पहाड़ों के बीच सैकड़ों फीट नीचे चोरल नदी किनारे बसे गाँव केकड़िया डाबरी में रहने वाले 65 वर्षीय विश्राम हों या लोधिया गांव के भेरूसिंह या तुलसीराम, सबकी एक ही पीड़ा है कि नदी किनारे गाँव होने के बाद भी खेतों के लिए पानी नहीं है. गांव तक का पहुंच मार्ग अब भी खस्ता हाल है. बेका और गोकल्याकुंड के तालाब मंजूर तो हुए लेकिन जमीन पर कहीं नहीं दिखे. कुलथाना, उतेड़िया, कोपरबेल, भाट्याखेड़ा हो या इमलीपुरा, हर तरफ लोग परेशानी में जीवन यापन कर रहे हैं. शायद इसीलिए यहां विधानसभा चुनाव के एक दिन पहले तक भी उम्मीदवार प्रचार करने नहीं पहुंच पाए, अगर कोई पहुंचा है तो उम्मीदवारों के इक्का-दुक्का कार्यकर्ता, जो अपने नेता का सन्देश सुनकर लौट गए.

भौगोलिक रूप से दूर-दूर तक फैले महू विधानसभा क्षेत्र में न केवल जनता तक पहुंचना, बल्कि प्रशासनिक अमले के लिए चुनाव कराना भी लोहे के चने चबाने जैसा रहता है. क्षेत्र के लगभग 40 मतदान केंद्र ऐसे हैं, जहां पहुंचना बेहद मुश्किल होता है, पोलिंग पार्टी को इन केंद्रों पर पहुंचने में ही डेढ़ से दो घंटे का वक़्त लग जाता है.
यहां के मतदान केंद्रों पर बिजली की व्यवस्था भी नहीं है, सोमवार को जिम्मेदार कर्मचारी बिजली की फिटिंग करवा रहे थे. पानी के इंतजाम के लिए गांव के लोगों से मुलाकात कर रहे थे, रिटर्निंग अधिकारी प्रतुल सिन्हा बताते हैं कि यहाँ मतदान केंद्रों को स्थापित करने के लिए हम काफी पहले से तैयारी करना शुरू कर देते हैं, जिससे वहां की समस्याओं से पहले ही निपट लिया जाए.
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