जलवायु चक्र बदलने से शहर में प्रदूषण बढ़ रहा है। पहाड़ों पर समय से पहले बर्फबारी के कारण मैदानी क्षेत्रों में गिरता तापमान अधाधुंध दौड़ते वाहन, फैक्ट्रियों, प्लांट व कूड़ा जलने से निकलने वाली हानिकारक गैसें और हमारी लापरवाही प्रदूषण को धरती के करीब ले आई है। हानिकारक गैसों के साथ धूल कणों के एयरोसोल धरती से महज एक किमी दूर हैं। ठंड और ओस गिरना बढऩे के साथ यह दूरी महज आधा किलोमीटर रह जाएगी। आइआइटी कानपुर के शोध के अनुसार इस प्रदूषण का 50 फीसद हिस्सा अन्य राज्यों का है।
सिविल इंजीनियङ्क्षरग विभाग में अर्थ साइंस के प्रोफेसर सच्चिदानंद त्रिपाठी ने बताया कि उत्तर पश्चिम हवाएं पंजाब, हरियाणा और दिल्ली का प्रदूषण लेकर कानपुर से गुजर रहीं हैं। कानपुर का पारा गिरने से यहां अधिक प्रदूषण है। चूंकि गर्मी में हवा हल्की होती है, इसलिए प्रदूषण के कण वायुमंडल की ऊपरी परत से हिमालय के पार चले जाते हैं। इस बार अधिक बारिश होने से समय से पहले ठंड बढ़ी है। इससे प्रदूषण सबसे निचली सतह ‘ट्रोपो स्फियर’ के करीब आ गया है। पार्टिकुलेट मैटर व गैसें इस सतह में सबसे नीचे के भाग यानी बाउंड्री लेयर में घूम रही हैं।
हवा में घुलकर दुष्प्रभाव छोड़ते एयरोसोल
औद्योगिक शहरों के लिए कोहरा व प्रदूषण का दुष्चक्र हानिकारक औद्योगिक शहरों के लिए कोहरे व प्रदूषण का दुष्चक्र वहां के नागरिकों के लिए हानिकारक होता है। सर्दियों में फैक्ट्रियों के उत्पादन में कॉपर व आयरन से निकलने वाले अति सूक्ष्म कण कोहरे को न सिर्फ घना बल्कि और जहरीला बना देता है। ऐसे ठोस कणों के साथ मिलकर यह एयरोसोल बनाते हैं जो हवा में घुलकर अपना प्रभाव छोड़ते हैं। इससे न केवल सांस लेना मुश्किल होता है बल्कि यह दृश्यता को इतना कम कर देते हैं कि पास की चीजें तक देखना मुश्किल हो जाता है। धातुओं के साथ होने वाली क्रिया का दुष्प्रभाव 20 माइक्रॉन ओस व पानी की बूदों पर पड़ता है। हल्की होने के कारण यह हवा में काफी देर तक रहती हैं और कोहरे में दृश्यता कम करती हैं।
जलवायु परिवर्तन बढ़ा रहा मुश्किलें
प्रदूषण बढऩे का एक बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन भी है। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के मौसम वैज्ञानिक डॉ.नौशाद खान ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारण पहाड़ों पर बर्फबारी सितंबर महीने में शुरू हो गई जो महीने भर पहले हुई है। मौसम के बदलते चक्र के चलते कानपुर में भी बारिश की मात्रा 35 फीसद अधिक दर्ज की गई। हवा के साथ नमी बढऩे से दिन के समय हल्का कोहरा भी छाने लगा है। टीबी एवं चेस्ट विभाग जीएसवीएम मेडिकल कालेज के प्रो. सुधीर चौधरी कहते हैं कि बुजुर्गों, बच्चों व श्वांस रोगियों को ऐसे खास सावधानी बरतने की जरूरत है। आंख व सांस संबंधी बीमारियों का हमला इसी मौसम में होता है। मरीजों को पटाखों से दूर रहना चाहिए।
यह हैं प्रदूषण के कारण
-कूड़ा जलाना
– गाडिय़ों की संख्या बढऩा
-फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुआं
-अनफिट बस, टेंपो व ऑटो
ये करने से आ सकती है कमी
-जरा सी दूरी जाने को निजी वाहन की अपेक्षा पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करें।
– शहर में मेट्रो रेल संचालन शुरू हो।
-इलेक्ट्रिक बसें चलाई जाएं।
-कूड़ा निस्तारण की व्यवस्था दुरुस्त हो।
वायुमंडल में ये गैसें घातक
-कार्बन मोनो ऑक्साइड
-सल्फर डाइऑक्साइड
-क्लोरोफ्लोरो कार्बन
इन पौधों को मित्र बना बचाएं पर्यावरण
केसिया सियामिया, बरगद, पीपल, पाकड़, गूलर, जामुन, सफेद सीरस, काला सीरस को पौधों को रोपित करके पर्यावरण संरक्षण किया जा सकता है। सीएसए विवि के कृषि वानिकी के प्रो. मुनीष गंगवार ने बताया कि यह पौधे प्रत्येक जिले की सामाजिक वानिकी नर्सरी से प्राप्त किए जा सकते हैं। पत्तियों के आकार के कारण इनमें पार्टिकुलेट मैटर व गैसों को सोखने की क्षमता होती है।