एक आसन सीख लिया तो हर रोग से मिलेगी मुक्ति

कई आसन के बारे में आप जानते होंगे जिन्हें करने से आप कई बिमारियों से बचे रहते हैं और स्वस्थ रहते हैं.ऐसे ही आपने उड्डियान बंध, मूलबंध और जालंधर बंध के बारे में भ्ही सुना होगा. इन तीनों को एक साथ लगाने को त्रिबंध कहते हैं. इससे कुंडलिनी जागरण होता है. उड्डियान बंध का अर्थ है सांस को धीरे-धीरे बाहर निकालना. मूलबंध यानी गुदा मार्ग को सिकोड़ना. जालंधर बंध में ठोड़ी को गर्दन से सटाकर रखा जाता है. इन्हें करने के आसान तरीके भी हैं. जानते हैं उसके बारे में. 

इस आसन को करने के लिए सबसे पहले गहरी सांस लेते हुए मूलबंध लगाएं, फिर जालंधर बंध. इसके बाद श्वास को सहजता से बाहर निकालें. यही प्रक्रिया सांस छोड़कर दोबारा करें यानी बहिर्कुंभक के साथ मूलबंध और जालंधर बंध. इससे मूलाधार से सहस्त्रार के बीच ऊर्जा का आवागमन सहज रहता है और कुंडलिनी जागरण से किसी नुकसान की आशंका नहीं रहती.

इसी के साथ रखें सावधानी
 
जब भी इस आसान को करें स्वच्छ और हवादार स्थान पर बैठकर ही करें. अगर आप पेट, फेंफड़े और गले के किसी भी गंभीर रोग से पीड़ित हो तो यह आसन बंध नहीं करें.

इसके लाभ

इससे गले, गुदा, पेशाब, फेंफड़े और पेट संबंधी रोग दूर होते हैं और इसके अभ्यास से दमा, अति अमल्ता, अर्जीण, कब्ज, अपच आदि रोग भी नष्ट होते हैं. इससे चेहरे की चमक बढ़ती है. अल्सर कोलाईटिस रोग ठीक होता है और फेफड़े की दूषित वायु निकलने से हृदय की कार्यक्षमता भी बढ़ती है.

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