आखिर इन 'मनहूस' जगहों पर जाने से क्यों डरते हैं बड़े-बड़े नेता!

आखिर इन ‘मनहूस’ जगहों पर जाने से क्यों डरते हैं बड़े-बड़े नेता!

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश सिंह यादव ने नोएडा से जुड़े अंधविश्वास को एक नया मोड़ दे दिया है. यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में नोएडा से जुड़े मिथक को तोड़ते हुए यहां का दौरा किया था.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ के नोएडा दौरे पर टिप्पणी करते हुए अखिलेश सिंह ने कहा, नोएडा का दौरा करने का परिणाम देखना अभी बाकी है. इस बार दोनों ने ही नोएडा का दौरा किया है, देखते हैं इसका क्या नतीजा देखने को मिलता है.नोएडा का अंधविश्वास से रिश्ता तब जुड़ना शुरू हुआ जब 1980 के दशक में वीर बहादुर सिंह और एन डी तिवारी के नोएडा दौरा करने के बाद सीएम की कुर्सी गंवा बैठे. यूपी के मुख्यमंत्री रहते हुए राजनाथ सिंह, मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव ने कभी भी नोएडा का दौरा नहीं किया.आखिर इन 'मनहूस' जगहों पर जाने से क्यों डरते हैं बड़े-बड़े नेता!
बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने एक बार नोएडा जाकर इस मिथक को तोड़ने की कोशिश की लेकिन इसके बाद ही वह 2012 में विधानसभा चुनाव हार गईं और नोएडा और मिथक का रिश्ता और मजबूत होता गया. यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने हालांकि कभी नोएडा से जुड़े मिथक में विश्वास नहीं जताया लेकिन रविवार को वह इसी अंधविश्वास के सहारे उत्तर प्रदेश में अपनी वापसी की उम्मीद जताई है.

 

आपको बता दें कि केवल नोएडा से ही ऐसे मिथक नहीं जुड़े हुए हैं बल्कि देश की और भी जगहें हैं जहां बड़े-बड़े राजनीतिज्ञ जाने से बचते रहे हैं. आइए जानतें है कौन सी जगहों पर बड़े-बड़े राजनेता जाने से कतराते हैं…
 

मध्य प्रदेश का अशोकनगर25 दिसंबर को जब योगी और मोदी ने दिल्ली मेट्रो की मैजेंटा लाइन का उद्गघाटन किया तो मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि वह भी जल्द ही मध्य प्रदेश के अशोकनगर के जिला हेडक्वॉर्टर का दौरा करेंगे.अशोकनगर जिला हेडक्वॉर्टर के साथ ठीक उसी तरह का अंधविश्वास जुड़ा हुआ है जैसे नोएडा के साथ. ऐसा मिथक है कि मध्य प्रदेश का जो मुख्यमंत्री इस प्राचीन कस्बे का दौरा करता है, अपनी कुर्सी गंवा बैठता है. इस कस्बे का नाम मौर्य सम्राट अशोक के नाम पर रखा गया है. यह गुना लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आता है.अशोकनगर के साथ तब यह मिथक जुड़ गया जब 1970 में  यहां का दौरा करने के बाद प्रकाश चंद सेठी मुख्यमंत्री के पद से हटा दिए गए. इसके बाद 1975 में इसी कस्बे का दौरा करने के तुंरत बाद श्याम चरण शुक्ला भी अपना मुख्यमंत्री पद खो बैठे.यह मिथक तब और मजबूत हो गया जब 1984 में अर्जुन सिंह ने, 1993 में सुंदरलाल पटवा और 2003 में दिग्विजय सिंह ने अपनी कुर्सियां गंवा दीं.
 

मध्य प्रदेश का इच्छावरइच्छावर से भी बदकिस्मती का नाता जुड़ा हुआ है.  मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने 12 साल के कार्यकाल में यहां का दौरा नहीं किया. दिलचस्प बात यह है कि इच्छावर उनके गृहनगर सेहोर में ही स्थित है.हाल ही में कांग्रेस के एक विधायक शैलेन्द्र पटेल ने मध्य प्रदेश की विधानसभा में यह मुद्दा उठाया था कि सीएम शिवराज सिंह चौहान ने इसलिए इच्छावर का दौरा करने से बचते हैं क्योंकि उन्हें अपने अंधविश्वास की वजह से सत्ता जाने का डर सताता है.
 

