पैरों में बिछिया ( रिंग) पहनना
पैर की उंगली में रिंग पहनना भारतीय संस्कृति का हिस्सा तो है ही, लेकिन इसके वैज्ञानिक फायदे भी है। अमूमन रिंग को पैर के अंगूठे के बगल वाली दूसरी उंगली में पहनते है। इस उंगली की नस महिलाओं के गर्भाशय और दिल से संबंध रखती हैं। पैर की उंगली में रिंग पहनने से गर्भाशय और दिल से संबंधित बीमारियों की गुंजाइश नहीं रहती है। रिंग चांदी की होती है इससे पहनने से सेहत पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। चांदी ध्रुवीय ऊर्जा से शरीर को ऊर्जावान बना देती है।
तांब के सिक्कों का प्रयोग
पुराने समय में तांबे के सिक्के हुआ करते थे जिनकी जगह आज स्टेनलैस स्टील के सिक्कों ने ले ली है। तांबा पानी को शुद्ध करता है। इसलिए पुराने में समय में नदियां में तांबे के सिक्के इसलिए डाले जाते थे, क्योंकि ज्यादातर नदियां ही पीने के पानी का स्त्रोत हुआ करती थीं।
तिलक या कुमकुम लगाने के वैज्ञानिक फायदे
दोनों भौहों के बीच माथे पर तिलक लगाने से उस बिंदू पर दवाब पड़ता है जो हमारे तंत्रिका तंत्र का सबसे खास हिस्सा माना जाता है। तिलक लगाने से इस खास हिस्से पर दबाव पड़ते ही ये सक्रिय हो जाता है और शरीर में नई ऊर्जा का संचार होने लगता है। तिलक लगाने से एकाग्रता में बढ़ोतरी होती है। चेहरे की मांसपेशियों में रक्त का संचार भी सही से होता है।
मंदिर में घंटी बजाने के फायदे
मंदिर में घंटे या घंटियां होने का भी वैज्ञानिक कारण है। घंटे की आवाज कानों में पड़ते ही आध्यात्मिक अनुभूति होती है। इससे एकाग्रता में बढ़ोतरी होती है और मन शांत हो जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि घंटे की आवाज बुरी आत्माओं को मंदिर से दूर रखती है। घंटे की आवाज भगवान को प्रिय होती है। जब हम मंदिर में घंटा बजाते है तो करीब सात सेकेंड तक हमारे कानों में उसकी प्रतिध्वनि गूंजती है। माना जाता है कि इस दौरान घंटे की ध्वनि से हमारे शरीर में मौजूद सुकून पहुंचाने वाले सात बिंदू सक्रिय हो जाते हैं और नाकारात्मक ऊर्जा शरीर से बाहर हो जाती है।
भोजन के बाद मिठाई खाने की परंपरा
भारतीय थाली में मसालेदार व्यंजन और मीठाई एक साथ परोसी जाती है लेकिन मिठाई का सेवन हमेशा खाने के आखिरी में किया जाता है। कहा जाता है कि पहले मसालेदार खाने से शरीर के पाचन तंत्र के लिए जरूरी पाचक रस और अम्ल सक्रिय होते हैं। फिर मिठाइयों के सेवन से पाचक क्रिया नियंत्रित हो जाती है।
जमीन पर बैठकर भोजन करना
भारतीय संस्कृति में धरती पर बैठकर भोजन करने की परंपरा है। इसका वैज्ञानिक कारण ये है कि जब हम धरती पर दोनों पैर मोड़कर बैठते हैं तो इस अवस्था को सुखासन या अर्ध पदमासन कहते हैं। इस प्रकार बैठने से दिमाग की उन धमनियों को सकारात्मक संदेश पहुंचता है जो पाचन तंत्र से जुड़ी होती हैं।
उत्तर दिशा में सिर रखकर सोने का फायदा
मानव शरीर का भी अपना एक चुंबकीय क्षेत्र होता है। विज्ञान के अनुसार पृथ्वी भी एक प्रकार का बड़ा चुंबक ही है। जब हम उत्तर दिशा में सिर करके सोते हैं तो पृथ्वी के चुंबकीय बल से मानव शरीर का चुंबकीय बल ठीक बिपरीत होता है। इससे हमारे हृदय पर ज्यादा जोर पड़ने लगता है। दूसरा कारण ये है के इस प्रकार सोने से खून में मौजूद आयरन दिमाग में एकत्र होने लगता है। इससे दिमाग की बीमारियां होने लगती हैं।
कान नाक छेदन परंपरा
भारतीय सभ्यता में ऐसा समझा जाता है कि कानों के छेदन से कानों में किसी प्रकार की बीमारी नहीं होती है साथ ही बौद्धिकता में बढ़ातरी होती है। कान छेदने का रिवाज केवल भारत ही नहीं दुनिया भर में देखा जा सकता है। लेकिन आज के परिवेश में बहुत से लोग सुंदर दिखने के लिए कान छेदन करवा लेते हैं ताकि सुंदर-सुंदर झुमके और अन्य आभूषण पहन सकें।
सूर्य नमस्कार
भारतीय संस्कृति में सुबह की शुरुआत को सूर्य नमस्कार से जोड़ा गया है। भारतीय परंपरा में सुबह-सुबह सूर्य को पानी से अर्घ्य देकर नमस्कार करते हैं। पानी से टकराकर सूर्य की किरणें आखों में पड़ने से आंखों की बीमारियां नहीं होती है। साथ ही बारह तरह के आसन एक साथ होने से शरीर बलिष्ट होता है।
