा सकती हैं, जैसे शबे कद्र में लोग पढ़ते हैं.
सवाल: अगर मुसाफिर एतेकाफ करना चाहे तो क्या हुक्म है?
जवाब: मुसाफिर एतेकाफ नहीं कर सकता है, चूंकि एतेकाफ में रोजा रखना शर्त है और सफर में रोजा नहीं रखा जा सकता.