पाकिस्तान और चीन के संबंधों की बात दुनियाभर में किसी से छिपी नहीं है. दोनों देशों का मीडिया इस संबंध को भाईचारा के रूप देखता है. हालांकि चीन पाकिस्तान में सुरक्षा को लेकर पहले से ही चिंतित रहा है. पहले भी धार्मिक अतिवादियों और “बलूच” अलगाववादियों ने पाकिस्तान में चीनी नागरिकों को निशाना बनाया है.
इसी साल अगस्त महीने में एक आत्मघाती हमलावर ने चीनी इंजीनियरों को ले जा रही बस पर बलूचिस्तान के चाघी जिले में हमला किया था. इसमें हमलावर की मौत हो गई थी, लेकिन तीन चीनी इंजीनियर और तीन सुरक्षाकर्मी भी जख्मी हुए थे. हमले के पीछे पाकिस्तान ने बीएलए यानी बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी का हाथ बताया था.
यह कोई छिपी हुई बात नहीं है कि बलूच अलगाववादी बलूचिस्तान प्रांत में चीनी निवेश का विरोध कर रहे हैं. हालांकि पिछले हफ्ते बलूचिस्तान से बाहर कराची में जो हमला हुआ, उसे लेकर कहा जा रहा है कि बलूच अलगावादियों ने इस तरह का हमला बलूचिस्तान से बाहर पहली बार किया है. यह हमला कराची में सिंध प्रांत के पास किया गया.
पाकिस्तानी मीडिया में कई विश्लेषकों का कहना है कि बलूच अलगाववादी चीनी अधिकारियों के बीच डर का माहौल पैदा करना चाहते हैं और इसमें वे कुछ हद तक कामयाब भी हुए हैं. विश्लेषकों को आशंका है कि भविष्य में भी इस तरह के हमले जारी रहेंगे. इसीलिए पाकिस्तान के भीतर चाइना-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) की सुरक्षा को लेकर भी कई तरह के सवाल उठने लगे हैं.
हालांकि चीनी नागरिकों पर पाकिस्तान में हमले के पीछे धार्मिक अतिवादियों का भी हाथ रहा है. 2007 में इस्लामाबाद की लाल मस्जिद में पाकिस्तान की सेना की कार्रवाई के पीछे कई लोग चीनी दबाव को जिम्मेदार मानते हैं. कई विश्लेषकों का मानना है कि चीन में “उइगर” मुसलमानों के खिलाफ चीनी सरकार की सख्ती और जुल्म से भी पाकिस्तान में चीन विरोधी भावना प्रबल हुई है. इसके साथ ही कई और चीजें हैं जिनसे पाकिस्तान में चीन विरोधी भावना को हवा मिल रही है. अतीत में जब भी पाकिस्तान ने इस्लामिक अतिवादियों के खिलाफ कोई अभियान चलाया तो इसकी प्रतिक्रिया में चीनी नागरिकों को अगवा किया गया और उनकी हत्या हुई.
कराची में चीनी वाणिज्य दूतावास पर हमला और बलूचिस्तान में चीनी इंजीनियरों को ले जा रही बस पर हमले को देखते हुए कहा जा रहा है कि बलूच अलगाववादी पहले और ज्यादा खतरनाक हुए हैं. बलूच अलगाववादी अब इस्लामिक अतिवादियों के तरीकों को अपना रहे हैं क्योंकि पहले ये आत्मघाती हमलावरों का इस्तेमाल नहीं करते थे.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ (COAS) जनरल कमर बाजवा ने चीनी वाणिज्य दूतावास पर हुए हमले की निंदा की थी और जान-माल का ज्यादा नुकसान होने से बचाने के लिए सुरक्षाबलों की तारीफ की. इसके बाद पाकिस्तानी मीडिया ने वाणिज्य दूतावास पर हमले का दोष भारत के सिर पर मढ़ने की भी कोशिश की. पाकिस्तान के विश्लषकों ने आरोप लगाया कि भारत बलूचिस्तान में अलगाववादियों को समर्थन देता है.
पाकिस्तान के चीनी दूतावास ने भी हमले की निंदा करते हुए कहा था, ‘हमें पूरा विश्वास है कि पाकिस्तान अपने देश में चीनी संस्थाओं और लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में सक्षम है. चीन-पाकिस्तान की दोस्ती को तोड़ने की कोई भी कोशिश बेकार जाएगी.’
