अलवर में बीएसपी फैक्टर बिगाड़ सकता है कांग्रेस-बीजेपी का खेल

राजस्थान में विधानसभा चुनावों के खत्म होते ही आगामी लोकसभा चुनाव की सुगबुगाहट तेज हो गई है. चूंकि राज्य में विधानसभा चुनावों के कुछ ही महीनों बाद देश में आम चुनाव होते हैं लिहाजा इन चुनावों का असर लोकसभा पर भी पड़ता है. साल 2013 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी भारी बहुमत से जीती थी, जिसके बाद 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने यहां की सभी 25 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी.

लेकिन 2018 की शुरुआत में हुए उपचुनावों में बीजेपी ने अलवर और अजमेर सीट कांग्रेस के हाथों गंवा दी लिहाजा इस वक्त राजस्थान से बीजेपी के 23 और कांग्रेस के 2 सांसद हैं. हाल में हुए 200 सदस्यों वाली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने 99 सीटों के साथ सत्ता में एक बार फिर वापसी की है तो वहीं बीजेपी 73 सीटों के साथ विपक्ष में है.

राजनीतिक पृष्ठभूमि

अलवर संसदीय सीट पर आजादी के बाद से अब तक हुए कुल 16 आम चुनावों में 10 बार कांग्रेस, 3 बार बीजेपी, 1 बार जनपा दल, 1 बार भारतीय लोकदल और 1 बार निदर्लीय का कब्जा रहा. साल 2014 के चुनाव में बीजेपी के चांदनाथ यहां सांसद बने.

अलवर लोकसभा सीट से बीजेपी सांसद चांद नाथ के निधन के बाद 2018 की शुरुआत में उपचुनाव हुए थे. इस चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही दलों की तरफ से यादव उम्मीदवार मैदान में उतरे थे. कांग्रेस की तरफ से पूर्व सांसद डॉ करन सिंह यादव ने बीजेपी के पूर्व सांसद डॉ जसवंत सिंह यादव को 1,96,496 मतों के भारी अंतर से पराजित किया. कांग्रेस के करन सिंह यादव को 6,42,416 और बीजेपी के जसवंत सिंह यादव को 4,45,920 वोट मिले थे.

सामाजिक ताना-बाना

अलवर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र संख्या 8 की बात की जाय तो 2018 में हुए उपचुनाव के मुताबिक इस सीट पर मतदाताओं की संख्या 18,27,936 है, जिसमें 9,70,868 पुरुष और 8,57,003 महिला मतदाता हैं. वोटरों में से करीब 3.6 लाख यादव हैं. 4.5 लाख दलित, 1.4 लाख जाट, 1.15 लाख ब्राह्मण और 1 लाख के करीब वैश्य वोटर हैं. अलवर में मेव मुस्लिम वोट की तादाद भी बड़ी है इस समुदाय की आबादी करीब 3.35 लाख है.

हाल के दिनों अलवर का नाम गोरक्षा के नाम पर मॉब लिंचिंग की वजह से चर्चा में रहा. पिछले साल कथित गौरक्षकों के हाथों पहलू खान और उमर मोहम्मद की हत्याओं के बाद अलवर सुर्खियों में था.

अलवर लोकसभा उपचुनाव के बाद दिसंबर 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में इस क्षेत्र के सियासी समीकरण काफी तेजी से बदले. जहां उपचुनाव में कांग्रेस ने अलवर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली सभी 8 सीटों पर बड़ी बढ़त हासिल की थी तो वहीं अब विधानसभा चुनाव में इन 8 विधानसभा क्षेत्रों में से कांग्रेस व बीजेपी के पास महज 3-2 सीट हैं. जिसमें कांग्रेस ने अलवर ग्रामीण, रामगढ़ और राजगढ़-लक्ष्मणगढ़ विधानसभा में जीत हासिल की. वहीं बीजेपी ने अलवर शहर और मुण्डावर विधानसभा जीत सकी.

विधानसभा चुनाव में बीएसपी अलवर में बड़ी ताकत बन कर उभरी है जो दोनो राष्ट्रीय दलों का समीकरण खराब कर सकती है. बीएसपी ने इस बार तिजारा और किशनगढ़ बास सीट पर जीत दर्ज की तो वहीं मुणडावर सीट पर दूसरे नंबर पर रही. किशनगढ़ बास सीट पर अलवर के मौजूदा कांग्रेस सांसद डॉ करन सिंह यादव चुनाव लड़े थे लेकिन वे हार गए. वहीं बहरोड़ सीट पर निर्दलीय ने कब्जा जमाया. जिले की तीन अन्य सीट थानागाजी, कठूमर और बानसूर अलवर लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा नहीं हैं.

2014 का जनादेश

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के दौरान बीजेपी उम्मीदवार चांदनाथ ने कांग्रेस सांसद और तत्कालीन केंद्रीय मंत्री भंवर जितेंद्र सिंह को 2,83,895 मतों के भारी अंतर से पराजित किया. बीजेपी से चांदनाथ को 6,42,278 और कांग्रेस से जितेंद्र सिंह को 3,58,383 वोट मिले थे.

सांसद का रिपोर्ट कार्ड

73 वर्षीय अलवर सांसद डॉ करन सिंह यादव इससे पहले 2004 में भी सांसद रह चुके हैं. वही बहरोड़ विधानसभा सीट से दो बार विधायक भी रहें. पेशे से चिकित्सक डॉ करन सिंह यादव जयपुर से एसएमएस अस्पताल में मेडिकल सुप्रिटेंडेंट भी रह चुके हैं और राजस्थान यादव महासभा के अध्यक्ष हैं. सांसद के तौर पर लोकसभा में उनके कार्यकाल के दौरान चली 61 दिनों की संसद में उनकी मौजूदी 55 दिन रही. इस दौरान उन्होंने कुल 21 सवाल पूछे और 16 बहस में हिस्सा लिया.

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