शुद्ध रत्न जैसे पुखराज, पन्ना, हीरा और नीलम को बहुमूल्य रत्नों की श्रेणी में रखा गया है। यह बहुत कीमती होते हैं। यह रत्न कहीं से भी किसी से भी मिले उन्हें ले लेना चाहिए।
विद्या अनमोल धन है। ज्ञान एक ऐसा माध्यम है, जो दूसरों को देने से स्वयं की विद्या में इज़ाफा होता है। जहां कहीं भी ज्ञान का प्रसाद मिले, उसे लपक कर ले लेना चाहिए। मनुस्मृति में बताया गया है, ज्ञान भटके हुए जीवों के जीवन को नई दिशा देता है।
धर्म का अर्थ है धारण करना अर्थात जिसे ग्रहण किया जा सके, धर्म कर्म प्रधान है। यह एक शब्द न होकर जीवन का सार है। जो व्यक्ति धर्म की राह पर चलता है, वह कभी भी जीवन में धोखा नहीं खा सकता।
मनुस्मृति में मन की पवित्रता की बात गई है। यानि मनुष्य के व्यवहार से लेकर जीवन जीने के ढंग को भी बताया गया है। पवित्रता यानि केवल शरीर की पवित्रता नहीं होती है। मनुस्मृति के अनुसार पवित्रता का अर्थ मनुष्य के आचार-विचार और जीवन-यापन के तरीकों से जुड़ा है।
सत्संग में दिया गया उपदेश या ज्ञान कभी भी भूलना नहीं चाहिए। क्योंकि यही ज्ञान हमारे जीवन की दिशा निर्धारित करता है। जीवन जीने का सही ढंग बताता है। संत-महात्मा या ज्ञानी उपदेश दें तो बिना सोचें समझे उसे अपने जीवन में उतार लेना चाहिए।
कोई भी कला को सीखने के लिए जाति, उम्र या धर्म नहीं देखा जाता। कला सीखने के लिए मन में चाह और इच्छा होनी चाहिए। इच्छा शक्ति से हम कुछ भी सीख सकते हैं।
स्त्री का अर्थ केवल सुंदर होना ही नहीं, बल्कि सुंदर होने के साथ-साथ उसका चरित्र साफ होना भी है। एेसी स्त्री जो अपने आप से पहले अपने परिवार के लिए जीती हो, वही औरत सौभाग्यशाली होती है। ऐसी ही स्त्री को स्वीकर करना चाहिए।