उत्तराखंड सरकार एक बार फिर खनन नीति में बदलाव की तैयारी कर रही है। इस बार यह बदलाव रॉयल्टी को लेकर किया जा सकता है। कारण यह कि उत्तराखंड में खनन पर रॉयल्टी अन्य प्रदेशों की तुलना में अधिक है। यह अवैध खनन को बढ़ावा दे रही है। इसे देखते हुए अब रॉयल्टी को कम करने पर गहन मंथन चल रहा है।
प्रदेश में खनन राजस्व का एक मुख्य स्रोत है। यहां लाइमस्टोन, सोपस्टोन, सिलिका सैंड, मैग्नासाइट, बेस मेटल आदि खनिज बहुतायत में हैं, जिनका वैज्ञानिक तरीके से दोहन किया जाता है। प्रदेश में इस बार खनन से 750 करोड़ का राजस्व लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
हालात यह है कि विभाग अभी इसके आधे तक भी नहीं पहुंच पाया है। इसके कारणों की जब पड़ताल की गई तो यह सामने आया कि प्रदेश की खनन नीति के कड़े मानक इसका कारण बन रहे हैं। इसके अलावा शासन से अनुमति लेने व फॉरेस्ट क्लीयरेंस के मामलों को देखते हुए पट्टे नहीं उठ पा रहे हैं। साथ ही प्रदेश में अवैध खनन की भी खासी शिकायतें मिल रही हैं।
इसे देखते हुए बीते छह माह से सरकार लगातार खनन नीति में जरूरी बदलाव कर रही है। इसके तहत नदियों से खनन के लिए नदी में तीन मीटर तक खुदाई की अनुमति देना, निजी नाप पट्टों को जिला स्तर से ही अनुमति देना, स्टोन क्रशर की नदी तट से दूरी आदि मानक शामिल हैं। सरकार का मकसद इन नए संशोधनों के जरिये खनन से मिलने वाले राजस्व को बढ़ाना है।
अब इसमें एक और बदलाव करने की तैयारी चल रही है। बदलाव यह कि खनन के लिए ली जाने वाली रॉयल्टी की कीमत में परिवर्तन किया जा सकता है। दरअसल, उत्तराखंड में खनन के लिए सरकार द्वारा ली जाने वाली रॉयल्टी की दरें पड़ोसी राज्यों हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश से अधिक हैं। इसी कारण यहां अवैध खनन भी बढ़ रहा है। इसके साथ ही सीमांत क्षेत्रों में दूसरे प्रदेशों से निर्माण सामग्री खरीदी जा रही है। इसे देखते हुए रॉयल्टी की दरों में बदलाव को मंथन किया जा रहा है।