ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारतीय सेना ने पहली बार वायु समन्वय अभ्यास के माध्यम से स्वदेशी ड्रोन और काउंटर ड्रोन तकनीकी की ताकत दिखाई। अंबाला और पंचकूला की सीमा पर स्थित नारायणगढ़ फायरिंग रेंज में भारतीय सेना की वेस्टर्न कमांड और साउथ वेस्ट कमांड ने पहली बार एक साथ संयुक्त रूप से ऑपरेट करते हुए अभ्यास को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। इस अभ्यास में अलग-अलग प्रकार की ड्रोन तकनीकी के माध्यम से इस बात का अभ्यास किया गया कि हमारे सैनिक भविष्य में युद्ध क्षेत्र की चुनौतियों के लिए तैयार हैं। वेस्टर्न कमांड के आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल मनोज कुमार कटियार ने बताया कि आगामी लड़ाई में हमें कई हजार ड्रोनों की जरूरत होगी, जिसके लिए हमने स्वदेशी स्तर पर प्रयास शुरू कर दिए हैं। इस अभ्यास में सेना ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विजन जय, यानि ज्वाइंटनेस, आत्मनिर्भरता और इनोवेशन के समन्वय को दिखाया जो भविष्य में भारतीय सेना को विजय की ओर ले जाएगा। इस दौरान निजी क्षेत्र के ड्रोन निर्माताओं और सेना द्वारा बनाए गए ड्रोन का भी प्रदर्शन किया गया।
कम रेंज वाले आत्मघाती ड्रोनों ने किए धमाके
अभी तक समझा जा रहा था कि अधिक महंगे और मारक क्षमता वाले ड्रोन सेना के लिए उपयोगी हैं और सेना इन पर काम भी कर रही है। इस अभ्यास ने दिखा दिया कि कम रेंज वाले आत्मघाती ड्रोन भी युद्ध क्षेत्र में कोहराम मचा सकते हैं, ऐसे ही पांच किलोमीटर रेंज वाले सैकड़ों ड्रोनों को सैनिकों ने उड़ाकर दिखाया। उड़ाया ही नहीं बल्कि चिह्नित लक्ष्य पर सटीकता से प्रहार भी किया, जिसमें प्रतीकात्मक रूप से रेंज पर बनाईं दुश्मन देश की चौकियां, बंकर और सैन्य ठिकानों को उड़ाने में कामयाबी मिली। सिर्फ हमला ही नहीं बल्कि सर्विलांस के लिए भी इन ड्रोनों का प्रयोग किया जा रहा है।
सेना ने तैयार की एंटी ड्रोन गन, एआई से निशाना बनाएगी
युद्ध के क्षेत्र में आत्मघाती ही नहीं बल्कि सामान लाने ले जाने के लिए, सर्विलांस के लिए और प्रशिक्षण के लिए भी ड्रोन को तैयार किया जा रहा है। अभ्यास के दौरान सेना ने अपनी इंटीग्रेटेड एंटी ड्रोन गन का प्रदर्शन भी किया, जिसे हाल ही में बनाया है। असम से आए मेजर वरुणजीत ने बताया कि इस गन में चार बंदूकें हैं, मिसाइल फायर करने का सिस्टम है और कुछ कैमरे लगे हैं। यह आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस तकनीकी से लैस है। जैसे ही सीमा पर दुश्मन देश के ड्रोन आते हैं तो इसके कैमरे उन्हें चिह्नित कर लेते हैं। इसका जैमर सिस्टम पहले आते ड्रोन की फ्रिक्वेंसी जाम करेगा, अगर बच जाता है तो गन माउंट घूमकर ड्रोन की दिशा में फायर करना शुरू कर देगा। अगर गोलियाें से भी ड्रोन बच जाता है तो रॉकेट मार गिराएगा। यह गन सॉफ्टवेयर के हिसाब से चलाई जाती है।
ऑपरेशन सिंदूर में हमने काउंटर ड्रोन का किया प्रयोग
वेस्टर्न कमांड के आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल मनोज कुमार कटियार ने बताया कि हम अपने ऑपरेशन में ड्रोन का इस्तेमाल कर रहे हैं। यहां पर हमारा अभ्यास कम कीमत और कम दूरी तक उड़ने वाले ड्रोन के साथ चल रहा है। हमने अत्यधिक क्षमता वाले ड्रोन भी लिए हैं। यह अभ्यास उन ड्रोन के साथ था जो हमने खुद बनाए हैं या लोकल इंडस्ट्री से लिए हैं। अगली लड़ाई में कई हजार ड्रोनों की हमें जरूरत होगी। इन ड्रोनों के विस्फोटक भी हमने खुद तैयार किए हैं। यहां काउंटर ड्रोन को भी तैनात किया है, कुछ नए ऐसे उपकरण भी बना रहे हैं। ऑपरेशन सिंदूर में भी हमने काउंटर ड्रोन सिस्टम का प्रयोग किया था।