श्राद के महीने का हिन्दुओ में बेहद महत्व है हमारे हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार श्राद में हमारे पूर्वजो को याद कर उनको भोजन कराया जाता है ये माना जाता है की वो हमे कही ना कही से आशीर्वाद देने के लिए एक बार पृथ्वी लोक पर आते है इससे जुडी कई पुरानी कहानियां भी चलती है जिनका सीधा सीधा सम्बन्ध आपसे हमसे और हम सबकी जिन्दगी से है और ऐसी ही एक बहुत ही पुरानी कहानी है जो अबसे नही बल्कि रामायण काल से चली आ रही है और ये कहानी जब आप जानेंगे तो आपको विश्वास तो नही होगा लेकिन आपको करना तो होगा ही क्योंकि ये हमारी प्रमुख पांच प्रथ्वी पर मौजूद जातियों या फिर आप इसे क्रिचेयर भी कह सकते है से जुड़ी हुई है ये तब का समय है जब राम जी अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ वनवास काट रहे थे तभी उनके पास सूचना पहुँची कि उनके पिता दशरथ का तो देहांत हो चुका है ये खबर सुनते ही उन पर तो दुखो का पहाड़ ही टूट पड़ा लेकिन अब कर्तव्य भी निभाने ही थे।
दशरत के पिंडदान से जुडी थी वजह
माता सीता ने लक्ष्मण से कहा कि वो जाए और जाकर के पिंडदान के लिए कुछ सामान ढूंढकर के लाये ताकि पिताजी दशरथ महाराज का पिंडदान किया जा सके तो लक्ष्मण चले तो गए लेकिन काफी वक्त हो गया वो वापिस आये ही नही तो सीता माता भी व्याकुल हो उठी
इन लोगो से पुछा गया
इसके बाद उन्होंने अपने आस पास से ही कुछ व्यवस्था किया और दशरथ महाराज का पिंडदान कर दिया जिसके साक्षी एक पंडित, गाय, फल्गु नदी और कोआ बना जब राम और लक्ष्मण वापिस लौटे तो सीता ने कहा कि उन्होंने पिंडदान कर दिया और वो चाहे तो इन चारो से पूछ सकते है लेकिन जब राम जी ने उन चारो से पूछा तो वो चारो ही इस बात से मुकर गये जिसके बाद राम जी बड़े गुस्सा हुए तो सीता मैया ने तुरंत दशरथ महाराज की आत्मा को आने के लिए याचना की और वो आ गये जिसके बाद दशरथ महाराज ने कहा कि सीता ने उनका पिंडदान कर दिया है और ये चारो झूठ बोल रहे है।
जूठन खाने का श्राप
जिसके बाद सीता मैया ने उस एक पंडित के कारण सारे पंडितो को श्राप दे दिया कि कितना भी खाने को या राजाओं से मिल जाने पर भी तुम दरिद्र ही बने रहोगे, फल्गु नदी को पानी गिरने के बाद भी सूखी रहने का श्राप मिला,
गाय को पूजे जाने के बावजूद
गाय को पूजे जाने के बावजूद दर दर भटककर जूठन खाने का श्राप मिला और कोए को अकेले खाने से हमेशा भूखे रहने और हमेशा समूह में लड़ झगडकर पेट भरने का श्राप दिया और ये चारो चीजे आज भी हमे अपने सामने दिखाई देती है और रामायण की सत्यता का भी प्रमाण देती है