सिर पर चोटी रखने के फायदे
हिंदू धर्म में सिर पर चोटी रखने की परंपरा होती है। आर्युवेद में बताया जाता है कि सिर के जिस भाग में चोटी (शिखा) को धारण किया जाता है, वह भाग तंत्रिका तंत्र से सीधे संपर्क में होता है। चोटी इस तंत्र को सुरक्षा प्रदान करती है। इससे एकाग्रता में बढ़ोतरी होती है और शरीर को ऊर्जा मिलती है।
उपवास से दूर होती हैं कई बीमारियां
उपवास के फायदों को विज्ञान ने भी मान्यता दी है। आर्युवेद के अनुसार जिस प्रकार पृथ्वी के ज्यादातर हिस्से में पानी और कम हिस्से में ठोस जमीन है, उसी तरह मानव शरीर भी बना है। मानव शरीर 80 प्रतिशत द्रव्य और 20 प्रतिशत ठोस पदार्थों से मिलकर बना है। चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण बल शरीर के द्रव्य पदार्थों को प्रभावित करता है। इससे शरीर में भावनात्मक असंतुलन पनपता है। इससे तनाव, चिड़चिड़ापन होने लगता है। विज्ञान मानती है कि उपवास इलाज के तौर पर काम करता है। इससे खतरनाक टॉक्सिन्स को दूर करने में मदद मिलती है। साथ ही मधुमेह, कैंसर और हृदय की बीमारियों से भी बचाव होता है।
मांग में सिंदूर लगाने के फायदे
विवाहित महिलाएं मांग में सिंदूर लगाती हैं। सिंदूर का महिलाओं के शरीर से काफी महत्वपूर्ण संबंध होता है। हल्दी, चूना और धातु पारा से बना सिंदूर महिलाओं के शरीर में खून के बहाव को नियंत्रित करता है और कामेच्छा को बढ़ाने में कारगर होता है। यही कारण है कि विधवा महिलाओं को सिंदूर लगाना मना होता है। सिंदूर में मौजूद धातु पारा के तत्व तनाव और चिड़चिड़ेपन को दूर करते हैं।
पीपल पूजन का महत्व
हिन्दू धर्म में पीपल के वृक्ष का विशेष महत्व होता है। पीपल आमतौर पर छाया देने अलावा मानव के इस्तेमाल में कम ही आता है। लेकिन इसकी पूजा करने का सबसे बड़ा कारण है इसका संरक्षण करना। वैज्ञानिक दृष्टि से पीपल का पेड़ मानव जीवन के लिए इसलिए बेहद जरूरी है क्योंकि पीपल का पेड़ रात में भी ऑक्सीजन प्रदान करता है।
घर के आंगन में तुलसी का महत्व
तुलसी केवल एक पौधा नहीं बल्कि अपने आप में संपूर्ण औषधीय गुणों से युक्त जड़ी-बूटी है। घर में तुलसी लगाने से कीड़े-मकोड़े यहां तक की सांप भी घर में नहीं भटकते है। प्रतिदिन तुलसी का सेवन करने से रोग-प्रतिरोधक क्षमता में बढ़ोतरी होती है। तुलसी शरीर के लिए बेहतरीन नैचुरल एंटीबॉयोटिक है, जो में नहीं आते हैं। इसके अलावा कई असाध्य बीमारियों को ठीक करने में तुलसी काम आती है। ये शरीर के तापमान को भी नियंत्रित रखती है।
मूर्ति पूजन का महत्व
भारत में मूर्ति पूजा के चलन का वैज्ञानिक कारण बताया जाता है। कहा जाता है कि जब हम किसी की तस्वीर या मूर्ति को देखकर प्रार्थना करते हैं तो पूरा ध्यान उसी आराध्य देवी-देवता के ऊपर हो जाता है। मन एकदम एकाग्र और नियंत्रित हो जाता है। इसलिए भारत में आध्यात्मिक उन्नति के लिए मूर्ति पूजा को मानव जीवन का अहम हिस्सा बताया जाता है।
चुड़ियां और कड़े पहनने के फायदे
हाथों में चूड़ियां या कड़े पहने का भी दिलचस्प वैज्ञानिक कारण है। कहा जाता है कि कलाइयों में चूड़ियां पहनने से हाथों का ब्लड फ्लो ठीक होता है साथ ही चूड़ियों के वजह से ऊर्जा भी नियंत्रित रहती है।
मंदिर में गर्भगृह का महत्व
मंदिर ऐसे स्थानों पर बने होते हैं जहां पर उत्तर और दक्षिणीय ध्रुवों के चुंबकीय और विद्युतीय बलों के कारण सकारात्मक ऊर्जा भरपूर मात्रा में होती है। मंदिर में मुख्य मूर्ति ठीक बीच में स्थापित की जाती है। इस जगह को मूल स्थान या गर्भगृह भी कहते हैं। जहां मूर्ति की स्थापना होती है उस स्थान के नीचे वैदिक मंत्रों से लिखी तांबे की धातुएं रखी जाती है। तांबा धरती के चुंबकीय बल को अपनी ओर आकर्षित करता है। इसलिए जब कोई नियमित तौर पर मंदिर में जाकर परिक्रमा करता है तो तांबे के इसी चुंबकीय प्रभाव के कारण शरीर की नकारात्मक ऊर्जा भी धीरे-धीरे सकारात्मक ऊर्जा का स्थान ले लेती है।