तीन साल पहले की गई गणना में इंदौर और आसपास गिद्धों की संख्या 117 थी। देवगुराडिया क्षेत्र में तब सबसे ज्यादा गिद्ध मिले थे। इस क्षेत्र में उनके घोसले भी मिले। उसके बाद पेडमी मेें भी काफी गिद्ध मिले है।
इंदौर और आसपास के क्षेत्रों मेें वन विभाग ने शुक्रवार से गिद्धों की गिनती शुरू की। इसके लिए 18 टीमें बनाई गई है, जो सुबह छह बजे अलग-अलग स्थानों पर रवाना हो गई।
देवगुराडि़या, खंडवा रोड, कंपेल,पेडमी, तिन्छा, चिखली, पातालपानी सहित आसपास के क्षेत्रों में मिले गिद्धों के फोटो खींच कर उनकी गूगल लोकेशन वन विभाग के एप पर अपलोड की गई। इस बार वन विभाग ने एक एनजीअेा की मदद भी ली हैै।गणना की पूर्वाभ्यास गुरुवार को ट्रेंचिंग ग्राउंड पर किया गया। यह गणना दो दिन चलेगी और टीमें सुबह छह से आठ बजे तक गिद्धों की गिनती करेगी।
अवयस्क गिद्ध ज्यादा
तीन साल पहले की गई गणना में इंदौर और आसपास गिद्धों की संख्या 117 थी। देवगुराडिया क्षेत्र में तब सबसे ज्यादा गिद्ध मिले थे। इस क्षेत्र में उनके घोसले भी मिले। उसके बाद पेडमी मेें भी काफी गिद्ध मिले है। इंदौर व आसपास के क्षेत्रों में अवयस्क गिद्धों की संख्या 71 और वयस्क गिद्धों की संख्या 46 मिली थी।
खंडवा में गिद्धों की तस्करी मामला आया था सामने
गिनती करने गई टीमों को देवगुराडि़या क्षेत्र में काफी गिद्ध मिले। यह गणना विलुप्त हो रहे गिद्धों की प्रजाति को बचाने के लिए हो रही है। तीन साल पहले खंडवा में गिद्धों की तस्करी का मामला भी उजागर हुआ था। तब इसके तार मालेगांव महाराष्ट्र से अरब देशों तक मिले थे।
प्रदेश मेें सात साल पहले गिद्धों की गणना शुरू हुई है। गिद्धों की गिनती कर तैयार की गई रिपोर्ट वन विभाग के मुख्यालय भेजी जाएगी। इंदौर और आसपास के क्षेत्रों मेें देशी गिद्ध, सफेद पीठ वाले, किंग गिद्ध, सफेद और काले गिद्ध, यूरोपियन ग्रिफन, हिमालयन ग्रिफन प्रजाति के गिद्ध है,जबकि पूरे प्रदेश में इनकी संख्या दस हजार से अधिक है।