सुप्रीम कोर्ट ने अवैध प्रवासियों को वापस भेजने में ढिलाई बरतने पर असम सरकार को फटकार लगाई और 27 मार्च तक विस्तृत विवरण दाखिल करने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि काफी लंबा समय बीत चुका है, लेकिन सरकार अब तक इन लोगों को वापस नहीं भेज सकी है। शीर्ष अदालत ने विदेशी ट्रिब्यूनल के कामकाज पर भी नाराजगी जताई।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने वर्ष 2005 में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि हम यह जानना चाहते हैं कि इस समस्या से निपटने के लिए केंद्र और असम सरकार ने क्या प्रयास किए। इस पर केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि पिछले 10 वर्षों में न्यायाधिकरण द्वारा 50 हजार से ज्यादा प्रवासियों को विदेशी घोषित किया जा चुका है।
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि करीब 900 लोगों को छह हिरासत शिविरों में रखा गया है। इस पर पीठ ने कहा कि आपको बताना होगा कि राज्य में काम कर रहे विदेशी ट्रिब्यूनल किस तरह से काम करते हैं। हम असम के मुख्य सचिव को पेश होने के लिए जोर तो नहीं दे रहे हैं, लेकिन सरकार के हलफनामे के जरिये जानना चाहते हैं कि राज्य में काम कर रहे विदेशी ट्रिब्यूनल पर्याप्त हैं या नहीं। पीठ ने इस बात पर नाराजगी जताई कि कितने विदेशी लापता हैं, इस बारे में जानकारी नहीं दी गई है। पीठ ने कहा कि यह दिखाता है कि असम सरकार इस मसले पर कितनी गंभीर है।
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