CPEC पर सुरक्षा चिंताएं-
बलूच लंबे समय से बलूचिस्तान में चीन की मौजूदगी और चीनी निवेश का विरोध कर रहे हैं. बलूचों को डर है कि CPEC प्रोजेक्ट से वहां की जनसांख्यिकी बदल जाएगी और वे अपने ही प्रांत में अल्पसंख्यक बनकर रह जाएंगे.
कई अरबों डॉलर की यह परियोजना बलूचिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से शुरू होती है. इसका मतलब है कि चीन आसानी से अपने पैर पीछे नहीं खींच सकता है. इसके बजाए बीजिंग बलूचिस्तान में अपने निवेश को सुरक्षित करने का तरीका ढूंढ निकालना चाहेगा. इस प्रांत में काम करते हुए कई चीनी इंजीनियर मारे जा चुके हैं और बलूच CPEC परियोजना को नुकसान पहुंचाने के लिए सोशल मीडिया पर धमकियां देते रहते हैं.
यह बात बिल्कुल साफ है कि पाकिस्तान में चीन के अपने भू-रणनीतिक और भू-आर्थिक हित हैं. चीन किसी भी कीमत पर CPEC को सफल होते देखना चाहता है. दूसरी तरफ, CPEC का विरोध कर रहे बलूच उग्रवादी चीन के लिए सबसे बड़ी चिंता है.
चीनी विश्लेषकों का कहना है कि चीन की सरकार को प्रोजेक्ट की सफलता के लिए सबसे पहले स्थानीय लोगों को समर्थन हासिल करने की कोशिश करनी चाहिए. कारेनेगी-शिंगुआ सेंटर के लिए लिखे पेपर में विश्लेषक शी जिक्विन और लु यांग ने कहा, चीन को केवल पाकिस्तान की सरकार से डील करने का तरीका छोड़ना चाहिए और स्थानीय समुदायों के हितों को ध्यान में रखते हुए उनसे बातचीत करनी चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा पाकिस्तानी इस परियोजना से लाभान्वित हो सकें.
‘द फाइनेंशियल टाइम्स’ की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन बलूच अलगाववादियों के साथ गोपनीय तरीके से बैठकें कर रहा है ताकि CPEC को बचाया जा सके. हालांकि, रिपोर्ट के आने के बाद चीन, पाकिस्तान और बलूचों ने इसका खंडन कर दिया.
चीन पर क्यों भड़के हैं बलूच-
सीपीईसी को पाकिस्तानी अधिकारियों ने गेमचेंजर बताया है लेकिन क्या बलूचों को अपनी राय रखने का मौका दिया गया? सीपीईसी ग्वादर और बलूचिस्तान से शुरू होता है, लेकिन पूरी परियोजना में बलूचों को कभी शामिल ही नहीं किया गया. कोई यह कहने की हालत में नहीं है कि बलूचिस्तान में सीपीईसी प्रोजेक्ट से बलूचों को भी फायदा होगा.
बलूचों की जमीन ही कॉरिडोर की रीढ़ है लेकिन सीपीईसी की घोषणा के वक्त उनकी सहमति नहीं ली गई. इसके अलावा बलूच उस आने वाले खतरे को महसूस कर रहे हैं जो सीपीईसी के बाद से बाहरी लोगों के पहुंचने से होने वाला है.
ग्वादर में अधिकतर लोगों ने बलूचिस्तान से बाहर से आए कई निवेशकों को अपनी जमीनें बेच दी हैं. धीरे-धीरे इलाके की जनसंख्या के स्वरूप में पूरी तरह से बदलाव हो जाएगा और बाहरी वहां हावी हो जाएंगे.
CPEC प्रोजेक्ट से बलूच और राज्य के बीच संघर्ष पैदा हो सकता है क्योंकि शुरुआत से ही दोनों के बीच अविश्वास कायम रहा है. जहां पाकिस्तान सीपीईसी प्रोजेक्ट के लिए 10,000 संख्या वाले सुरक्षाकर्मियों की तैनाती करने का ऐलान कर चुका है तो दूसरी तरफ नाराज बलूच मजदूरों पर हमला करते रहते हैं.
