सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने इच्छा मृत्यु को लेकर अहम बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि देश के प्रत्येक नागरिक को जीने का अधिकार है, साथ ही उसे सम्मानजनक तरीके से मरने का भी अधिकार है। यह अधिकारों का संतुलन है। भारती विश्वविद्यालय में कानून के छात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने यह बात कही।
सीजेआइ ने कहा कि किसी भी देश में संवैधानिक अधिकार उसके लोकतांत्रिक मूल्यों और सामाजिक स्वतंत्रता का आधार होते हैं। लेकिन इन अधिकारों में संतुलन भी होना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, हम संवैधानिक रूप से लोकतांत्रिक देश के नागरिक हैं। संविधान का एकमात्र उद्देश्य नागरिकों से जुड़े अधिकारों और उनकी स्वतंत्रता की रक्षा करना है। समाज के विकास की भावना को मजबूत करना है। संविधान अपने देश के नागरिकों के अधिकारों की रक्षा का आधार तैयार करता है। नागरिकों को संविधान के दायरे के भीतर अपने अधिकारों को प्राप्त करने का प्रयास करते रहना चाहिए।
इस बीच उन्होंने आगाह किया कि न्याय की व्यवस्था ध्वस्त हुई तो कानून व्यवस्था अपने आप खत्म हो जाएगी। इच्छा मृत्यु से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के फैसले की चर्चा करते हुए जस्टिस मिश्र ने कहा, यह बिल्कुल अलग मामला था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने विचार किया कि जिस तरह से हर नागरिक का सम्मान से जीने का हक है, वैसे ही उसे सम्मान से मरने का भी अधिकार है। उन्होंने कहा कि कई पश्चिमी देश अभी इसको लेकर दुविधा में हैं लेकिन भारत ने इसे स्पष्ट कर दिया है। पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इसी साल मार्च में इच्छा मृत्यु पर फैसला दिया है। कार्यक्रम में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस एएम खानविल्कर भी मौजूद थे।