वैलेंटाइन डे आने में बस कुछ ही दिन बचे हैं। आप जानते ही होंगे वैलेंटाइन डे के दिन हवाओं में प्यार की खुशबू फैली होती है। वैसे वैलेंटाइन का हफ्ता प्रेमी प्रेमिकाओं के लिए खास है। सबसे ज्यादा वैलंटाइन वीक में जो चर्चाओं में रहती है वह है ‘आशिक-माशूक की कब्र’। यह वाराणसी में स्थित है और यहाँ हर साल प्रेमी जोड़े पहुंचते हैं। कहा जाता है यह मान्यता है कि, ‘यहां उनकी मुरादें भी पूरी होती हैं।’ यहाँ आकर मन्नतों और मुरादों को जो मांगता है वह सफल होकर जाता है। वैलेंटाइन डे वाले दिन यहाँ ख़ासा भीड़ देखने के लिए मिलती है।

जी दरअसल शहर के औरंगाबाद इलाके में आशिक-माशूक की मजार उन्हीं दो प्रेमियों की मिसाल है, जो जिंदा रहते हुए नहीं मिल सके, लेकिन मौत ने उनको मिला दिया। यह कहानी 400 साल से भी ज्यादा पुरानी है। उस दौरान बनारस के एक व्यापारी अब्दुल समद के लड़के मोहम्मद यूसुफ को एक लड़की से मोहब्बत हो गई। कहा जाता है लड़की के परिवार वालों को जब पता चला तो उन्होंने लड़की को रिश्तेदार के घर भेज दिया। उस दौरान यूसुफ भी उसके पीछे चला गया। उस समय लड़की के साथ दूसरे नाव पर बैठी बूढ़ी औरत ने लड़की की जूती को पानी में फेंक दिया और यूसुफ से कहा कि, ‘अगर तुम्हारी मोहब्बत सच्ची है तो जूती लेकर आओ।’
यह सुनकर युसूफ नदी में कूद गया, लेकिन फिर कभी वापस नहीं आया। उसी के कुछ दिनों बाद लड़की घर वापसी के लिए निकली। जिस दिन घर वापस आना हुआ उस दौरान लड़की ने भी ठीक उसी जगह कूदकर अपनी जान दे दी जहाँ युसूफ की मौत हुई थी। अंत में लड़की की नदी में तलाश की गई। जब तलाश हुई तो दोनों की लाशे मिली। दोनों ने एक-दूसरे का हाथ थाम रखा था। दोनों को बाहर निकालकर शहर के औरंगाबाद इलाके में दफनाया गया। जिसे आज आशिक-माशूक का मकबरा कहा जाता है।
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