UNESCO की विश्व धरोहर सूची में शामिल हुए छत्रपति शिवाजी के 12 किले

हाल ही में यूनेस्को ने भारत के 12 मराठा किलों को विश्व विरासत सूची में शामिल किया है। ये किले छत्रपति शिवाजी महाराज ने बनवाए या उनकी देखरेख में रहे थे। ये किले शिवाजी महाराज की जबरदस्त युद्धनीति हिंदू राष्ट्र के प्रति उनकी भक्ति और उनके संघर्षपूर्ण स्वभाव को दिखाते हैं। ओम प्रकाश तिवारी के आर्टिकल में इन विश्व विरासतों की एक झलक दी गई है।

सामान्य व्यक्ति के लिए अपने जीवन में एक घर बनाना भी मुश्किल होता है। छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने जीवनकाल में 362 किले बनवाए थे। यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में उनके 12 किलों को शामिल किए जाने के बाद ये किले चर्चा में हैं, जोकि वास्तव में उनके व्यक्तित्व के ही दर्शन कराते हैं।

ऐसा इसलिए क्योंकि वह एक साधारण सैन्य सरदार के पुत्र थे एवं अपनी रणनीति व साहस के बल पर ही महाराष्ट्र और दक्षिण के पांच प्रभावी मुस्लिम शासकों सहित मुगल सत्ता से लोहा लेकर हिंदवी स्वराज की स्थापना करने में कामयाब रहे थे। ये किले भी किसी साधारण भौगोलिक परिस्थिति में नहीं बने हैं। कुछ पहाड़ों की दुर्गम चोटियों पर हैं, तो कुछ समुद्र के बीच।

आज भी इन किलों पर पहुंचने में पसीने छूट जाते हैं। पहाड़ पर बना कोई भी किला समुद्र तल से 1200-1300 मीटर से कम ऊंचाई पर नहीं है। इतनी ऊंचाई या समुद्र की गहराई के बीच बने किलों की दीवारें भी इतनी मोटी हैं कि उन्हें तोप के गोलों से हिला पाना भी आसान नहीं था।

छत्रपति शिवाजी महाराज के किलों पर विशेषज्ञता रखनेवाले मिलिंद वेरलेकर बताते हैं, ‘महज 34-35 वर्ष में छत्रपति शिवाजी महाराज ने ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों और गहरे समुद्र के बीच कई विशाल किलों की स्थापना की। ये काम वह अपने उन सहयोगियों की मदद एवं भरोसे से ही संभव कर पाए, जिन्हें बाल्यकाल से ही वह अपने साथ रखते आए थे।’

शिवाजी की शासन शैली का गहराई से अध्ययन करने वाले अभिजीत मुले कहते हैं, ‘शिवाजी महाराज ने ये किले बनवाने के लिए विशेषतौर पर ऐसे स्थान चुने, जहां से दुश्मनों पर नजर रखी जा सके और उन पर छापामार युद्ध में कुशलता से हमला बोला जा सके। इसके अलावा इनमें से कुछ किले तो प्रचलित व्यापारिक मार्ग पर भी थे। जो व्यापारियों से कर वसूली एवं उनके संरक्षण में सहायक सिद्ध होते थे।’

राजगढ़
पुणे के निकट पहले से बने इस किले पर शिवाजी महाराज ने 1647 में नियंत्रण किया और इसके जीर्णोद्धार का आदेश दिया। 1662 से 1674 तक शिवाजी महाराज का शासन यहीं से चलता था।

शिवनेरी दुर्ग
पुणे जिले के जुन्नर तालुका में स्थित इसी किले में शिवाजी महाराज का जन्म हुआ था। इस किले में शिवाई देवी का मंदिर है। कहा जाता है कि इन्हीं के नाम पर शिवाजी महाराज का नामकरण हुआ था।

रायगढ़
इसे रायरी किला भी कहते हैं। इसी किले में 6 जून, 1674 को स्वयं शिवाजी महाराज का, फिर 16 जनवरी, 1681 को उनके पुत्र संभाजी का और 11 मार्च, 1689 को उनके दूसरे पुत्र राजाराम का राज्याभिषेक हुआ था। रायगढ़ का किला ही शिवाजी के हिंदवी स्वराज की राजधानी था।

प्रतापगढ़
सातारा जिले में महाबलेश्वर के निकट स्थित इसी किले से उतरकर शिवाजी महाराज ने आदिलशाही सेना के सेनापति अफजल खान का अपने बघनख से पेट फाड़कर वध कर दिया था।

साल्हेर दुर्ग
नासिक के निकट स्थित साल्हेर महाराष्ट्र का सबसे ऊंचा किला है। इस किले पर 1671 में शिवाजी महाराज ने नियंत्रण किया। 1672 में इसी किले के लिए मुगलों से उनका युद्ध हुआ, जिसमें शिवाजी महाराज की जीत हुई।

विजय दुर्ग
कोंकण में रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण समुद्री तट पर बने इस किले का निर्माण 12वीं शताब्दी में सिल्हर वंश के राजा भोज (द्वितीय) ने करवाया था। शिवाजी महाराज ने 1653 में यह दुर्ग आदिलशाही सल्तनत से छीनकर इसका नामकरण विजय दुर्ग कर दिया था।

खांदेरी दुर्ग
मुंबई के निकट समुद्र के बीच स्थित खांदेरी किला शिवाजी की नौसैनिक शक्ति का परिचय देता है। जंजीरा में रहने वाले सिद्दियों पर नजर रखने के लिए 1660 से 1679 में शिवाजी महाराज ने इसका निर्माण करवाया था।

लोहागढ़
मुंबई और पुणे के बीच लोनावाला में स्थित यह किला रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। शिवाजी महाराज ने इस पर 1648 में नियंत्रण किया था।

सुवर्ण दुर्ग
कोंकण में समुद्र के बीच शिवाजी महाराज ने इस किले का निर्माण जलमार्ग से व्यापारिक-सैन्य गतिविधियों पर निगरानी के लिए करवाया था। मराठा साम्राज्य के नौसेनापति कान्होजी आंग्रे का जन्म भी इसी किले में हुआ था।

सिंधु दुर्ग
गोआ के निकट महाराष्ट्र के समुद्री तट पर इस किले का निर्माण शिवाजी महाराज ने अंग्रेजों, पुर्तगालियों एवं सिद्दियों पर नजर रखने के लिए करवाया था। 48 एकड़ में फैले इस किले में घुसने एवं निकलने के लिए कई गुप्त द्वार थे।

जिंजी किला
तमिलनाडु के विल्लुपुरम जिले में स्थित विशाल जिंजी किला शिवाजी ने 1677 में बीजापुर रियासत से छीना था। उसके बाद इस पर करीब 22 वर्ष तक मराठों का कब्जा रहा।

पन्हाला किला
कोल्हापुर के निकट स्थित इस किले का निर्माण 12वीं सदी में सिल्हर वंश के राजा भोज ने करवाया था। इस किले को आदिलशाही सल्तनत से छीनने में शिवाजी महाराज को 14 साल लग गए थे।

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