ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता ने कहा, ‘फ्लिक का बड़े पैमाने पर तो कोई असर नहीं होगा लेकिन वर्चुअल दुनिया के अनुभवों को इससे ज्यादा बेहतर बनाने में मदद मिलेगी। फ्लिक को प्रोग्रामिंग भाषा ‘सी++’ में परिभाषित किया गया है, जिसका इस्तेमाल किसी फ़िल्म, टीवी शो या मीडिया में विज़ुअल इफेक्ट्स के लिए किया जाता है। फ्लिक की वजह से प्रोग्रामर्स फ्रैक्शंस के इस्तेमाल बिना मीडिया फ्रेम्स के बीच का वक्त जान सकेंगे।
गलतियों में आएगी कमी?
बीबीसी रिसर्च एंड डेवलपमेंट के प्रमुख रिसर्च इंजीनियर मैट हैमंड के मुताबिक, ग्राफिक्स में अटकने जैसी जो गलतियां होती हैं, फ्लिक के आने से इसमें कमी आएगी। उन्होंने कहा, ‘जब इस्तेमाल किए हुए नंबर पूरी संख्या के न हों, तब कंप्यूटर की कैलकुलेशन में धीरे-धीरे ग़लतियां होने लगती हैं। इन गलतियों को बाद में ठीक तो किया जा सकता है। लेकिन ये अशुद्धियां ध्यान देने योग्य होती हैं।’
फ्लिक को बनाने वाले क्रिस्टोफर होर्वाथ ने 2017 में इस आइडिया को फेसबुक पर शेयर किया था। ‘गिटगब’ के मुताबिक, इसके बाद फीडबैक में लोगों से मिले कमेंट्स के बाद उन्होंने इसमें बदलाव किए।
अपनी पहचान छिपाए रखने की शर्त पर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता ने कहा, ‘फ्लिक की वजह से डेवलपर्स को देरी से निपटने में मदद मिलेगी। शैक्षणिक साहित्य में कई बार मौजूदगी और तन्मयता की ऐसी भावना होती है”
उन्होंने बताया, ”किसी कंप्यूटर गेम को खेलते हुए आप जो जुड़ाव महसूस करते हैं, वो तन्मयता है। मौजूदगी आपके दिमाग की वो भावना है, जिसमें आपको लगता है कि आप वहां हैं।” ”मौजूदगी को बेहद आसान तरीके से भंग किया जा सकता है। मुझे लगता है कि वक्त के चरणों को एक तय तरीके से परिभाषित किए जाने से डेवलपर्स को आसानी होगी।”
किसी बड़ी कंपनी की ओर से वक्त की यूनिट को खोजा जाना एकलौता वाकया नहीं है। इससे पहले 1998 में स्वैच ने इंटरनेट टाइम से दुनिया को रूबरू करवाया था, जो एक दिन को एक हजार बीट्स में बांटता है।
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