सूतक काल को शास्त्रीय भाषा में अशौच काल भी कहा गया है। यह दो प्रकार का होता है पहला है बच्चे के जन्म लेने के बाद लगने वाला सूतक और दूसरा मृत्यु के पश्चात लगने वाला सूतक। हम मृत्यु के बाद लगाने वाले सूतक की चर्चा करेंगे। जब भी किसी व्यक्ति के घर-परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु होती है तो उस कुल में कुछ दिनों के लिए सूतक काल लग जाता है।
शास्त्रों के अनुसार ब्राम्हण को दस दिन का, क्षत्रिय को बारह दिन का, वैश्य को पंद्रह दिन का और शूद्र को एक महीने का सूतक लगता है किंतु विशेष परिस्थितियों में चारों वर्णों की शुद्धि दस दिनों में ही हो जाती है। इसे शारीरिक शुद्धि कहते हैं इसके पश्चात किसी भी तरह का छुआछूत दोष नहीं रहता तथा त्रयोदश संस्कार के बाद पूर्णशुद्धि हो जाती है।
अतः परिवार में देवताओं की पूजा-आराधना इसके पश्चात ही की जाती है जिसमें स्थित सर्वप्रथम भगवान विष्णु की पूजा अथवा सत्यनारायण कथा का श्रवण अनिवार्य रूप से किया जाता है।किसी कारणवश सूतक काल के दस दिनों के अंदर परिवार के किसी और सदस्य की मृत्यु हो जाए तो पहले सदस्य की मृत्यु तिथि के अनुसार ही दूसरे सदस्य के सूतक का भी समापन हो जाएगा। शास्त्रों के अनुसार पहले से लगा हुआ सूतक दसवें दिन की रात्रि के तीन प्रहर तक किसी की भी मृत्यु हो तो पहले के दस दिन के अतिरिक्त दो दिन तक का ही सूतक लगेगा।
यदि दसवें दिन के चौथे प्रहर तक में भी परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु हो तो तीन दिनों का अतिरिक्त सूतक रहेगा किंतु, क्रिया कर्म करने वाले व्यक्ति के लिए यह सूतक दस दिनों के लिए ही मान्य होगा, कुल के अन्य सदस्य सूतक दोष से मुक्त हो जाएंगे।
पिता की मृत्यु के पश्चात यदि दस दिनों के अंदर माता की भी मृत्यु हो जाए तो सूतक डेढ़ दिनों के लिए और बढ़ जाएगा। यदि माता की मृत्यु के दस दिनों के अंतराल में पिता की भी मृत्यु हो जाए तो पिता के मृत्यु के दिनों से पूरे दस दिनों तक सूतक काल माना जाता है।
किसी कारणवश मृत्यु दिवस के दिन दाह संस्कार न हो सके तब भी मृत्यु दिवस के दिन से ही सूतक काल को गिना जाएगा। अग्निहोत्र करने वालों के लिए सूतककाल दस दिनों तक के लिए ही माना जाएगा।
यदि कन्या का विवाह हो जाता है उसके पश्चात माता पिता की मृत्यु हो तो विवाहिता स्त्री के लिए तीन दिन का सूतक माना गया है। मृत्यु के पश्चात जब तक घर में शव रहे तब तक वहां उपस्थित सभी गोत्र के लोगों को सूतक का दोष लगता है। यदि कोई भी व्यक्ति किसी और जाति के व्यक्ति को कंधा देता है या उसके घर में रहता है, वहां भोजन करता है तो उसके लिए भी सूतक काल दस दिनों तक के लिए मान्य होगा।
कोई भी व्यक्ति यदि केवल शव को कंधा देने के लिए शामिल होते हैं तो उनके लिए सूतककाल एक दिन के लिए ही मान्य होगा।
दाह संस्कार यदि दिन के समय ही संपन्न हो जाए तो शव यात्रा में शामिल होने वाले लोगों को सूर्यास्त के पश्चात सूतक दोष नहीं लगता।
रात्रि में दाह संस्कार होने पर सूर्योदय से पूर्व तक सूतक दोष रहता है। सूतक काल में किसी भी तरह के मांगलिक कार्य तथा परिवार के सदस्यों के लिए श्रृंगार आदि करना वर्जित कहा गया है।