उत्तराखंड में अगले विधानसभा चुनाव की ओर बढ़ते कदमों के साथ ही कांग्रेस के भीतर जंग की सुगबुगाहट होने लगी है। आश्चर्यजनक ये है कि जंग बाहरी मोर्चे पर भाजपा के प्रचंड बहुमत के खिलाफ नहीं है। बल्कि, इसके केंद्र में चुनाव में टिकट बंटवारे की भूमिका और इसके बहाने वर्चस्व कायम रखने की जोर-आजमाइश को माना जा रहा है। आने वाले दिनों में इसमें इजाफा होना भी तकरीबन तय माना जा रहा है। ऐसे में प्रदेश संगठन के साथ ही हाईकमान के लिए भी चुनावी जंग में पार्टी को एकजुट रखने की चुनौती बढ़ना लगभग तय है।
प्रदेश में कांग्रेस के भीतर बहुध्रुवीय खींचतान के अब मुख्य रूप से दो खेमों में सिमटने के संकेत हैं। दोनों खेमे विधानसभा चुनाव से पहले निर्णायक स्थिति पाना चाहते हैं। इसमें एक मजबूत धड़े के नेता के रूप में कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव एवं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत हैं तो दूसरे धड़े की कमान फिलहाल प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश के संभाल रहे हैं।
इन दोनों ही खेमों के बीच तनातनी लंबे समय से बरकरार है। पार्टी पर रसूख कायम रखने की इस जंग ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह को अपनी कमेटी के गठित करने के लिए लंबा इंतजार कराया। हालांकि, इस बीच प्रदेश अध्यक्ष को ही बदले जाने को लेकर सोशल मीडिया पर हल्ला भी मचता रहा।
यह दीगर बात है कि पार्टी हाईकमान ने नई प्रदेश कमेटी पर मुहर लगाकर इस हल्ले पर ही विराम लगा दिया। अब पार्टी विधायक नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश के खिलाफ लामबंद हैं। कांग्रेस विधानमंडल दल नेता बदलने की मुहिम को धार देने की कोशिश क्या रंग लाती है, यह आने वाले वक्त में साफ हो जाएगा। माना जा रहा है कि प्रदेश संगठन और विधानमंडल दल पर दबाव लगातार बढ़ना तय है।
इस बीच पार्टी के भीतर से ही यह मांग भी उठने लगी है कि विधानसभा चुनाव में टिकट बंटवारे के लिए अलग से चयन समिति बनाई जाए। दरअसल, टिकट बंटवारे में प्रदेश अध्यक्ष और नेता विधानमंडल दल, दोनों की ही अहम भूमिका होती है। टिकट बंटवारे मामले में दोनों अहम पद दूसरे खेमे के पास होने से भी पार्टी की अंदरूनी सियासत गरमाई हुई है। ऐसे में आने वाले समय में पार्टी के भीतर धड़ों मे एकजुटता बड़ी चुनौती की शक्ल लेती दिखाई पड़ सकती है।