वित्त वर्ष 2020-21 का बजट ऐसे समय में पेश होगा जब मोदी सरकार इकोनॉमी के मोर्चे पर कई तरह की चुनौतियों से जूझ रही है. जीडीपी ग्रोथ छह साल के निचले स्तर पर पहुंच गई है और मांग में कमी की वजह से कारोबारियों में निवेश के लिए उत्साह नहीं है.
पिछले एक साल में ज्यादातर आंकड़े नकारात्मक ही आए हैं. ऐसे में देखना होगा कि निर्मला सीतारमण अर्थव्यवस्था की सेहत दुरुस्त करने के लिए क्या दवाई देती हैं.
इस बार भी बजट 1 फरवरी को ही पेश किया जा सकता है. इकोनॉमिक सर्वे 31 जनवरी को आ सकता है. इस दिन शनिवार पड़ रहा है. करीब पांच साल बाद ऐसा पहली बार होगा जब शनिवार को बजट पेश हो सकता है. असल में मोदी सरकार ने फरवरी के अंतिम कार्यदिवस में बजट पेश करने की परंपरा को तोड़ते हुए इसे पहले कार्यदिवस के दिन कर दिया है.
इसके पीछे सोच यह है कि 31 मई तक बाकी सारी प्रक्रिया पूरी हो जाए ताकि खर्च आदि की कवायद 1 अप्रैल से शुरू कर दिया जाए. सरकार की ओर से संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा भी है कि यह परंपरा जारी रहेगी. साल 2015-16 के बाद पहली बार होगा, जब बजट शनिवार को पेश किया जाएगा. गौरतलब है कि पहली बार 2017-18 का बजट 1 फरवरी को पेश किया गया था. इससे पहले फरवरी के आखिरी सप्ताह में बजट पेश किया जाता था.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के लिए अपने करियर का यह सबसे चुनौतीपूर्ण साल हो सकता है. देश की इकोनॉमी के आंकड़े अच्छे नहीं हैं और उन्हें देश की तरक्की को रफ्तार देने वाला बजट पेश करना है. इस वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में जीडीपी छह साल के निचले स्तर 4.5 फीसदी तक पहुंच गई है. यह साल 2018 की पहली तिमाही के मुकाबले करीब आधा ही है.
उपभोक्ताओं का भरोसा भी 2014 के बाद सबसे निचले स्तर पर है. बेरोजगारी भी चरम पर है . पिछले साल आई एक रिपोर्ट से यह खुलासा हुआ था कि बेरोजगारी दर 45 साल के निचले स्तर 6.1 फीसदी तक पहुंच गई है. 2018 में भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था था. आज हालत यह है कि फिलीपींस और इंडोनेशिया जैसे देश भी भारत से तेज गति से बढ़ रहे हैं.
औद्योगिक उत्पादन की हालत तो पिछले साल बेहद खराब रही. जब अर्थव्यवस्था में मांग ही नहीं है, तो जाहिर है कि औद्योगिक उत्पादन नहीं बढ़ेगा. औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) इसे मापने का सबसे बड़ा पैमाना होता है. सरकार द्वारा इसका आंकड़ा हर महीने जारी किया जाता है. पिछले साल के ज्यादातर महीनों में इसकी हालत पस्त रही है और कई महीनों में तो यह नेगेटिव में रहा यानी औद्योगिक उत्पादन में गिरावट देखी गई है.
निर्मला सीतारमण के लिए यह बेहद जरूरी है कि खपत और निवेश के दोहरे इंजन को दुरुस्त करें. यह वह कैसे कर पाती हैं, इसे बजट में देखना होगा. पिछले साल के अंत में सरकार ने कई कदम उठाए, कई ऐलान किए हैं, लेकिन अभी उनसे खास फर्क पड़ता नहीं दिख रहा.
हाल में वित्त मंत्री ने बुनियादी ढांचा सेक्टर में कुल 105 लाख करोड़ रुपये के निवेश का ऐलान किया है, लेकिन यह एक दीर्घकालिक उपाय है और इससे इकोनॉमी पर तत्काल कोई असर पड़ता नहीं दिख रहा. सरकारी खर्च के अलावा निजी सेक्टर के निवेश बढ़ाने के उपाय सरकार को करने होंगे. यह तभी हो सकता है जब कारोबारियों का अर्थव्यवस्था में भरोसा जमे. अभी तो हाल यह है कि कारोबारी नए निवेश की जगह शेयर मार्केट में पैसा लगाना बेहतर समझ रहे हैं.
निजी खपत का न बढ़ पाना भी सरकार के लिए एक बड़ी चिंता है. खासकर ग्रामीण क्षेत्र में भी खपत का गिरना बेहद चिंताजनक है. खपत घटने के कई कारण हैं, लोगों के पास नौकरियां नहीं हैं, जिनके पास नौकरी है उनका वेतन बहुत ज्यादा नहीं बढ़ रहा. इससे लोगों ने खर्चों के मामले में अपने हाथ खींच लिए हैं. इसके अलावा गैर बैंकिंग वित्तीय सेक्टर में नकदी संकट की वजह से कर्ज वितरण घटा है जिसकी वजह से लोगों को कार, ट्रैक्टर, इलेक्ट्रॉनिक्स गुड्स आदि के लिए लोन कम मिलते हैं.
खपत बढ़ाने का एक उपाय यह है कि व्यक्तिगत आयकर छूट सीमा में बढ़ोतरी कर दी जाए ताकि आम लोगों की जेब में ज्यादा पैसा आए और वे उसे खपत में लगाएं. मीडिया में ऐसी तमाम खबरें आई हैं कि मोदी सरकार बजट 2020 में 2.5 लाख रुपये से 10 लाख रुपये के बीच की आमदनी पर इनकम टैक्स रेट 10 फीसदी रख सकती है. इसके साथ ही 10-20 लाख रुपये की आमदनी वाले लोगों के लिए इनकम टैक्स की दर घटाकर 20 फीसदी की जा सकती है. हालांकि अभी यह कयास ही हैं और वित्त मंत्री क्या करती हैं यह बजट का पिटारा खुलने के बाद ही पता चल पाएगा.