नौ पेज के इस दस्तावेज को अगस्त में तैयार किया गया था, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर बलूचिस्तान का मुद्दा उठाया था। डॉक्युमेंट में कहा गया है, ‘हमें आशंका है कि बलूच और गिलगित बाल्टिस्तान के ज्यादा से ज्यादा लोग यूनाइटेड जेहाद काउंसिल, लश्कर-ए-तैयबा और यहां तक इंडियन मुजाहिद्दीन में शामिल हो सकते हैं।’ इसके मुताबिक, बलूचिस्तान मुद्दे को उछालने का असर हैदराबाद और जूनागढ़ में भी दिख सकता है, जो जम्मू-कश्मीर से बाहर हैं।
इस डॉक्युमेंट को केंद्रीय गृह मंत्रालय और खुफिया एजेंसियों को भी भेजा गया है। इसे कश्मीर में चल रहे मौजूदा तनाव के दौरान तैयार किया, ताकि भविष्य में राज्य में सुरक्षा हालात और बदतर नहीं हो।
डॉक्युमेंट में कहा गया है कि लाइन ऑफ कंट्रोल के पार चीन की मौजूदगी अभूतपूर्व है और भारत को लद्दाख में तैयार रहना पड़ेगा। इसके मुताबिक, ‘अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के लिए समस्या खड़ी करने के अलावा चीन CPEC पर बड़े निवेश को बचाने के लिए कुछ भी कर सकता है, जो गिलगित बाल्टिस्तान और बलूचिस्तान से गुजरती है।
यह मामला नियमित तौर पर भारतीय सीमा के अंदर घुसने से ज्यादा का हो सकता है।’ डॉक्युमेंट की मानें तो जम्मू और कश्मीर खास तौर पर लद्दाख में मौजूद भारतीय सेना को इसके लिए तैयार रहने की जरूरत है। इसमें कहा गया है, ‘सेना फिलहाल मुख्य तौर पर वैसी गतिविधियों में शामिल है, जो सिविल एडमिनिस्ट्रेशन का क्षेत्र हो सकता है।
पाकिस्तान भी भारत विरोधी अभियान को शह देगा और वैसे लोगों की मदद करेगा जो बलूचिस्तान में भारत की संलिप्तता का दावा करते हैं। अब अक्सर लोगों को ऐसा दावा करते हुए देखा जा सकता है कि गिलगित बाल्टिस्तान और बलूचिस्तान का समर्थन भारत की बाहरी एजेंसियां कर रही हैं।’