पाकिस्तान का कुछ पाने की होड़ में जल्दबाजी करने का इतिहास रहा है- बिना जमीनी हकीकत को समझने का वक्त लिए बिना वह कदम आगे बढ़ा देता है. पाकिस्तान बलूचिस्तान में CPEC में फिर से वही गलती दोहरा रहा है. क्या पाकिस्तान चीन की मदद से एक ऐसे प्रांत में विकास ला सकता है जहां हमेशा सरकार के खिलाफ विद्रोह होते रहते हैं?
बलूचिस्तान के कई युवा पंजाब, सिंध और खैबर प्रांतों में उच्च शिक्षा ले रहे हैं, लेकिन डिग्री लेने के बाद उनके पास कोई नौकरी नहीं है. पाकिस्तान को बलूचों को यह यकीन दिलाना होगा कि सीपीईसी से होने वाला विकास बाहरी लोगों के लिए नहीं बल्कि उनके लिए होगा. अगर पाकिस्तान ऐसा करने में कामयाब नहीं होता है तो ये युवा भी बलूच अलगाववादियों के साथ मिलकर पाकिस्तान के लिए चुनौती पेश करेंगे.
जर्मन मार्शल फंड एशिया प्रोग्राम में सीनियर फेलो एंड्र स्मैल कहते हैं. बलूच लिबरेशन आर्मी पाकिस्तान में चीन के हितों पर दो वजहों से निशाना साध रही है. पहला तो वे चीन पर बलूचिस्तान से हटने के लिए दवाब डालना चाहती है और दूसरा वह पाकिस्तान सरकार को भी अपने दवाब में लेना चाहती है. वह कहते हैं कि चीन को टारगेट कर किए जा रहे हमले पाकिस्तान के लिए राजनीतिक तौर पर बेहद संवेदनशील मुद्दा है.
अगर पाकिस्तान में चीन के लोगों को निशाना बनाते हुए अब कोई और हमला होता है तो बीजिंग को घबराहट हो सकती है कि वह पाकिस्तान में अपने वर्करों को भेजना जारी रखे या नहीं. ऐसे में पाकिस्तान पर चीन का दबाव और बढ़ जाएगा.
पिछले सप्ताह सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो गया था जिसमें दावा किया गया था कि एक पाकिस्तानी छात्र उसामा की चीनी गर्लफ्रेंड के पिता और भाई ने चाकू मारकर कर दी थी. पाकिस्तानी सरकार ने इस मामले पर तुरंत प्रतिक्रिया दी और विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि उसामा ने आत्महत्या की है. खान सरकार को मालूम है कि उनके देश में चीन के खिलाफ भावनाएं प्रबल होना खतरनाक साबित हो सकता है.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान फिलहाल बड़ी मुश्किल स्थिति में फंस गए हैं. उनकी सरकार भुगतान संकट से बचने के लिए बीजिंग से बड़ी आर्थिक मदद पाने की कोशिश कर रही है.
इस्लामाबाद ने 6 बिलियन डॉलर की मदद सऊदी अरब से ली है और इसके बाद बार-बार कर्ज के लिए चीन और यूएई का दरवाजा खटखटा रहा है. पाक पीएम इमरान खान ने हाल ही में बीजिंग का दौरा किया था जिसके बाद चीन ने पैकेज देने के लिए सकारात्मक संकेत दिए थे लेकिन अभी इसे फाइनल नहीं किया गया है. विश्लेषकों का कहना है कि कराची हमले की वजह से इस्लामाबाद अब चीन से मोल-तोल करने की हालत में नहीं रह गया है.
फिलहाल, दोनों देश एक-दूसरे की दोस्ती पर भरोसा दिखा रहे हैं, लेकिन चीन के लोगों और संस्थाओं पर अगर अब एक और हमला होता है तो यह दोनों की दोस्ती का इम्तिहान होगा. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि देश में चीन के खिलाफ भावनाएं ना भड़कें और स्थिति नियंत्रण में रहे.
जाहिर है, दोनों देशों का बहुत कुछ दांव पर लगा है, पाकिस्तान के लिए जीवनरक्षक बेलआउट पैकेज और चीन के लिए उसकी महत्वकांक्षी परियोजना बेल्ट और रोड.