अमेरिकी विदेश मंत्री ने खुद बताया क्यों रूस से तेल खरीदने पर नहीं लगा रहे पाबंदी?

दुनिया ने एक बार फिर से अमेरिकी के दोहरी मापदंड को देख लिया है। अमेरिका ने रूस से तेल खरीदने के लिए भारत पर भारी टैरिफ थोप दिए, लेकिन चीन को ऐसी किसी कार्रवाई से बख्श दिया।

अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने खुले तौर पर माना कि चीन पर पाबंदी लगाने से वैश्विक तेल बाजार में उथल-पुथल मच सकती है। दूसरी तरफ, भारत को 50 फीसदी टैरिफ की मार झेलनी पड़ रही है। यह दोहरा रवैया सवाल उठा रहा है कि आखिर अमेरिका भारत के साथ सौतेला व्यवहार क्यों कर रहा है?

रुबियो ने फॉक्स न्यूज से बातचीत में कहा कि अगर चीन पर रूसी तेल रिफाइन करने की पाबंदी लगाई गई, तो तेल की कीमतें आसमान छू सकती हैं।

उन्होंने बताया कि यूरोपीय देश भी ऐसी पाबंदियों से नाखुश हैं। रुबियो ने कहा, “चीन रूसी तेल को रिफाइन करके वैश्विक बाजार में बेच देगा, जिससे तेल महंगा हो जाएगा या फिर दूसरा रास्ता ढूंढना पड़ेगा।”

भारत पर टैरिफ की मार

अमेरिका ने भारत के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए पहले 25 फीसदी टैरिफ लगाया, जिसे अब बढ़ाकर 50 फीसदी कर दिया गया है। यह कदम इसलिए उठाया गया, क्योंकि भारत रूस से सस्ता तेल खरीद रहा है।

रुबियो ने फॉक्स रेडियो पर कहा कि भारत का रूस से तेल खरीदना “रूसी युद्ध को बढ़ावा दे रहा है” और यह अमेरिका-भारत रिश्तों में “तल्खी की वजह” है। हालांकि, उन्होंने यह भी माना कि भारत की ऊर्जा जरूरतें बहुत बड़ी हैं और वह सस्ते रूसी तेल पर निर्भर है।

भारत ने अमेरिका के इस रवैये को “दोहरा मापदंड” करार दिया है। नई दिल्ली ने साफ किया कि वह रूस से तेल खरीदना बंद नहीं करेगा। भारत का कहना है कि जब चीन बिना किसी रोक-टोक के रूसी तेल खरीद रहा है, तो अमेरिका का भारत पर सख्ती करना गलत है।

क्या है असली माजरा?

यह पूरा मसला वैश्विक सियासत और तेल की जंग का हिस्सा है। अमेरिका एक तरफ रूस को कमजोर करना चाहता है, लेकिन चीन जैसे बड़े खिलाड़ी पर हाथ डालने से बच रहा है। भारत, जो अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए रूस का साथ दे रहा है, अमेरिका की नजरों में खटक रहा है।

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