स्पाइनल कॉर्ड हमारे शरीर का सपोर्ट सिस्टम होता। शरीर के कई अंगों की नसें स्पाइनल कॉर्ड से ही जुड़ती हैं। रीढ़ की हड्डी की सीधा संबंध हमारे नर्वस सिस्टम से होता है यानी स्पाइनल कॉर्ड हमारे शरीर का बेहद अहम अंग है।
हर साल 5 सितंबर को स्पाइनल कॉर्ड इंजिरी डे मनाया जाता है। इसलिए आज के दिन हम आपको बता रहे हैं कि रीढ़ की चोट के प्रभाव से कैसे सावधान रह सकते हैं और वह तरीकें जिनसे हम अपनी रीढ़ की रक्षा कर सकते हैं और इसे सुरक्षित रख सकते हैं।
ये समझने के लिए कि रीढ़ की हड्डी की चोट से हमारे शरीर को किस तरह का नुकसान पहुंच सकता है, इसके लिए आपके स्पाइनल कॉर्ड कैसे काम करती है ये समझना ज़रूरी है। कई तंत्रिकाएं मस्तिष्क से निकलती हैं और रीढ़ की हड्डी के माध्यम से त्वचा, मांसपेशियों और शरीर के अंगों तक पहुंचती हैं। रीढ़ की हड्डी की चोट से जूझ रहे व्यक्ति को कई तरह की दिक्कतें आ सकती हैं।
कंकाल प्रणाली: यह शरीर का वह हिस्सा है जिस पर स्पाइनल इंजरी का सबसे पहले असर पड़ता है। चोट लगने के बाद, कुछ कैल्शियम और खनिज हड्डियों को छोड़ देते हैं जो धीरे-धीरे मूत्र प्रणाली में जमा हो सकते हैं जिससे पथरी हो सकती है। यही वजह है कि रीढ़ की चोट के बाद जितना संभव हो उतना चलने फिरने की सलाह दी जाती है। चलने फिरने में दिक्कत की वजह से घुटनें, कोहनी और कंधें अकड़ सकते हैं और दर्द भी हो सकता है।
मूत्र प्रणाली: कई बार, रीढ़ की हड्डी की चोट के बाद व्यक्ति के आंत्र और मूत्राशय पर भारी असर पड़ता है। कई बार उसे पूरे वक्त केथेटर (catheter) की ज़रूरत पड़ती है। इसकी वजह से यूरिनरी ट्रेक्ट इंफेक्शन भी हो जाता है।
आंत: मूत्र प्रणाली की तरह एक व्यक्ति के आंतों पर भी असर पड़ता है। जिसकी वजह से कॉन्स्टीपेशन की दिक्कत शुरू हो जाती है।
त्वचा: रीढ़ की हड्डी त्वचा को चोट से बचने के लिए संदेश भेजती है। एक बार जब रीढ़ घायल हो जाती है या क्षतिग्रस्त हो जाती है, तो इन संकेतों का संचरण रुक सकता है और त्वचा सुन्न हो सकती है।
श्वसन प्रणाली: रीढ़ की चोट का असर श्वसन प्रणाली पर भी पड़ता है। फेफड़ों में हवा के अंदर और बाहर जाने की क्षमता जिन मांसपेशियों पर निर्भर करती हैं वो रीढ़ की नसें ही नियंत्रित करती हैं। अगर इसे समय पर डायगनोज़ नहीं किया गया तो निमोनिया या फिर रेस्पीरेट्री फैलरियर भी हो सकता है।