हालांकि इच्छावर से जुड़े मिथकों का भी एक इतिहास है. कैलाशनाथ काटजू ने 1962 में इच्छावर का दौरा करने के बाद अपनी सीएम की कुर्सी से हाथ धो बैठे थे. उनके बाद द्वारका प्रसाद मिश्रा 1967 में और कैलाश जोशी 1977 में, वीरेंद्र कुमार सकलेचा 1979 में और दिग्विजय सिंह 2003 में कुर्सी गंवाकर इच्छावर के दौरे से जुड़े मिथक को बनाए रखते गए. सबसे बड़ी विडंबना यह कि दिग्विजय सिंह ने नवंबर 2003 में इच्छावर का दौरा मिथक को तोड़ने के लिए ही किया था लेकिन दौरे के बाद वह सत्ता से बाहर हो गए और मिथक का सिलसिला जारी रहा.
 

उज्जैनधार्मिक नगरी उज्जैन वैसे तो महाकालेश्वर मंदिर के लिए प्रसिद्ध है लेकिन दूसरी तरफ मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री इस शहर का दौरा करने से डरते हैं.मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्रियों और शाही परिवार के सदस्य उज्जैन में रात्रि बिताने से कतराते हैं. यहां तक कि शिवराज सिंह चौहान ने भी इस परंपरा को बनाए रखा है. उन्होंने कई बार मंदिर में दर्शन किए और पूजा-अर्चना की लेकिन रात होने से पहले ही लौट गए.
 

ऐसा माना जाता है कि महाकाल और भगवान शिव उज्जैन के राजा हैं और अन्य शासक सीएम या फिर शाही परिवार के सदस्य शहर में रात्रि में रुक नहीं सकते हैं. ऐसा मिथक है कि अगर वे ऐसा करते हैं तो उनके साथ कुछ बुरा हो सकता है.
 

मध्य प्रदेश के कदमगिरी पहाड़ी के साथ भी कुछ ऐसा ही मिथक जुड़ा हुआ है. बड़े-बड़े राजनीतिज्ञ भी इससे जुड़े दैवीय प्रकोप से बचने के लिए इस पहाड़ी के ऊपर उड़ने से बचते हैं. ऐसी मान्यता है कि अपने वनवास के दौरान भगवान राम यहां कुछ समय तक के लिए रुके थे और अगर कोई अपने हेलिकॉप्टर से यहां से गुजरता है तो उसे दुर्भाग्य का सामना करना पड़ता है.
 

तमिलनाडु का बृहदेश्वर मंदिर-तमिलनाडु के तंजावुर स्थित बृहदेश्वर मंदिर भी राजनीतिज्ञों को रास नहीं आता है. ऐसा माना जाता है कि अगर कोई वीआईपी इस मंदिर के मुख्य द्वार से प्रवेश करता है तो या तो जल्द ही सत्ता खो देता है या फिर बीमार या अन्य दुर्घटना का शिकार हो जाता है.
 

इस अंधविश्वास को तब हवा मिली जब 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई थी और तमिलनाडु सीएम एमजी रामचंद्रन को एक स्ट्रोक झेलना पड़ा. दोनों शख्सियतों ने ही इससे कुछ दिन पहले ही मंदिर के मुख्य गेट से प्रवेश किया था.तब से किसी भी राजनीतिज्ञ ने मंदिर के इस मेन गेट से प्रवेश करने की हिम्मत नहीं दिखाई है. यहां तक कि खुद को तर्कवादी मानने वाले एम करुणानिधि ने भी अपने मुख्यमंत्रित्व काल में 1997 में मंदिर के साइड एंट्रेस से ही मंदिर में प्रवेश किया था. एम करुणानिधि ने मंदिर परिसर में आग लगने से हुए हादसे के बाद मंदिर का दौरा किया था.

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