उत्तराखंड देश का एक मात्र राज्य है, जहां वन पंचायत व्यवस्था लागू है। यह एक ऐतिहासिक सामुदायिक वन प्रबंधन संस्था है, जो वर्ष 1930 से संचालित हो रही है। देश का एक मात्र राज्य है, जहां वन पंचायत व्यवस्था लागू है। यह एक ऐतिहासिक सामुदायिक वन प्रबंधन संस्था है, जो वर्ष 1930 से संचालित हो रही है।
उत्तराखंड की 11217 वन पंचायतों को मजबूत और स्वावलंबी बनाने के लिए धामी कैबिनेट ने वन पंचायत संशोधन नियमावली पर मुहर लगा दी है। जिसमें ब्रिटिश काल के अधिनियमों में बदलाव कर वन पंचायतों को वित्तीय प्रबंधन के अधिकार दिए गए। नई नियमावली के तहत अब नौ सदस्यीय वन पंचायत का गठन किया जाएगा। जिसके पास जड़ी-बूटी उत्पादन, पौधरोपण, जल संचय, वन अग्नि रोकथाम, इको टूरिज्म में भागीदारी के अधिकार होंगे। इससे वन पंचायतों की आय में बढ़ोतरी होगी। पहली बार त्रिस्तरीय स्थानीय निकायों को भी वन पंचायत के वन प्रबंधन से जोड़ा गया है।
उत्तराखंड देश का एक मात्र राज्य है, जहां वन पंचायत व्यवस्था लागू है। यह एक ऐतिहासिक सामुदायिक वन प्रबंधन संस्था है, जो वर्ष 1930 से संचालित हो रही है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने वन पंचायतों को आत्मनिर्भर बनाने की पहल की है। वर्तमान में प्रदेश में कुल 11217 वन पंचायतें गठित हैं, जिनके पास 4.52 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र है। वन पंचायत नियमावली में किए गए संशोधन के बाद अब प्रत्येक वन पंचायत 9 सदस्यीय होगी। इसमें एक सदस्य ग्राम प्रधान की ओर से और एक सदस्य जैव विविधता प्रबंधन समिति के माध्यम से नामित किया जाएगा। ऐसी वन पंचायतें जो नगर निकाय क्षेत्र में आती हैं, वहां नगर निकाय प्रशासन की ओर से एक सदस्य को वन पंचायत में नामित किया जाएगा।
नई नियमावली में वन पंचायतों को वन उपज जैसे फूल पत्ती जड़ी-बूटी, झूला घास के रवन्ने या परमिट जारी करने का अधिकार दिया गया है, इससे प्राप्त शुल्क को भी वन पंचायतों को अपने बैंक खाते में जमा करने का अधिकार होगा। वन पंचायतें अभी तक ग्राम सभा से लगे अपने जंगलों के रखरखाव, वृक्षारोपण, वनाग्नि से बचाव आदि का काम स्वयं सहायता समूह या सहकारिता की तरह करती आई हैं, लेकिन इसका प्रबंधन डीएफओ के स्तर से किया जाता था। अब वन पंचायतों के वित्तीय अधिकार बढ़ा दिए गए हैं।
वन पंचायतों को वन अपराध करने वालों से जुर्माना वसूलने का अधिकार दिया गया। वन पंचायतों को सीएसआर फंड या अन्य स्रोतों से मिली धनराशि को उनके बैंक खाते में जमा करने का अधिकार दिए जाने की भी व्यवस्था नए नियमावली में की गई है, जिससे वन पंचायतों की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। वनों में कूड़ा निस्तारण को भी प्राथमिकता में रखा गया है। साथ ही ईको टूरिज्म को प्रोत्साहित करने के लिए भी प्रावधान किए गए हैं।